प्रधानमंत्री जी, उन लोगों की ‘कल्पना वाला बिहार’ की बात नहीं करें, उनके अनुयायी ‘नेस्तनाबूद’ कर दिए 😢 आप ‘अपनी सोच को जमीन पर उतारें’, लोग साथ खड़े मिलेंगे 👣 बशर्ते 👁

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और हंसी

पटना / नई दिल्ली: पटना हवाई अड्डे पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समस्तीपुर के ताजपुर प्रखंड के प्रतिभाशाली युवा क्रिकेटर वैभव सूर्यवंशी और उनके माता-पिता से मुलाक़ात कर, दो-टूक बात कर वैभव को आशीष दिए, शायद पटना के खेल-कूद के इतिहास में ऐसी घटना पहले कभी नहीं हुई थी। अपनी व्यस्तता भरे समय से चार मिनट चौबीस सेकेंड्स का समय निकालकर हवाई अड्डे की तपती धूप में वैभव के खेलों की प्रशंसा करना या भविष्य के प्रयासों के किये शुभकामनायें देना, प्रधानमंत्री की खेल के प्रति, खिलाड़ी के प्रति उनकी ‘अपनी सोच’ को उजागर करता है – भले इस रंगमंच का निर्माण राजनीतिक लाभ लेने के लिए ही किया गया हो। 

लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में बिजली के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देते हुए औरंगाबाद जिले में 29,930 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली नबीनगर सुपर थर्मल पावर परियोजना, चरण-II (3×800 मेगावाट) की आधारशिला रखते यह कहे कि ‘बिहार को बाबा साहब अंबेडकर, कर्पूरी ठाकुर, बाबू जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण द्वारा कल्पित बिहार में बदलने के विजन को रेखांकित कर विकसित बिहार बनाने का लक्ष्य है’, मन में सैकड़ों प्रश्न उपस्थित हो गए। सभी प्रश्नों के अंत में ‘तारांकित सवाल’ था ‘क्या सच में वर्तमान राजनीतिक वातावरण और नेतृत्व में उनकी कल्पनाओं को दिशा दिया जा सकता है? अगर विगत 35-वर्षों का गैर-कांग्रेसी और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकलने नेताओं के नेतृत्व और उनके द्वारा कार्यों के निष्पादन को देखते हैं तो लगता है शायद ‘नहीं’ दे पाएंगे। यह असली राजनीति है। 

पटना हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री और वैभव सूर्यवंशी के माता-पिता

डॉ. बी.आर. अंबेडकर की अन्य सोचों को छोड़ कर अगर सिर्फ सामाजिक न्याय को लेते हैं तो उन्होंने ‘सामाजिक न्याय को एक ऐसी व्यवस्था के रूप में देखा जो जाति, नस्ल, लिंग, शक्ति, पद या धन के बावजूद सभी मनुष्यों के लिए स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सुनिश्चित करती हो। उनकी दृष्टि जाति व्यवस्था जैसी दमनकारी संरचनाओं को खत्म करने और एक ऐसे समाज की वकालत करने पर केंद्रित थी जहाँ व्यक्तियों का मूल्य जन्म से नहीं बल्कि योग्यता और उपलब्धि से निर्धारित होता है।’ 

लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए प्रदेश की सत्तारूढ़ सरकार और राजनीतिक पार्टियां प्रदेश में सम्पादित जातीय जनगणना के आधार पर मतदाताओं सहित, प्रदेश के लोगों को 215 जातियों में चीड़-फाड़ कर दिए। अन्य जातियों को छोड़िये, अनुसूचित जाति को 22 खण्डों में, अनुसूचित जनजाति को 32 फांकों में, पिछड़ी जाति को 30 फांकों में, अत्यंत पिछड़ी जाती को 113 भागों में चीड़फाड़ दिए। ऊंची जाति सात के सात ही रहे क्योंकि प्रदेश के मतदाताओं की संख्या में उनकी भागीदारी औसतन कम है। वैसी स्थिति में बाबा साहेब की सोच वाली बिहार बनना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। शब्द कटु है, लेकिन सत्य यही है।

