पटना / नई दिल्ली : लालू प्रसाद यादव ‘नाटक’ करने में, ‘अखबार और टीवी में सुर्खियों में बने रहने के लिए’ कुछ भी कर सकते हैं, चाहे 76-वर्ष की आयु में अपने बड़े पुत्र को ही घर से बाहर निकलना पड़े। दिल्ली, कलकत्ता, बनारस, कानपुर, चेन्नई, लखनऊ या फिर देश के तक़रीबन 8000 शहरों में रहने वाले, जो विगत पांच दशकों से अख़बारों के पन्नों को देखते आये हैं, पढ़ते आये हैं, लालू को भलीभांति पहचानते होंगे। बिहार सहित, देश के अन्य भागों के अख़बारों के पाठकों और टीवी के दर्शकों का कहना है कि ‘जिस तरह लालू प्रसाद यादव पारिवारिक संस्कृति और नैतिकता का दृष्टान्त देकर अपने बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव को घर और पार्टी से छह वर्ष के लिए बाहर निकाल दिए हैं; क्या वे प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर तेज प्रताप यादव की विधान सभा की सदस्यता को छह वर्षों के लिए समाप्त करने के लिए कह सकते हैं? शायद नहीं।
लोग तो यह भी कह रहे हैं कि आज परिवार में नए उम्र की नयी फसल के आने से जो खुशियां है, क्या तेजप्रताप उन खुशियों में शामिल होने का हकदार नहीं है? लोगों का यह भी कहना है कि तेज प्रताप अपने छोटे भाई को बड़ा होने का सभी गुण सिखाये, त्याग भी किये, आज जब घर में छोटे भाई को दूसरा बेटा हुआ, तो उसके छठी में तेजप्रताप की अनुपस्थिति लालू को नहीं खलेगी। शायद लोग नहीं जानते हैं जब मीसा का जन्म हुआ था तो उसके पिता जेल में थे और माता राबड़ी देवी रो-रोकर मेरे एक मित्र को घर बुलाई थी, निहोरा विनती की थी “बच्चा के बाबू के बिना कैसे छट्ठी मनाएंगे मिश्र जी? कुछ कीजिये न।” शायद उस क्षण को लालू भी भूल गए।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक समीक्षक लव कुमार मिश्र कहते हैं: “हम गर्दनीबाग़ के सड़क संख्या 30 में रहते थे। एक दिन सुबह-सुबह लालू यादव का साला साधु यादव साईकिल से घर के दरवाजे पर दस्तक दिया। पैडिल से पैर नीचे करते कहता हैं: “लव भैय्या….. दीदी जल्दी से बुलाई है …रो रही है।” मोहल्ले के नागरिक थे साधु यादव की बहन और उनका दूल्हा। मैं समय की गंभीरता को देखते, साधु यादव के चेहरे को पढ़ते, तुरंन्त निकल पड़ा । घर पहुँचने पर राबड़ी सामने बैठी थी। चेहरे में चमक तो था, परन्तु मन उदास था। आँखें लाल थी। सभी लक्षण दिख रहे थे कि वह काफी रोना-धोना हुआ है। मैं चारो तरफ देख रहा था। मामला कुछ समझ में नहीं आ रहा था।”
मिश्र जी कहते हैं: तभी भोकार पारकर, फफककर राबड़ी रोने लगी और रोते-रोते बोलने लगी – ” ई त जेल में हथिन….. बचिया के छट्ठी उनके बिना कैसे करबई ? पहिला बच्चा हैं। मिश्र जी कुछ मदद करिये न।” यह सुनते ही मामला समझ में आ गया। लल्लू यादव (अब लालू यादव) उन दिनों जेल में थे। कारावास के दौरान राबड़ी देवी माँ बनी। लालू के घर में बेटी का जन्म हुआ था। साधु यादव वहीँ राबड़ी के बगल में खड़ा था। मैं आश्वासन देकर उठा।
