देख रहे हैं ​सम्मानित मोदीजी 👁 दरभंगा लालकिला परिसर का यह जलकुम्भी दरभंगा राज के लोगों की रुग्ण मानसिकता को परिभाषित कर रहा है 😢

​दरभंगा का ऐतिहासिक किला और जलकुम्भी

दरभंगा / पटना / दिल्ली : कल भारत के स्वाधीनता आंदोलन में अपनी भागीदारी का हस्ताक्षर करने वाला, देश के शैक्षिक जगत को मजबूत करने वाला दरभंगा का रामबाग परिसर आज बिलख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐतिहासिक स्वच्छ भारत अभियान का मृत स्वरूप अगर देखना हो तो दरभंगा राज के रामबाग स्थित ऐतिहासिक लाल किले के अंदर जल कुम्भियों को देखिये। वैसे दरभंगा को बंगाल का द्वार कहा जाता है और दरवाजे पर कलकुम्भी का यह दृश्य दरभंगा किला के स्वामी और इस परिसर में रहने वाले लोगों की रुग्ण मानसिकता का जीता-जागता दृष्टान्त है। बंगाल में जलकुम्भी को बंगाल का आतंक माना जाता है।

विद्वान, विदुषी, इतिहासकारों की नज़रों में ‘आतंक’ क्यों कहा गया, यह तो वही बताएँगे, लेकिन दरभंगा स्थित विद्यालयों के शिक्षकों का कहना है कि जल कुम्भी आम तौर पर स्थिर पानी में जन्म लेता है, बढ़ता है, जो जालों के प्राकृतिक गुणों को, खासकर ऑक्सीजन को अधिकाधिक खींच लेता है। परिणामस्वरूप जल के जीव-जंतु, विशेषकर मछलियां मृत्यु को प्राप्त करती है।

इतना ही नहीं, इसका विकास इतना तीव्र गति से होता है कि सम्पूर्ण जलाशय अथवा जलक्षेत्र इसके पत्तों से ढक जाता है। कृषि वैज्ञानिक एक तरफ जहाँ इसे कृषि (खाद) के मामले में उपयोगी मानते हैं, वहां और पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यह तालाबों, पोखरों में गंदे पानी के प्रवाह से होने वाले प्रदूषण से रोकता है।

यह सभी बातें सैद्धांतिक हैं। व्यावहारिक तौर पर बंगाल का आतंक इसलिए कहा जाता है कि बंगाल में प्रत्येक चार घरों के पीछे अथवा आगे तालाब होता था (है भी) जहाँ बंगाल के लोग मछलियों का पालन करते थे। अगर एक बार उस तालाब में जलकुम्भी का जन्म हो गया तो तालाब के पानी को नष्ट कर देता था, मछलियां मरने लगती थी।

उन दिनों मिथिला में भी (दरभंगा सहित) पोखरों और तालाबों की किल्लत नहीं थी। ‘बंगाल का द्वार’ होने के कारण दरभंगा में भी लोग पोखर और तालाबों को अधिकाधिक तबज्जो देते थे। पूरे मिथिला में स्थित पोखरों की संख्या की गणना और व्याख्या को तत्काल अगर छोड़ भी दें तो सिर्फ दरभंगा के महाराजा के साम्राज्य में तक़रीबन 9113 पोखर और तालाब थे। इसमें दरभंगा शहर में ही 350 के आस-पास थे।

आज शहर में पोखरों और तालाबों की क्या स्थिति है, दरभंगा के लोग अधिक वाकिफ हैं। दरभंगा के महाराजा का रामबाग पैलेस जिसे दरभंगा का लालकिला भी कहा जाता है, के परिसर के अंदर जलकुम्भी का यह आतंकी दृश्य महाराजा के वर्तमान पीढ़ी के वंशजों की मानसिकता का जीवंत दृष्टान्त है।

​दरभंगा का ऐतिहासिक किला और जलकुम्भी का वर्चस्व रुग्ण मानसिकता का परिचय दे रहा

सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप से दरभंगा किले की यह भूमि को मिथिला की गरिमा की बुनियाद माना जा सकता है। मिथिला की संस्कृति, मिथिला की विद्वता का पीठ माना जा सकता है। लेकिन आज मिथिला की पहचान पर, माँछ पर, पान पर, मखान पर ग्रहण लग गया है। ‘अवसरवादी’, चापलूसों, चाटुकार लोगों का हाल यह है कि महाराजाधिराज के इस ऐतिहासिक परिसर को जलकुम्भी मय बना दिए हैं। बंगाल के द्वार पर आतंक का माहौल बना दिए हैं।