 
शायद प्रधानमंत्री यह भी नहीं सोचे की भारतरत्न कर्पूरी ठाकुर प्रदेश में जिस ‘समतावादी’ समाज की स्थापना करना चाह रहे थे, जिसके लिए जीवन पर्यन्त लड़ते रहे, लेकिन बदलते राजनीतिक माहौल में सिर्फ उनका नाम बिका, उनकी जाति बिकी और उनकी सोच और उनका समाज जस-का-तस रहा। इतना ही नहीं, साल 1994 में तत्कालीन नेता जॉर्ज फर्नांडिस की अगुवाई में ‘समता पार्टी’ बनी। ‘समता पार्टी’ के अभ्यर्थी के रूप में नीतीश कुमार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। गुटबाजी शुरू हुआ और ‘समता पार्टी’ लालू प्रसाद यादव वाली ‘राष्ट्रीय जनता दल’ के नक़्शे कदम पर ‘जनता दल (यूनाइटेड) बनी। ‘समता पार्टी’ प्रदेश के मतदाताओं को ‘युनाइट’ करने में असमर्थ रही। आज बिहार में ‘समता पार्टी’ को कोई जानता भी नहीं है, फिर भारतरनत कर्पूरी ठाकुर की समतावादी समाज को कौन पूछता है। विश्वास नहीं होता तो जांच-पड़ताल करा लें। 

जहाँ तक बाबू जगजीवन राम की सोच वाली समाज और प्रदेश का सवाल है, उनकी इच्छा थी कि प्रदेश में भेदभाव और असमानता से मुक्त समाज हो, विशेष रूप से दलितों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए। वे अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग में गहराई से शामिल थे, जिसका उद्देश्य अछूतों के लिए समानता हासिल करना था। उनका दृष्टिकोण सामाजिक न्याय, समानता और दलितों के उत्थान के प्रति प्रतिबद्धता में निहित था।  

लेकिन प्रदेश में जब 22 खण्डों में अनुसूचित जाति, 32 खण्डों में जनजाति, 30 खण्डों में पिछड़ी जाति और 113 खण्डों में अत्यंत पिछड़ी जाति बन गयी हो; तो बाबू जगजीवन राम की सोच सासाराम ही नहीं, पटना की सड़कों पर तहस-नहस हो गयी। इतना ही नहीं, बाबू जगजीवन राम की सुपुत्री और भारतीय विदेश सेवा की शीर्षस्थ अधिकारी, जो लोकसभा की अध्यक्ष भी बने, बिहार के विकास में, अपने पिता बाबू जगजीवन राम की सोच को जमीनी स्तर पर उतारने में क्या की? यह तो प्रदेश का मतदाता जानता ही है। यदि देखा जाय तो बिहार की स्थिति जितना भयानक विगत 35 वर्षों में ही हुआ, पहले कभी नहीं हुआ था। और इस कालखंड में राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव और उनका परिवार के साथ-साथ जनता दल (यूनाइटेड) के मुखिया नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री कार्यालय में विराजमान रहे। 

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अब जहाँ तक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की सामाजिक सोच और विचारधारा का प्रश्न है, नब्बे के मार्च महीने में उनके सबसे प्रिय नेता लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री कार्यालय में विराजमान हुए। फिर उनकी पत्नी श्रीमती राबड़ी देवी कुर्सी पर बैठीं। पुत्र भी उप-मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए।  दूसरे पुत्र भी मंत्री बने। परिवार के अन्य सदस्य लोकसभा, राज्य सभा को सुशोभित किये। समय निकलता गया और विराजमान हो गए जयप्रकाश नारायण द्वारा आंदोलन के लिए निर्मित समिति के प्रमुख सदस्य नीतीश कुमार मुख्यमंत्री कार्यालय में। 

प्रधानमंत्री जी आप तो गवाह रहे हैं कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहने के लिए कभी लालू की पार्टी को साथ लिए, कभी आपकी पार्टी से हाथ मिलाये; कभी लालू को झटका दिए तो कभी बीजेपी को करेंट लगाए। जयप्रकाश नारायण की आत्मा आज बिलखती होती यह देखकर कि जिस सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक परिवेश को बदलने के लिए सम्पूर्ण क्रांति की लड़ाई लड़ी गयी थी, उस आंदोलन से उभरे नेताओं ने प्रदेश का क्या हाल कर दिया। अगर विश्वास नहीं हो तो जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के कालखंड के पत्रकारों से, नेताओं से, सामान्य लोगों से पूछ कर देखिये। या फिर कभी मौका लगे तो जयप्रकाश नारायण के कदमकुआं स्थित घर – चरखा समिति – में भ्रमण, सम्मेलन करके देखिये। खैर। 