लवकुमार जी कहते हैं: “उसी शाम पांच बजे डॉ जगन्नाथ मिश्रा प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे। वे नित्य शाम पांच बजे संवाददाताओं से मिलते थे। उस ज़माने में श्री धैर्या बाबू (डी. एन. झा) यूएनआई के वरिष्ठ संवाददाता थे। मैं डॉ मिश्रा से बताया। उन्होंने कहा की एक आवेदन पत्र दे दें। मैं चार आना में टाइप कराया। उस आवेदन पत्र के कोने पर ‘कुछ अपठनीय’ लिखा गया और अगले दिन लल्लू यादव अपनी बेटी को देखने, छठ्ठी में उपस्थित होने 15 दिन के पे-रोल पर फ़्रेज़र रोड केंद्रीय कारा से घर वापस आये। एक निमंत्रण पत्र लिखा गया, छपाया गया बेटी होने की ख़ुशी में । छठ्ठी के अवसर पर सत्यनारायण भगवान का पूजा भी था। पटना विश्वविद्यालय के कुलपति देवेन्द्रनाथ शर्मा भी उपस्थित हुए। बेटी का नाम ‘मीसा’ रखा गया।” शेष तो मीसा के जीवन से, शिक्षा से, राजनीति से बिहार के लोग बाग परिचित ही हैं।”
आइये दिल्ली चलते हैं। साल 2007 के जुलाई के प्रथम सप्ताह की बात है। लालू प्रसाद यादव भारत सरकार में रेल मंत्री थे। उस दिन पूर्वान्ह काल समाप्त हो रहा था और मध्यान्ह काल की शुरुआत हो गयी थी। रेल मंत्री कार्यालय में लालू यादव प्रवेश के साथ बाएं हाथ रखे सोफा पर बैठे थे। तभी कमरे में मंत्री जी के मेज पर पंक्तियों में रखे टेलीफोन में से एक फोन की घंटी टनटनायी । यह फोन सीधा 25-तुग़लक़ रोड से जुड़ा था। यह टाइप-VIII बंगला जुलाई 2002 में लालू यादव के नाम लिखा गया था, जब वे राज्य सभा के सदस्य थे। मंत्री बनने के बाद भी इसी बंगला में रहे।
फोन उठाते ही अधिकारी लपककर लालू जी के तरफ बढे। दूसरे छोड़ पर अर्धांगिनी राबड़ी देवी थीं जो उस समय बिलख रही थी। लालू बार-बार पूछ रहे थे ‘का हुआ? काहे रो रही हो?” तभी दूसरे छोड़ से हिचकी लेते राबड़ी देवी कहते ही: “बड़का आम के पेड़ से गिर गया है। हाथ-पैर तो नहीं टूटा है, कमर में और पीछे बहुत चोट लगी है।” तभी लालू कहते हैं: “कोई बात नहीं, मजबूत हो जायेगा। डॉक्टर पहुँचने वाले हैं।” और फिर फोन रख दिए।
जुलाई 2007 में बड़का (तेज प्रताप यादव) 19 वर्ष के थे जब आम के पेड़ से नीचे गिरे थे। आज 37 वर्ष के हैं और आज माता-पिता-परिवार-परिजनों की ‘नज़रों से गिर गए हैं।’ यह मैं नहीं, तेज प्रताप यादव के पिता लालू प्रसाद यादव का अपने बड़े पुत्र के प्रति किया गया व्यवहार दर्शाता है, साथ ही, उन्होंने जो सामाजिक क्षेत्र के मीडिया पर लिखा, वह गवाह है।
पटना सिटी के राजनीतिक विशेषज्ञ उमेश प्रसाद सिंह लालू के इस करनी को ‘लालू के पुत्र का वनवास प्रकरण’ की संज्ञा देते कहते हैं ‘लालू यादव एक ऐसे सामाजिक न्याय के पुरोधा राजनेता है जो अपने निर्णयों से इस देश को चमत्कृत कर देते हैं, ऐसा कम ही देखने को मिलता है? वे चाहे इन्दिरा गांधी या मोरारजी भाई या अन्य कोई हो? लालू जी ने अपने पुत्र तेजप्रताप यादव को गलत आचरण के आरोप पर पार्टी अध्यक्ष की हैसियत से छः-वर्ष के लिए निकाल दिया और घर के अभिभावक की हैसियत से घर से भी निष्कासित कर दिया।’