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि दिन-रात-सुबह-शाम अपने-अपने हितों के लिए “पग पग पोखर माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान । विद्या वैभव शांति प्रतीक, सरस नगर मिथिला थींक” कविता पाठ करते थक नहीं रहे हैं। आज कलकत्ता के पान को दरभंगिया बनाकर मिथिला के बाज़ार में बेच रहे हैं। हालात यह है कि दरभंगा जिले में रोज तकरीबन 8 टन मछली की खपत है, लेकिन दरभंगा ज़िले के पोखरों से, तालाबों से 500 किलो तक भी मछली बाजार में नहीं पहुंच पाती है। यानी कहावत ‘महज एक ढोंग है और इन कहावतों को व्यापारीकरण कर रहे हैं’, इस जलकुम्भी की तरह।

दरभंगा के रामबाग पैलेस के मुख्य द्वार पर दरभंगा राज के पूर्व के 20 महाराजाओं की ‘ना’ ‘सही, महाराजा माधव सिंह के बाद से लेकर महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह तक के “सात राजाओं की आत्मा” अवश्य बिलखती होगी, सोचती होगी कि इस परिसर में कल तक तो ‘अनुशासन’ अपनी ‘पराकाष्ठा’ पर थी, रास्ता ‘खास’ था – आज यह जलकुम्भी मय कैसे हो गया ? संतानहीन महाराजा यह भी सोचते होंगे ‘किसके नाम संपत्ति किया जो मिथिला की गरिमा के साथ-साथ इस लालकिले की गरिमा को नेश्तोनाबूद कर दिया। हे परमात्मा !!!”

इस दृश्य को देखकर कुमार शुभेश्वर सिंह, राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह बिलखते होंगे

कहते हैं कि दिनांक 5 जुलाई, 1961 को “दि लास्ट विल एंड टेस्टामेंट” में दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह अपना वसीयत बनाते समय वसीयत के आठवें पैरा में लिखा है: “I, bequeath the property mentioned in Schedule “A” to my wife Maharani Rajyalakshmi for her life for her residence (and for no other purposes). She shall be entitled to reside in the said house and use the furniture and fittings only without let or hindrance by anybody. After her demise the said property shall vest in my youngest nephew Rajkumar Subheshwara Singh absolutely.“ और महारानी राज्यलक्ष्मी अपने पति और दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज की मृत्यु के 16-वर्ष बाद अंतिम सांस ली। दस्तावेज के अनुसार उक्त संपत्ति महाराजाधिराज के छोटे भतीजे कुमार शुभेश्वर सिंह का हो गया “अब्सॉल्युटली” – आगे कुमार शुभेश्वर सिंह भी मृत्यु को प्राप्त किये। स्वाभाविक है यह संपत्ति उनके दो पुत्रों को हस्तगत हुआ होगा।

इस किले के अंदर दो महल हैं। ऐसा माना जाता है कि राज परिवार की “कुल देवता” यहीं हैं । विगत कई भूकम्पों के दौरान महल नष्ट हो गया। लाल किला कई जगहों से दरक गया। फिर 2015 के तेज भूकंप में कई जगहों पर न सिर्फ क्षतिग्रस्त हुआ बल्कि किले के ऊपरी हिस्से का मलबा सड़कों पर भी गिर था। प्रवेश द्वार ढह गया। मुख्य मार्ग और किले के अंदर प्रवेश का रास्ता ढह गया। जगह-जगह दीवारों पर बड़े-बड़े पेड़ निकल आए हैं। कई जगहों पर 10 से 20 फ़ीट तक ऊंची दीवारों में दरार साफ दिखाई दे रही है। दीवार के दक्षिण इलाके में 90 फ़ीट की दीवार घट कर 20-25 फ़ीट ही रह गई है।

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शिड्यूल ‘A’ में रामबाग यानि दरभंगा राज फोर्ट के अंदर वाला विशालकाय भवन है। यानी महारानी राजलक्ष्मी के बाद यह संपत्ति राजकुमार शुभेश्वर सिंह की हो जाएगी। महारानी राजलक्ष्मी की मृत्यु सं 1976 में, यानी महाराजाधिराज की मृत्यु के 14 वर्ष बाद हुई और कुमार शुभेश्वर सिंह भी अब इस दुनिया में नहीं रहे।

दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह अपने जीते-जी अपनी वसीयत में लिखे थे: “शिड्यूल ‘A’ में वर्णित संपत्ति उनकी पत्नी महारानी राज्यलक्ष्मी को उनके जीवंत पर्यन्त रहने के लिए दिया जाता है। वे इस महल का रहने के अतिरिक्त किसी और ने उद्देश्य में नहीं करेंगी। वे इस भवन में रह सकती हैं, यहाँ के सभी फर्नीचरों और अन्य सुख-सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकती हैं। कोई भी व्यक्ति उनके इस कार्य में किसी भी तरह का व्यवधान नहीं कर सकता है। जब उनकी मृत्यु हो जाएगी तब यह संपत्ति हमारे सबसे छोटे भतीजे राजकुमार शुभेश्वर सिंह को सम्पूर्णता के साथ चली जाएगी।”

इस पगडण्डी के बाएं हाथ घर में रहते हैं कुमार शुभेश्वर सिंह के पुत्र कपिलेश्वर सिंह 

ज्ञातव्य हो कि दस वर्ष पूर्व पटना उच्च न्यायालय दरभंगा के महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह के रामबाग पैलेस से सम्बंधित एक याचिका को रद्द कर दिया था। याचिका में महाराजाधिराज के भतीजे दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्र-राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह-वादी थे; जबकि प्रतिवादी में कला, संस्कृति और युवा विभाग, बिहार सरकार के सचिव, विभाग के उप-सचिव, पुरातत्व विभाग के निदेशक, अधीक्षक (पटना अंचल), दरभंगा के जिला मजिस्ट्रेट, सब-डिविजनल अधिकारी और अंचल अधिकारी थे।

विषय था: “सरकार द्वारा बिहार के एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स के अधीन दरभंगा के रामबाग पैलेस को एन्सिएंट मोन्यूमेंट की श्रेणी में रखने से पूर्व लोगों से उनका विचार, ऑब्जेक्शन माँगना। लोगों से आपत्ति मांगने से संबंधित सूचना के प्रकाशन के साथ ही दरभंगा राज फोर्ट में रहने वाले लोगों में खलबली मच गयी थी। खासकर वे जो इस फोर्ट के प्रवेश द्वार के ठीक कोने पर दाहिने तरफ स्थित एक कोठी में रहते हैं। आज जलकुम्भी का जमाव उन्हीं के घर के सामने है। इस कोठी में कुमार शुभेश्वर सिंह रहते थे। उनकी मृत्यु के बाद आज उनका छोटा पुत्र कपिलेश्वर सिंह दरभंगा प्रवास के दौरान ‘सपरिवार’ रहते हैं । महाराजाधिराज के वसीयत के हिसाब से रामबाग फोर्ट का मालिक वे दोनों भाई ही है। कपिलेश्वर सिंह के बड़े भाई, भारत में बही, बल्कि विदेश में रहते हैं।

उक्त सूचना के प्रसार के तुरंत बाद दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्र – राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह – पटना उच्च न्यायालय से अनुरोध किये थे कि बिहार सरकार के डिप्टी सेक्रेटरी, आर्ट, कल्चर और यूथ डिपार्टमेंट द्वारा दिनांक 17 अगस्त, 2010 को जारी एक अधिसूचना, जिसमें उपरोक्त अधिकारी ने ‘आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1976 के अधीन लोगों से ‘ऑब्जेक्शन’ मांगे थे की दरभंगा स्थित महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के दरभंगा राज फोर्ट को क्यों नहीं “बिहार एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स रिमेंस” के अधीन ले लिया जाय, निरस्त कर दिया जाय।

बहस हुआ था । वादी के तरफ से यह कहा जाता है कि उक्त विभाग द्वारा जारी इस सूचना और आमंत्रण का कोई महत्व नहीं है। यह भी कहा जाता है कि उक्त कानून के सेक्शन 2 (a) के आलोक में उक्त दरभंगा राज फोर्ट को ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता है। वादी पक्ष यह भी तर्क दिए कि नियमानुसार उसी स्थान / भवनों को उक्त नियमों के तहत ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता है जो न्यूनतम 100-वर्ष पूरे नहीं किये हों। और इस नियम के तहत, वादी के अनुसार, चूँकि दरभंगा राज फोर्ट 100 वर्ष की आयु के नहीं हैं, अतः नियमनुसार यह ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता।