हाँ, आपकी यह बात लोगों को स्वीकार होगा जब आपने कहा कि “जब भी बिहार ने प्रगति की है, भारत ने विश्व स्तर पर नई ऊंचाइयों को छुआ है। आप विश्वास भी व्यक्त किये कि सभी लोग मिलकर विकास की गति को तेज करेंगे।” अतः आप अपनी सोच वाली बिहार का निर्माण करें ताकि प्रदेश के लोगों का जीवन में बदलाव आये। 

बहरहाल,  काराकाट में 48,520 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली कई विकास परियोजनाओं की आधारशिला रख कर राष्ट्र को समर्पित किये । सासाराम के महत्व पर टिप्पणी करते हुए तथा इस बात पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसका नाम भी भगवान राम की विरासत को दर्शाता है।  वे भगवान राम की वंशावली की गहरी जड़ों वाली परंपराओं पर प्रकाश डाला, तथा अटूट प्रतिबद्धता के सिद्धांत – एक बार जो वादा किया जाता है, उसे पूरा किया जाना चाहिए- को रेखांकित किया।

बिहार के रेलवे बुनियादी ढांचे में आए बदलाव का उल्लेख करते हुए मोदी ने बिहार में विश्वस्तरीय वंदे भारत ट्रेनों की शुरुआत और रेलवे लाइनों के दोहरीकरण और तिहरेकरण की चल रही है। उन्होंने कहा कि छपरा, मुजफ्फरपुर और कटिहार जैसे क्षेत्रों में में काम तेजी से आगे बढ़ रहा है। सोन नगर और अंडाल के बीच मल्टी-ट्रैकिंग का काम चल रहा है, जिससे ट्रेनों की आवाजाही में काफी सुधार होगा। उन्होंने यह भी घोषणा की कि अब सासाराम में 100 से अधिक ट्रेनें रुकती हैं, जो इस क्षेत्र की बढ़ती कनेक्टिविटी को दर्शाता है। उन्होंने पुष्टि की कि लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों का समाधान किया जा रहा है, साथ ही रेलवे नेटवर्क को आधुनिक बनाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ये विकास पहले भी क्रियान्वित किए जा सकते थे, लेकिन बिहार की रेलवे प्रणाली को आधुनिक बनाने के लिए जिम्मेदार लोगों ने निजी लाभ के लिए भर्ती प्रक्रियाओं का फायदा उठाया और लोगों को उनके सही अवसरों से वंचित किया। उन्होंने बिहार के लोगों से उन लोगों के धोखे और झूठे वादों के प्रति सतर्क रहने का आग्रह किया, जिन्होंने पहले ‘जंगल राज’ के तहत शासन किया था। 

यह रेखांकित करते हुए कि बिजली के बिना विकास अधूरा है, उन्होंने कहा कि औद्योगिक प्रगति और जीवन की सुगमता विश्वसनीय बिजली आपूर्ति पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि एक दशक पहले की तुलना में बिहार में बिजली की खपत चार गुना बढ़ गई है। प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि नबीनगर में 30,000 करोड़ रुपये के निवेश से एक प्रमुख एनटीपीसी बिजली परियोजना निर्माणाधीन है और यह परियोजना बिहार को 1,500 मेगावाट बिजली प्रदान करेगी। उन्होंने बक्सर और पीरपैंती में नए थर्मल विद्युत संयंत्रों की शुरुआत पर भी प्रकाश डाला। भविष्‍य पर ध्यान देने, विशेष रूप से बिहार को हरित ऊर्जा की ओर आगे बढ़ाने पर सरकार के फोकस को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री ने राज्य की अक्षय ऊर्जा पहल के हिस्से के रूप में कजरा में एक सौर पार्क के निर्माण पर प्रकाश डाला। 