सिंह जी का कहना है कि “मेरा उनका बहुत पुराना रिश्ता रहा है। 1968 में मैं जब समाजवादी युवजन सभा का चुनाव- प्रभारी था तब लालू यादव संयुक्त सचिव बने थे; लालू जी लोहिया जी के समाजवादी आंदोलन के उपज है ना कि जे पी आंदोलन के। इस नाते मेरा अनुरोध है कि वे विधानसभा अध्यक्ष को माननीय तेज प्रताप यादव विधायक की सदस्यता समाप्त करने का पत्र लिखकर आग्रह करें । इसके साथ ही अपने दल के अन्य आचरण हीन विधायकों की भी सदस्यता खत्म करने और आगामी चुनाव में टिकट नहीं देने की घोषणा करें, भाजपा – जदयू – कांग्रेस में आचरणहीन विधायकों की लम्बी सूची है। लालू जी के इस कार्रवाई से अन्य दलों की भी कलई खुलेगी।”
वैसे प्रदेश के पण्डितजनों का मानना है कि तेजप्रताप की पत्नी का पैर इतना सुलक्षण है कि उसके कदम पड़ते ही लालू-राबड़ी दादा-दादी बने, पूर्व-मुख्यमंत्री और वर्तमान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अपने दूसरे बच्चे का पिता बने, घर-परिवार में ख़ुशी का माहौल बना। तेजस्वी यादव की पत्नी राजश्री ने कोलकाता के एक निजी अस्पताल में बेटे को जन्म दी। तेजस्वी यादव ने अपने फेसबुक पर नन्हे बेटे की फोटो शेयर करते हुए लिखा की “सुप्रभात इंतजार की घड़ी हुई खत्म घर में छोटे बेटे के आने से बहुत खुश हूँ। अब 76-वर्ष की आयु में क्या चाहिए लालू प्रसाद को?
चलिए तत्कालीन 25-तुग़लक़ रोड चलते हैं। तेजप्रताप यादव के आम के पेड़ से गिरने की घटना से छह साल पहले चलते दिल्ली के रायसीना रोड स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया आते हैं। गणतंत्र भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन 51 वां गणतंत्र दिवस के पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करने को सज्ज हो रहे थे। उधर ग्वालियर की राजमाता के रूप में लोकप्रिय रहीं श्रीमती विजया राजे सिंधिया अंतिम सांस ले रही थी। तारीख साल 2001 का 25 जनवरी था। भारत के संसद, जहाँ (अपवाद छोड़कर) सन 1957 से 1999 तक वे सांसद रही, से 100-कदम दूर प्रेस क्लब ऑफ़ इण्डिया में राजमाता के सचिव रहे बाल आँगरे ने 20 सितंबर, 1985 को राजमाता की हाथ से लिखी बारह पन्नों की वसीयत पढ़ रहे थे जिसमें राजमाता अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को अपने जीवन का सबसे दुखी अंग घोषित की थी।खैर।
वरिष्ठ पत्रकार, संपादक, राजनीतिक विशेषज्ञद्वय वीर सांघवी और नमिता भंडारे माधवराव सिंधिया की जीवनी में लिखते हैं, “राजमाता के अंतिम दिनों में माधवराव अक्सर उनके अस्पताल जाते, उनका हाथ पकड़ कर उनकी बगल में बैठते और हनुमान चालीसा पढ़ते थे।वसुंधरा राजे ने बाद में याद किया कि माधवराव की आवाज़ सुनते ही राजमाता की आंखों में चमक आ जाती। माधवराव की छोटी बहन यशोधरा ने बताया कि वो उन दिनों मां और बेटे की आंखों में आँसू देखती थी। उन्होंने कठिनतम समय में मेरा साथ दिया है।माधवराव ने जवाब में पूछा था आप आँगरे को तब भी नहीं छोड़ेगीं अगर आपका इकलौता बेटा आपसे दूर हो जाए। इस पर राजमाता ने कोई जवाब नहीं दिया था और इस बात से नाराज़ होकर माधवराव कमरा छोड़ कर चले गए थे।”