रामबाग परिसर की जमीन की बिक्री और निजी लोगों द्वारा मकान का निर्माण अब आम बात है

वादी की “घबराहट” को मद्दे नजर रखते प्रतिवादी के तरफ से यह कहा गया कि विभाग और सरकार के तरफ से अभी महज “ओब्जेक्शन’ आमंत्रित किये गए हैं की दरभंगा राज फोर्ट को आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1976 के अधीन क्यों नहीं “बिहार एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स रिमेंस” के अधीन ले लिया जाय ? ऑब्जेक्शन मांगने के पीछे लोगों का विचार आमंत्रित करना था, ताकि विभाग और सरकार इस दिशा में समुचित कार्रवाई कर सके। यदि किसी को इस दिशा में आपत्ति होगी, स्वाभाविक है, उनके विचार को भी विभाग और सरकार बहुत ही प्राथमिकता से अध्ययन और जांच करेगी ताकि निर्णय लेने में सरकार के तरफ से कोई चूक या भूल नहीं हो जाय ।

नियमों के अनुसार, कोई भी ऐसी चीज जो 100 साल या इससे अधिक पुरानी हो तो वह ‘पुरातात्विक’ है। इस ऐतिहासिक निर्णय का श्रेय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के एंटीक्वटीज एंड आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1972 को जाता है। यह कानून 1976 से लागू हुआ। इसका मकसद भारतीय सांस्कृतिक विरासत की बहुमूल्य वस्तुओं की लूट और उन्हें गैर-कानूनी माध्यमों से देश से बाहर भेजने पर रोक लगाना था। वैसे, इसके सिर्फ नकारात्मक और अनपेक्षित परिणामों का अतिरेक ही सामने आया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह कानून इतने कड़े और अभावग्रस्त नियमों से भरा हुआ है कि बेईमान ‘कला के सौदागर’ सरकारी अधिकारियों और कस्टम अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर अपना रास्ता निकाल ही लेते है।

अधिनियम के अनुच्छेद 2(1) (अ) के अनुसार कोई भी ऐसी चीज जो ‘ऐतिहासिक महत्व’ की हो या 100 साल या इससे अधिक पुरानी हो तो वह ‘पुरातात्विक’ है। और हर किसी को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास ऐसी प्रत्येक वस्तु का पंजीकरण कराना और उसके चित्र खिंचवाना अनिवार्य होता है फिर भले ही चाहे वह कोई व्यक्ति हो, कोई संगठन हो या कोई संस्थान (उदाहरण के तौर पर कोई मंदिर) । कानून का अनुच्छेद 11 पुरावशेषों और कलाकृतियों के आयात, निर्यात और देश के भीतर भी एक जगह से दूसरी जगह लाने-ले जाने को नियंत्रित करता है और किसी भी व्यक्ति के ऐसा करने पर प्रतिबंध लगाता है। ऐसा करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार या उसकी किसी एजेंसी को होता है।

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यदि कोई व्यक्ति ऐसा करना चाहे तो उसे (यदि वस्तु काे देश के भीतर ही एक जगह से दूसरी जगह ले जाता है) इसके लिए जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी. यदि उस वस्तु का आयात या निर्यात किया जाना है तो विदेश व्यापार के महानिदेशक एवं कस्टम विभाग से अनुमति लेनी होगी। बहरहाल, इस नियम में अनेकानेक खामियों के मद्दे नजर, पूर्व केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा के समय में कानून मंत्रालय के एक सेवानिवृत्त सचिव को काम सौंपा कि वे इस कानून की सभी खामियों को दूर करने, सुधार के उपायाें और नए सिरे से कानून बनाने पर प्रस्ताव बनाये जाए। हालांकि, सेवानिवृत्त न्यायाधीश मुकुल मुदगल समिति ने इस कानून में सुधार के लिए अपनी रिपोर्ट के रूप में 2012 में प्रस्तावित उपायों का जो चिट्ठा सौंपा था।