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उन्होंने कहा की कि पीएम-कुसुम योजना के तहत, किसानों को सौर ऊर्जा के माध्यम से आय उत्पन्न करने के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं, जबकि अक्षय कृषि फीडर खेतों को बिजली की आपूर्ति कर रहे हैं, जिससे कृषि उत्पादकता में और सुधार हो रहा है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, लोगों के जीवन में सुधार हुआ है, और महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं। आधुनिक बुनियादी ढाँचा गाँवों, गरीबों, किसानों और छोटे उद्योगों को सबसे अधिक लाभ पहुँचाता है, क्योंकि वे बड़े राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जुड़ सकते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि राज्य में नए निवेश से नए अवसर पैदा होते हैं और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। 

बिहार में किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि बिहार में 75 लाख से अधिक किसान पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने मखाना बोर्ड की स्थापना की घोषणा की और जोर देकर कहा कि बिहार के मखाना को जीआई टैग दिया गया है, जिससे मखाना किसानों को अत्यंत लाभ हुआ है। इस साल के बजट में बिहार में राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण संस्थान की घोषणा भी शामिल है। प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि अभी दो-तीन दिन पहले ही कैबिनेट ने खरीफ सीजन के लिए धान सहित 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को मंजूरी दी है और जोर देकर कहा कि इस निर्णय से किसानों की उपज का बेहतर मूल्य सुनिश्चित होगा और उनकी आय बढ़ेगी।

विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन लोगों ने बिहार को सबसे अधिक धोखा दिया है, वे अब सत्ता हासिल करने के लिए सामाजिक न्याय के झूठे आख्यानों का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनके शासन के दौरान, बिहार के गरीब और हाशिए के समुदायों को बेहतर जीवन की तलाश में राज्य छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। प्रधानमंत्री ने कहा, “दशकों तक, बिहार में दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासी समुदायों के पास बुनियादी स्वच्छता सुविधाएं भी नहीं थीं”, ये समुदाय बैंकिंग की सुविधा से वंचित थे, अक्सर उन्हें बैंकों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था और व्यापक स्तर पर बेघर बने रहे। लाखों लोगों के पास उचित आश्रय नहीं था। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या पिछली सरकारों के दौरान बिहार के लोगों द्वारा सहे गए दुख, कठिनाई और अन्याय ही विपक्षी दलों द्वारा वादा किया गया सामाजिक न्याय था। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब जबकि दलितों, हाशिए पर पड़े समूहों और पिछड़े समुदायों ने विपक्ष की गलत कृत्यों के कारण उससे दूरी बना ली है, पार्टी सामाजिक न्याय का हवाला देकर अपनी पहचान पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि कोई भी गांव या पात्र परिवार उसके कल्याणकारी कार्यक्रमों से वंचित न रहे और उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि बिहार ने इसी विजन के साथ डॉ. भीमराव अंबेडकर समग्र सेवा अभियान शुरू किया है। उन्होंने रेखांकित किया कि इस अभियान के तहत सरकार 22 अनिवार्य योजनाओं के साथ गांवों और समुदायों तक एक साथ पहुंच रही है और इसका उद्देश्य दलितों, महादलितों, पिछड़े वर्गों और गरीबों को सीधे लाभ पहुंचाना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब तक 30,000 से अधिक शिविर आयोजित किए जा चुके हैं और लाखों लोग इस अभियान से जुड़ चुके हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब सरकार सीधे लाभार्थियों तक पहुंचती है, तो भेदभाव और भ्रष्टाचार खत्म हो जाता है और इसे एक ऐसा दृष्टिकोण बताया जो सामाजिक न्याय का सच्चा अवतार है।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘हमारी लड़ाई देश के हर दुश्मन से है, फिर वो चाहे सीमा पार हो, या देश के भीतर हो। बीते वर्षों में हमने हिंसा और अशांति फैलाने वालों का कैसे खात्मा किया है, बिहार के लोग इसके साक्षी हैं। आप याद करिए, कुछ साल पहले तक सासाराम, कैमूर, और आसपास के इन जिलों में क्या हालात थे? नक्सलवाद कैसे हावी था, मुंह पर नकाब लगाए, हाथों में बंदूक थामे, नक्सली कब-कहाँ सड़कों पर निकल आयें, हर किसी को ये खौफ रहता था। सरकारी योजना आती थी, पर नागरिकों तक पहुंचती ही नहीं थी। नक्सल प्रभावित गांव में न तो अस्पताल होता था, न मोबाइल टावर। कभी स्कूल जलाए जाते थे, कभी सड़क बनाने वालों को मार दिया जाता था। इन लोगों का बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान पर कोई विश्वास नहीं था।’