उस वसीयत पर दो गवाहों प्रेमा वासुदेवन और एस गुरुमूर्ति के हस्ताक्षर जिसमें माधवराव के बारे में कहा गया था कि वो न सिर्फ़ अपने राजनीतिक आकाओं के गुलाम बन गए हैं बल्कि उन्होंने मुझे और मेरे समर्थकों को परेशान करने में उनके औजार की भूमिका निभाई है। उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा कि वो अब इस लायक भी नहीं रहे कि वो अपनी माँ का अंतिम संस्कार करें।” माधवराव सिंधिया ने 1971 में जनसंघ के समर्थन से चुनाव जीते लेकिन 1979 आते-आते उन्होंने कांग्रेस का दामन पकड़ लिए। बावजूद इसके, माधवराव सिंधिया ने अपनी माता का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया था।
आइए, लालू के घर चलते हैं। लालू यादव आज 76-वर्ष के हैं। अनेकानेक बीमारियों से पीड़ित हैं। वैसे स्वयं को वे न तो वृद्ध मानते और ना ही बीमार, ताकि “हौसला बुलंद” रहे। इसलिए अपने जन्मदिन पर लिखे भी कि “लालू में आज भी वही ऊर्जा है जिसे लिए मैं फुलवरिया के अपने गांव से पटना चला था, ऊंच-नीच का भाव मिटाने की ऊर्जा, सामंती और तानाशाही सत्ता को हटाने की ऊर्जा, गरीब-गुरबों के हक़ की आवाज़ उठाने की ऊर्जा।” खैर।
विगत रविवार को लालू यादव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा कि उनके बड़े बेटे (तेजप्रताप) की “गतिविधि, लोक आचरण और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हमारे पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों के अनुरूप नहीं है। अब से पार्टी और परिवार में तेज प्रताप यादव की किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं रहेगी।” लालू लिखते हैं: “निजी जीवन में नैतिक मूल्यों की अवहेलना करना हमारे सामाजिक न्याय के लिए सामूहिक संघर्ष को कमजोर करता है। ज्येष्ठ पुत्र की गतिविधि, लोक आचरण तथा गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हमारे पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों के अनुरूप नहीं है। अतएव उपरोक्त परिस्थितियों के चलते उसे पार्टी और परिवार से दूर करता हूं। अब से पार्टी और परिवार में उसकी किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं रहेगी।”
लालू लागे लिखते हैं कि “उसे पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित किया जाता है। उन्हें अपने निजी जीवन का भला -बुरा और गुण-दोष देखने में वह स्वयं सक्षम हैं। उससे जो भी लोग संबंध रखेंगे वो स्वविवेक से निर्णय लें। लोकजीवन में लोकलाज का सदैव हिमायती रहा हूं। परिवार के आज्ञाकारी सदस्यों ने सार्वजनिक जीवन में इसी विचार को अंगीकार कर अनुसरण किया है। धन्यवाद।”
पटना महानगर जिला कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता राकेश कपूर कहते हैं कि “राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे पूर्व उपमुख्यमंत्री व विधायक तेज प्रताप यादव को अपनी सामाजिक छवि के बचाव में राष्ट्रीय जनता दल से निष्कासित करते हुए परिवार से भी निकाल दिया है। यह समाजवादियों का विशेष गुण मौकापरस्त होना होता है।लालू प्रसाद यादव तो अपनी छवि बचाने के लिए किसी भी स्तर पर जाकर रक्षा करेंगे, वो भी आगामी बिहार चुनाव को देखते हुए तो यह और जरूरी हो जाता है।”