वादी-प्रतिवादी की बातों को बहुत ही तन्मयता के साथ अदालत सुनता है। अदालत का मानना था कि नियम के सेक्शन 3 (1) के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह ऐसी स्थिति में किसी भी प्रकार की सूचना जारी करें। इन बातों का कोई महत्व नहीं है की किस नियम के किस सेक्शन, सब-सेक्शन के तहत क्या लिखा है। यह महज लोगों से आपत्ति लेने सम्बन्धी सूचना है। अदालत का कहना था कि अगर वादी पक्ष यह मानता है कि दरभंगा राज फोर्ट की आयु 100 वर्ष नहीं हुई है, और इसे किसी भी कानून के तहत एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है तो उन्हें स्वतंत्रता है कि वे इस सम्बन्ध में अपना सम्पूर्ण विचार, आपत्ति, सम्बद्ध विभाग के अधिकारी के पास प्रस्तुत करें। अदालत यह भी स्वीकार किया कि उस समय इस मामले में अदालत का हस्तक्षेप ठीक नहीं होगा। और इस तरह वादी राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह द्वारा दायर याचिका निरस्त हो जाता है। लेकिन 100 वर्ष आज नहीं तो कल पूरे होंगे ही।

जो दृश्य देख रहे हैं यह इलाका इस दृश्य के लायक नहीं था, बहुत सम्मानित थी यह भूमि। चापलूसों ने, चाटुकारों ने इस भूमि को, महाराजा की गरिमा का सर्वनाश कर दिया

बहरहाल, कहा जाता है कि दरभंगा राज लगभग 2410 वर्ग मील में फैला था, जिसमें कोई 4495 गाँव थे, बिहार और बंगाल के कोई 18 सर्किल सम्मिलित थे। दरभंगा राज में लगभग 7500 कर्मचारी कार्य करते थे। आज़ादी के बाद जब भारत में जमींदारी प्रथा समाप्त हुआ, उस समय यह देश का सबसे बड़ा जमींदार थे। इसे सांस्कृतिक शहर भी कहा जाता है। लोक-चित्रकला, संगीत, अनेकानेक विद्याएं या क्षेत्र की पूंजी थी। लोगों का कहना है कि वर्त्तमान स्थिति के मद्दी नजर, दरभंगा राज के सभी लोगों की निगाह दरभंगा राज फोर्ट यानी करीब 85 एकड़ भूमि के बीचो बीच स्थित रामबाग का विशाल भवन है। आज भवन की कीमत जो भी आँका जाय, इस सम्पूर्ण क्षेत्र यानी दरभंगा के ह्रदय में स्थित 85 एकड़ भूमि की व्यावसायिक कीमत क्या होगी, यह आम आदमी नहीं सोच सकता है।

दरभंगा राज फोर्ट / किले के निर्माण के लिए कलकत्ता की एक कम्पनी को ठेका दिया गया किन्तु, जब तीन तरफ से किले का निर्माण पूर्ण हो चूका था और इसके पश्चिम हिस्से की दीवार का निर्माण चल रहा था कि भारत देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिल गयी और देश में प्रिंसली स्टेट और जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हो गया। परिणाम यह हुआ कि अर्धनिर्मित दीवार जहाँ तक बनी थी , वहीँ तक रह गयी और किले का निर्माण बंद कर दिया गया |

बहरहाल, लगता नहीं है कि दरभंगा राज का ऐतिहासिक रामबाग किला अपने अस्तित्व का सौ-साल देख पायेगा। क्योंकि दरभंगा के राजा, महाराजा, महाराजाधिराज सहित उन सबों का जीवन काल भी औसतन 60-वर्ष ही रहा। वे अपने जीवन में 60 वसंत ही देख पाए, उसी तरह, जिस तरह, महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह द्वारा स्थापित बिहार का अपना संतान-तुल्य दो समाचार पत्र आर्यावर्त – इण्डियन नेशन और पत्रिका मिथिला मिहिर, जो अपने यौवन काल में राष्ट्र की राजनीति की दशा और दिशा तय करता था, वह भी 60 वर्ष की अवस्था आते-आते पटना के फ़्रेज़र रोड पर अंतिम सांस लिया। पटना के लोगबाग ही नहीं, दरभंगा राज के, महाराजा के परिवार के लोग बाग़, जो सर कामेश्वर सिंह की संपत्ति को खरोंच-खरोंच कर नामोनिशान मिटा रहे हैं, आज भी चश्मदीद गवाह हैं।

आज भारत के न्यायालयों में, चाहे जिला न्यायालय हो अथवा भारत का सर्वोच्च न्यायालय, महाराजाधिराज की पत्नी, भतीजे, पोते-पोतियों, दामादों का एक-दूसरे के विरुद्ध जितने मुक़दमे लंबित हैं, सिर्फ महाराजाधिराज की सम्पति पर अधिपत्य के खातिर, शायद लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में आने वाले समय में दर्ज हो जाय, कोई आश्चर्य नहीं है । परन्तु, न “वादी” और न ही “प्रतिवादी” के चेहरों पर कोई सिकन है – आखिर संपत्ति तो मुफ्त में मिली है।

