नई दिल्ली (तिलक मार्ग) : छब्बीस जनवरी, 1950 को भारत गणतंत्र राष्ट्र घोषित होने और भारत का सर्वोच्च न्यायालय का अस्तित्व में आने के बाद भारतीय संविधान के तहत देश का सर्वोच्च न्यायिक निकाय में आज पहली बार न्यायपालिका में पारदर्शिता और जनता का विश्वास बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की संपत्ति और देनदारियों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। इतिहास में यह पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक की गई है।
वैसे, यह कहा जा रहा है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कल केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अगले निदेशक की नियुक्ति से संबंधित प्रधानमंत्री की अगुवाई में संपन्न बैठक में भाग लिया। लेकिन आतंरिक सूत्रों का कहना है कि ‘सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वतंत्र और गणतंत्र भारत में पहली बार सम्मानित न्यायमूर्तियों द्वारा अपनी-अपने सम्पत्तियों और देनदारियों के बारे में सूचना को सार्वजनिक करना ऐतिहासिक है। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति केंद्र द्वारा तीन सदस्यीय नियुक्ति समिति की सिफारिश पर की जाती है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और इसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
सूत्रों का यह भी कहना है कि “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस ऐतिहासिक कदम को प्रधानमंत्री ने सराहा है। साथ ही, यह भी उम्मीद किये हैं कि इस पहल को देश के अन्य उच्च न्यायालय के सम्मानित न्यायमूर्तियों द्वारा और निचली अदालतों के न्यायाधीशों के द्वारा भी किया जायेगा। कहा जा रहा है कि यह आने वाले समय में यह पारदर्शिता राजनीतिक क्षेत्र में – पंचायत से संसद तक – बाध्यकारी होगा। सूत्रों के अनुसार, अगर किसी भी प्रकार की कोई गलत सूचना दी जाती है, चाहे कार्यपालिका में हों, विधान पालिका में हो, न्यायपालिका में हों या जिला स्टार से प्रदेश के विशन सभाओं/परिषदों के रास्ते राज्यसभा और लोकसभा तक – पकडे जाने पर दंड के भागीदार होंगे।
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के हालिया आरोपों, खासकर जस्टिस यशवंत वर्मा विवाद के बाद, सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण अदालत ने 1 अप्रैल को फैसला किया कि जजों की संपत्ति का ब्यौरा शीर्ष अदालत की आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक डोमेन में रखा जाएगा। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्ण न्यायालय ने यह संकल्प लिया था कि न्यायाधीशों को पदभार ग्रहण करने पर तथा जब भी कोई महत्वपूर्ण प्रकृति का अधिग्रहण किया जाता है, तो मुख्य न्यायाधीश को अपनी संपत्ति की घोषणा करनी चाहिए। इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई घोषणाएं भी शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर संपत्ति की घोषणा डालना अनिवार्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट के 33 में से 21 जजों ने सोमवार को अपनी संपत्ति का खुलासा किया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अभी निम्नलिखित सम्मानित न्यायमूर्ति हैं: न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी एनए, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना एनए, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश, जस्टिस बेला एम.त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पमिदिघनतम श्री नरसिम्हा, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, जस्टिस जमशेद बुर्जोर पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता एन.ए, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस संजय करोल, जस्टिस संजय कुमार, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन, न्यायमूर्ति उज्जल भुयान, न्यायमूर्ति एस. वेंकटनारायण भट्टी, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह, न्यायमूर्ति संदीप मेहता, न्यायमूर्ति प्रसन्ना भालचंद्र वराले, न्यायमूर्ति एन.कोटिस्वर सिंह, न्यायमूर्ति आर. महादेवन, न्यायमूर्ति मनमोहन, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची।
फिलहाल, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और बीस अन्य न्यायाधीशों की घोषणाएं अपलोड की गई हैं, जिनमें वे तीन न्यायाधीश भी शामिल हैं जो निकट भविष्य में सीजेआई बनने की कतार में हैं। 12 जजों के बयान अभी तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।
यह कदम 1 अप्रैल को सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई में फुल कोर्ट मीटिंग के बाद उठाया गया है, जिसमें सभी जजों ने अपनी घोषणाओं को सार्वजनिक करने पर सहमति जताई थी। यह फैसला जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली हाई कोर्ट के जज के तौर पर आधिकारिक परिसर से कथित तौर पर नकदी बरामद होने के विवाद की पृष्ठभूमि में आया है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी संपत्ति का ब्योरा सीजेआई को सौंपना होता था, लेकिन ये प्रस्तुतियां गोपनीय रहती थीं। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति का विवरण मुख्य न्यायाधीश को प्रस्तुत करना होता था, लेकिन ये विवरण गोपनीय रखे जाते थे। अब पूर्ण न्यायालय ने यह निर्णय लिया है कि संपत्ति की घोषणा को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर डालना अनिवार्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार: “पहले से प्राप्त जजों की संपत्ति का ब्यौरा अपलोड किया जा रहा है। अन्य जजों की संपत्ति का ब्यौरा मौजूदा संपत्ति का ब्यौरा प्राप्त होने पर अपलोड किया जाएगा।” इससे पहले, वेबसाइट पर केवल उन न्यायाधीशों के नाम दिखाई देते थे जिन्होंने सी.जे.आई. के समक्ष अपनी संपत्ति की घोषणा की थी। 28 जनवरी 1950 को, भारत के एक प्रभुतासंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के दो दिन बाद, उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन किया गया था। इसका उद्घाटन पुराने संसद भवन के नरेंद्र मंडल में हुआ, जहाँ 1937 से 1950 तक, भारत संघ न्यायालय 12 वर्षों के लिए कार्यरत था।