कपूर कहते हैं कि “वैसे लालू जी की राजनीति परिवार की सुरक्षा के लिए सदा रही है और सभी स्तर का जनप्रतिनिधि अपने परिवार में चाहते हैं। लालू प्रसाद यादव जी में नैतिकता होती तो तेज प्रताप यादव को राष्ट्रीय जनता दल से निष्कासित करने के साथ-साथ बिहार विधान सभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर उनकी सदस्यता भी खत्म करने का अनुरोध करना चाहिए था।”काश !! धृतराष्ट्र लालू यादव जैसा निर्णय ले पाते तो महाभारत नहीं होता।
उधर तेज प्रताप यादव के फेसबुक अकाउंट पृष्ठ पर एक तस्वीर चिपकी, और चिपकते ही निरस्त कर दी गई। इसके बाद तेज प्रताप यादव ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि उनके सोशल मीडिया हैंडल को हैक कर लिया गया है और उन्हें बदनाम और परेशान करने की कोशिश की जा रही है। अब इतनी सारी तस्वीरें चिपक रही है, पिताजी अनुशासनिक कार्रवाई भी कर दिए, लेकिन बड़का ननकीरबा कुच्छो बोल रहा है।
राजनीतिक दृष्टि से तेज प्रताप पहली बार 2015 में वैशाली के महुआ सीट से विधायक बने। इसके बाद नवंबर 2015 से जुलाई 2017 तक वह नीतीश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री के पद पर रहे। 2020 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव ने उनकी सीट बदली दी और उन्हें हसनपुर से चुनाव लड़ाया तेजप्रताप यहां से भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे और जब 26 जुलाई 2017 को नीतीश कुमार ने राजद को छोड़कर एनडीए के साथ दोबारा सरकार का गठन किया तो इस बार तेज प्रताप यादव को पर्यावरण व वन एवं जलवायु परिवर्तन का प्रभार दिया गया। अभी हसनपुर से विधायक हैं।
इतना ही नहीं, 2017 में Y कैटेगरी की सुरक्षा श्रेणी में भी रहे उसी वर्ष जब केंद्र सरकार ने लालू यादव की सुरक्षा मे कटौती की तो तेज प्रताप ने प्रधानमंत्री मोदी को खाल उधेड़ने की धमकी दी थी। लेकिन दुख इस बात की रही कि लालू यादव उस दिन अपने पुत्र को नहीं ललकारे अलबत्ता बचाव किया।
इस बीच राबड़ी देवी के भाई और पूर्व सांसद सुभाष यादव युद्ध के बीच में आये और कहा कि लालू यादव ने किसी के दबाव में आकर तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से निकाला है। किसी ज़माने में लालू के चाहते साला सुभाष यादव का कहना है कि ‘वे पार्टी से निकाल सकते हैं’, लेकिन परिवार से नहीं।” परिवार से निकलने के लिए उन्हें न्यायालय जाना पड़ेगा। सुभाष यादव तो यहाँ तक कहे कि तेज प्रताप यादव की पहली शादी परिवार के लोगों ने जबरदस्ती करवाई थी जबकि वह शादी करना ही नहीं चाहता था। पूरा मामला दो लड़कियों से जुड़ा हुआ मामला है, जिनकी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया है।
बहरहाल, लालू के बारे में लव कुमार मिश्र कहते हैं जून 1993 में, लालू प्रसाद यादव ने पटना के गांधी मैदान में “गरीब रैली” नामक एक विशाल रैली का आयोजन किया। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से हर जिला मुख्यालय का दौरा किया और लोगों से इसमें भाग लेने का आग्रह किया। एक दिन, उन्होंने गांधी मैदान के पास उत्तरी पटना पुलिस मुख्यालय का दौरा किया और सिटी एसपी अजय कुमार के कक्ष में एक बैठक की। ठीक बगल में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) अनिल कुमार मलिक का कक्ष था – तकनीकी रूप से सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी – लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें अनदेखा करना चुना।