2014 के बाद से हमने इस दिशा में और तेजी से काम किया। हमने माओवादियों को उनके किए की सजा देनी शुरू की। हम युवाओं को विकास की मुख्यधारा में भी लेकर आए। 11 सालों की दृढ़ प्रतिज्ञा का फल आज देश को मिलना शुरू हुआ है। 2014 से पहले देश में सवा सौ से ज़्यादा ज़िले नक्सल प्रभावित थे, अब सिर्फ, सवा सौ से ज़्यादा, अब सिर्फ 18 जिले नक्सल प्रभावित बचे हैं। अब सरकार सड़क भी दे रही है, रोजगार भी दे रही है। वो दिन दूर नहीं जब माओवादी हिंसा का पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा, शांति, सुरक्षा, शिक्षा और विकास गाँव-गाँव तक बिना रुकावट के पहुंचेंगे।

कभी बिहार में एक ही एयरपोर्ट था– पटना। आज दरभंगा एयरपोर्ट भी शुरू हो गया है। अब यहां से दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों की फ्लाइट मिलती है। बिहार के लोगों की लंबे समय से मांग थी कि पटना एयरपोर्ट के टर्मिनल को आधुनिक बनाया जाए, अब ये मांग भी पूरी हो गई है। कल शाम मुझे पटना एयरपोर्ट की नई टर्मिनल बिल्डिंग का लोकार्पण करने का सौभाग्य मिला है। ये नया टर्मिनल अब 1 करोड़ यात्रियों को संभाल सकता है। बिहटा एयरपोर्ट पर भी 1400 करोड़ रुपए का निवेश हो रहा है। बिहार में आज हर तरफ फोर लेन और सिक्स लेन सड़कों का जाल बिछ रहा है। पटना से बक्सर, गयाजी से डोभी, पटना से बोधगया जी, पटना–आरा–सासाराम ग्रीनफील्ड कॉरिडोर, हर तरफ तेजी से काम हो रहा है। गंगा, सोन, गंडक, कोसी समेत सभी प्रमुख नदियों पर नए पुल बनाए जा रहे हैं। हजारों करोड़ की ऐसी परियोजनाएं बिहार में नए अवसरों और संभावनाओं का निर्माण कर रही हैं। इन प्रोजेक्ट्स से हजारों युवाओं को रोज़गार मिलेगा। यहाँ टूरिज्म और व्यापार दोनों को फायदा होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि “मैं आपसे पूछता हूँ, बिहार के लोगों की ये दुर्दशा, ये पीड़ा, ये तकलीफ, क्या ये काँग्रेस और आरजेडी का, क्या यही सामाजिक न्याय था? गरीबों को इस प्रकार से मजबूरी में जीने के लिए सारी नीतियां बनाने के आदी लोग, साथियों इससे ज्यादा अन्याय कोई नहीं हो सकता है। कांग्रेस और आरजेडी वालों, इन्होंने कभी दलित, पिछड़ों की इतनी तकलीफ़ों की चिंता तक नहीं की। ये लोग विदेशियों को बिहार की गरीबी दिखाने के लिए घुमाने लाते थे। अब जब दलित, वंचित और पिछड़ा समाज ने कांग्रेस को उसके पापों की वजह से छोड़ दिया है, तो इन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए सामाजिक न्याय की बातें याद आ रही हैं।”

“हम चाहते हैं कि कोई भी गांव छूटे नहीं, कोई भी हकदार परिवार सरकार की योजनाओं से वंचित न रह जाए। मुझे खुशी है, इसी सोच के साथ बिहार सरकार ने डॉ. भीमराव अंबेडकर समग्र सेवा अभियान शुरू किया है। इस अभियान में 22 ज़रूरी योजनाएं एक साथ लेकर सरकार गांव-गांव, टोला-टोला पहुँच रही है। हमारा लक्ष्य है– हर दलित, महादलित, पिछड़े, अति-पिछड़े गरीब के घर तक सीधे पहुंचना। जब सरकार खुद लाभार्थियों तक पहुंचती है, तो ना कोई भेदभाव होता है, और ना ही कोई भ्रष्टाचार होता है। और तभी सच्चा-सामाजिक न्याय होता है।

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