ज्ञातव्य हो कि सर्वोच्च न्यायालय के उद्घाटन समारोह में भारत के पहले मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री हरिलाल जे. कानिया और संघीय न्यायालय के न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति श्री सैयद फज़ल अली, श्री एम. पतंजलि शास्त्री, श्री मेहर चंद महाजन, श्री बिजन कुमार मुखर्जी और श्री एस.आर. दास, इलाहाबाद, बॉम्बे, मद्रास, उड़ीसा, असम, नागपुर, पंजाब, सौराष्ट्र, पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ, मैसूर, हैदराबाद, मध्य भारत और त्रावणकोर-कोचीन के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायधीशों ने भाग लिया था । कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री, विदेशी राज्यों के राजदूत और राजनयिक प्रतिनिधि, भारत के महान्यायवादी एम.सी. सेतलवाड़, बॉम्बे, मद्रास, उत्तर प्रदेश, बिहार, पूर्वी पंजाब, उड़ीसा, मैसूर, हैदराबाद और मध्य भारत के महाअधिवक्तागण और बड़ी संख्या में अधिवक्तागण भी उपस्थित थे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उच्चतम न्यायालय के नियम प्रकाशित किए गए थे और संघीय न्यायालय के सभी अधिवक्तागण और एजेंट के नाम उच्चतम न्यायालय की नामावली में लिखे गए हैं, उद्घाटन कार्यक्रम को उच्चतम न्यायालय के अभिलेख के रूप में दर्ज किया गया था।

28 जनवरी 1950 को उद्घाटन के बाद, उच्चतम न्यायालय ने पुराने संसद भवन के एक हिस्से में अपनी बैठकें शुरू कीं। 1958 में यह न्यायालय एक नए भवन में चला गया। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 4 अगस्त 1958 को भारत के उच्चतम न्यायालय के वर्तमान भवन का उद्घाटन किया। भवन का आकार न्याय के तराजू की छवि को दर्शाता है। इसमें 27.6 मीटर ऊँचा गुंबद और एक विशाल बरामदा है। भवन की केंद्रीय विंग तराजू की मुख्य बीम है। मुख्य न्यायमूर्ति का न्यायालय केंद्रीय विंग के केंद्र में स्थित न्यायालयों में सबसे बड़ा है। मुख्य न्यायमूर्ति के न्यायालय के सामने प्रांगण में सत्य और अहिंसा के दूत, महात्मा गांधी की एक आदमकद प्रतिमा है।
इस प्रतिमा का अनावरण भारत के 26वें मुख्य न्यायमूर्ति ए.एम. अहमदी ने 1 अगस्त 1996 को किया था। यहाँ डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की एक 7 फ़ुट ऊँची प्रतिमा भी है, जिसका अनावरण भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने 26 नवंबर 2023 को भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ की उपस्थिति में किया था। मूल भवन का तीन बार विस्तार किया गया था – पहली बार 1979 में, दूसरी बार 1994 में और फिर 2015 में। 1979 में, परिसर में दो नई विंग – पूर्वी विंग और पश्चिमी विंग जोड़ी गई थी। भवन के सभी विंग में कुल 19 कोर्ट रूम हैं। 1994 में, भवन का दूसरी बार विस्तार किया गया जिसमें पूर्वी और पश्चिमी विंग को जोड़ा गया था। तीसरा विस्तार – उच्चतम न्यायालय संग्रहालय के पास नए विस्तारित खंड का उद्घाटन 4 नवंबर 2015 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति श्री एच.एल. दत्तू द्वारा किया गया था, और मौजूदा भवन के कुछ खंडों को नए भवन में स्थानांतरित कर दिया गया था।

17 जुलाई 2019 को, भारत के माननीय राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविंद ने भारत के उच्चतम न्यायालय के अतिरिक्त भवन परिसर का उद्घाटन किया। अतिरिक्त परिसर, जिसका कुल निर्मित क्षेत्र 1,80,700 वर्ग मीटर है, में पांच कार्यात्मक खंड और एक सर्विस खंड है। भवन की भंगिमा उसी वक्रता, रंग योजना, बलुआ पत्थर के बाहरी आवरण से बनाई गई है, जिस प्रेरणा के साथ उच्चतम न्यायालय की मूल वास्तुकला तैयार की गई थी। अतिरिक्त भवन परिसर में न्यायाधीशगण का नया पुस्तकालय भी है।1950 के मूल संविधान में उच्चतम न्यायालय की परिकल्पना एक मुख्य न्यायमूर्ति और 7 अवर न्यायाधीशगण के साथ की गई थी – और इस संख्या को बढ़ाने का कार्य संसद पर छोड़ दिया गया था।
प्रारंभिक वर्षों में, उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीश उनके सामने प्रस्तुत मामलों की सुनवाई के लिए एक साथ (एक बेंच में) बैठते थे। कार्यभार में वृद्धि को देखते हुए, संसद ने न्यायाधीशगण की संख्या 1950 में 8 से बढ़ाकर 1956 में 11, 1960 में 14, 1978 में 18, 1986 में 26, 2009 में 31 और 2019 में 34 (वर्तमान संख्या) कर दी। आज, न्यायाधीश दो और तीन की संख्या में न्यायपीठ में बैठते हैं और उच्चतम न्यायालय की न्यायपीठ के बीच परस्पर विरोधी निर्णयों या संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्न पर निर्णय लेने के लिए 5 या उससे अधिक न्यायधीश (संविधान पीठ), बड़ी पीठों में एक साथ आते हैं।