मलिक स्पष्ट रूप से नाराज़ थे। मैंने उनसे बात की और पूछा, “मुख्यमंत्री ने आपको अनदेखा किया और अपने जूनियर को प्राथमिकता दी। आप इस बारे में कैसा महसूस करते हैं?” उनका जवाब साफ़ था: “मुझे लालू की परवाह नहीं है।” मैंने उनसे साफ़ कहा कि उनका जवाब प्रकाशन के लिए था। “क्या आपको लालू से डर नहीं लगता?” मैंने पूछा। मलिक ने जवाब दिया, “मुझे इस जोकर की परवाह नहीं है।” जब लालू को बताया गया कि मलिक ने उन्हें “जोकर” कहा है, तो उनका जवाब था, “वह मेरा नौकर है।”
इसी तरह, गया से लौटने के बाद लालू ने अचानक मुख्यमंत्री आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। इस दौरान पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) भी मौजूद थे। लालू ने कहा, “मुझे बम से उड़ाने की साजिश थी और एक रिक्शा चालक को गिरफ्तार किया गया है।” जब पत्रकारों ने और जानकारी मांगी तो उन्होंने एसएसपी मलिक को विस्तार से बताने को कहा। मलिक ने कहा, “यह राजीव गांधी की हत्या की तरह ही एक गंभीर साजिश थी।” पत्रकारों ने तुरंत पूछा, “क्या पटना में लिट्टे के कार्यकर्ता मौजूद हैं?”

लालू ने मलिक पर झल्लाते हुए कहा, “क्यों हकला रहे हो?” एक महीने के भीतर मलिक का बिहार से तबादला कर दिया गया। उसी रैली की तैयारी के दौरान आरा में एक जनसभा में जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) खुद लालू के लिए मंच पर पानी का गिलास लेकर आए। गया में डीएम अपने घर से खाना लेकर आईं। मुजफ्फरपुर में लालू ने डीएम को मंच पर बुलाया और लोगों से पूछा, “ये कौन हैं?” जब भीड़ उन्हें पहचान नहीं पाई तो लालू ने कहा, “ये किस तरह के डीएम हैं? कोई उन्हें जानता तक नहीं है। लालू प्रसाद यादव का अफसरों से रिश्ता राजा और प्रजा जैसा था। वे फोन पर निर्देश देते और अफसर के जवाब देने से पहले ही फोन काट देते। वे अक्सर अफसरों को सलाह देते कि वे अपने परिवार के बारे में सोचें।
एक बार, 1976 बैच के एक आईएएस अफसर जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे, एक फाइल लेकर लालू के घर पहुंचे। लालू ने पूछा, “क्या तुम कुछ अतिरिक्त कमाते हो?” जब अफसर ने कहा कि नहीं, तो लालू ने उसे डांटा: “मूर्ख! अगर तुम मर गए, तो तुम्हारे परिवार की देखभाल कौन करेगा? कोई नहीं करेगा।” उनके नियमों का पालन करने वालों को कई जिलों का प्रभार दिया गया और महत्वपूर्ण विभागों का प्रमुख बनाया गया। एक बार, 1980 बैच के एक आईएएस अफसर की पदोन्नति की फाइल लालू के घर पर धूल खा रही थी। निराश होकर अफसर लॉन में चले गए जहां लालू बैठे थे और अंग्रेजी में उन्हें गालियां देने लगे। सुरक्षा गार्ड अफसर को बाहर निकालने के लिए आगे बढ़े, लेकिन लालू ने उन्हें रोक दिया: “उसे बोलने दो।”
इसके बाद उन्होंने अपने प्रधान सचिव को बुलाया और तुरंत पदोन्नति की फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए। हालांकि, कुख्यात चारा घोटाले में लालू के आदेश का पालन करने वाले आईएएस अधिकारियों को बाद में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने गिरफ्तार कर लिया था। अदालत ने उन्हें जेल भेज दिया। मुख्य सचिव बने सजल चक्रवर्ती की जेल में ही मौत हो गई।फूलचंद सिंह, के. अरुमुगम, महेश प्रसाद, बांके जूलियस और एस.एन. दुबे जैसे अन्य आईएएस अधिकारियों को घोटाले में उनकी भूमिका के लिए दोषी ठहराया गया और जेल भेजा गया। लालू फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। जब 1997 में लालू को पहली बार जेल भेजा गया था, तो बिहार सैन्य पुलिस मुख्यालय में आईपीएस मेस को अस्थायी जेल में बदल दिया गया था। वहां भी, मुख्य सचिव सहित वरिष्ठ नौकरशाह उनसे निर्देश लेने आते थे।
जब पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर अराजपत्रित कर्मचारियों की हड़ताल दो महीने से अधिक समय तक जारी रही, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों और कर्मचारी संघ के साथ बैठक की। उन्होंने मुख्य सचिव से पूछा, “क्या आपको राज्य सरकार का वेतनमान या वेतन संशोधन आयोग द्वारा अनुशंसित वेतन मिल रहा है?” अधिकारी ने स्पष्ट किया, “चूंकि आईएएस अधिकारी अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित हैं, इसलिए उन्हें केंद्रीय अधिकारियों के बराबर संशोधित वेतनमान मिलता है।”
मुख्यमंत्री ने जवाब दिया, “लेकिन आप राज्य में काम कर रहे हैं। अन्य कर्मचारियों की तरह, आप भी राज्य सरकार में हैं, हड़ताली कर्मचारियों की तरह। उन्हें भी केंद्रीय वेतनमान दें।” और हड़ताल वापस ले ली गई। राबड़ी देवी के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने एक बार छपरा प्रमंडल के आयुक्त पंचम लाल को फोन करके कहा, “आप मेरे पिता को परेशान कर रहे हैं। आप उनके बंदूक के लाइसेंस का नवीनीकरण क्यों नहीं कर रहे हैं?” आयुक्त ने उनके पिता की उम्र पूछी। यह जानने पर कि वे 76 वर्ष के हैं, आयुक्त ने जवाब दिया, “तो मुझे आपके पिता को गिरफ्तार करना होगा और हथियार जब्त करना होगा।
आप जानते हैं, 75 वर्ष से अधिक आयु के लोग कानूनी रूप से हथियार नहीं रख सकते।” मुख्यमंत्री ने दुखी स्वर में कहा, “तो जाने दीजिए।” कुछ सबसे पसंदीदा जिला मजिस्ट्रेट थे जो अपने मुख्यालय से बाहर निकलते समय अपने प्रमंडलीय आयुक्तों और सामान्य प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव को दरकिनार कर देते थे। वे सीधे लालू से बात करते थे, तब भी जब वे सीएम नहीं थे, अपने नियंत्रण अधिकारियों से अनुमति लेने के बजाय उन्हें केवल सूचित करते थे। एक बार वर्दी में एक महिला आईपीएस अधिकारी लालू के आवास पर पहुंची और कुछ मिनट तक इंतजार किया। लालू ने उससे पूछा कि वह सीएम के बंगले पर क्यों है। उसने झिझकते हुए जवाब दिया, “सर, मैं आपसे निजी तौर पर बात करना चाहती हूं।”
लालू ने उससे कहा, “निजी तौर पर, मैं केवल एक महिला से बात करता हूं – राबड़ी।” फिर अधिकारी ने अपने आईपीएस पति की पोस्टिंग के पड़ोसी जिले में तबादले का अनुरोध किया। लालू ने तुरंत उनकी बात मान ली और कहा, “आपके अनुरोध में कुछ भी निजी नहीं था।
अब यह सब देखकर लगता है कि लालू का यह कोई राजनीतिक स्टंट तो नहीं है।