आज दरभंगा के नागरिक ही नहीं, मिथिला के लोग बाग़ ही नहीं, बिहार की जनता अगर उन “लाभार्थियों” से कहे कि क्या वे अपनी खून-पसीने की कमाई से रामबाग साम्राज्य जैसा एक लघु-साम्राज्य ही सही, रामबाग की दीवार से 95-फीसदी नीचे, छोटे कद वाला दीवार ही सही, रामबाग परिसर के क्षेत्रफल से 90 फीसदी कम जमीनी सतह पर एक लघु-किला बना सकते हैं? शायद नहीं। क्योंकि अगर कोई भी “लाभार्थी” बिना महाराजाधिराज की संपत्ति का प्रयोग किये ऐसा लघु किला खड़ा करते हैं तो वह सच्ची श्रद्धांजलि होगी महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह को, महाराजा रामेश्वर सिंह को और महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह को। लेकिन आज बहुत विस्वास के साथ यह लिख सकते हैं कि आज की तारीख में कोई भी “लाभार्थी” इस कार्य को करने में “सक्षम” नहीं हैं।

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कभी दिल्ली के लाल किला के तर्ज पर बना रामबाग का लाल किला आज अपने अस्तित्व को अपनी लुढ़कती-ढुलकती ईंटों के माध्यम से अपना भविष्य आंक रहा है। आज महाराजा के इस ऐतिहासिक परिसर में कई लोगों ने अपने-अपने घरों के पते में “रामबाग परिसर” लिखकर डाकखाना, दूरभाष केंद्रों, निबंधन कार्यालयों में प्रस्तुत कर दिए हैं। यहाँ तक कि इस परिसर में रहने वाले लोगबाग, जिन्होंने रामबाग परिसर की जमीनों को अपने नाम लिखाकर, अपन-अपना आशियाना बनाये हैं, शायद उन्हें भी राज दरभंगा के इतिहास के बारे में, आकाश छूती इस किले के चाहर दीवारी के बारे में कुछ भी पता नहीं होगा । हो भी कैसे?

भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने 1977-78 में इस किले का सर्वेक्षण भी कराया था , तब , इसकी ऐतिहासिक महत्वता को स्वीकार करते हुए किले की तुलना दिल्ली के लाल किले से की थी | किले के अन्दर रामबाग पैलेस स्थित होने के कारण इसे ‘ राम बाग़ का किला’ भी कहा जाता है | किले के निर्माण से काफी पूर्व यह इलाका इस्लामपुर नामक गाँव का एक हिस्सा था जो की मुर्शिमाबाद राज्य के नबाब , अलिबर्दी खान , के नियंत्रण में था | नबाब अलिबर्दी खान ने दरभंगा के आखिरी महाराजा श्री कामेश्वर सिंह के पूर्वजों यह गाँव दे दिया था | इसके उपरांत सन 1930 ई० में जब महाराजा कामेश्वर सिंह ने भारत के अन्य किलों की भांति यहाँ भी एक किला बनाने का निश्चय किया तो यहाँ की मुस्लिम बहुल जनसँख्या को जमीन के मुआवजे के साथ शिवधारा, अलीनगर, लहेरियासराय, चकदोहरा आदि जगहों पर बसाया। किले की दीवार काफी मोटी है। दीवार के उपरी भाग में वाच टावर और गार्ड हाउस बनाए गए थे।

अनेकानेक लेख प्रकाशित हैं इस किले के बारे में । किले की दीवारों का निर्माण लाल ईंटों से हुई है | इसकी दीवार एक किलोमीटर लम्बी है | किले के मुख्य द्वार जिसे सिंहद्वार कहा जाता है पर वास्तुकला से दुर्लभ दृश्य उकेड़े गयें है | किले के भीतर दीवार के चारों ओर खाई का भी निर्माण किया गया था। उस वक्त खाई में बराबर पानी भरा रहता था। कहा जाता है कि महाराजा महेश ठाकुर के द्वारा स्थापित एक दुर्लभ कंकाली मंदिर भी इसी किले के अंदर स्थित है।

कहा जाता है कि महाराजा महेश ठाकुर को देवी कंकाली की मूर्ति यमुना में स्नान करते समय मिली थी | प्रतिमा को उन्होंने लाकर रामबाग के किले में स्थापित किया था। यह मंदिर राज परिवार की कुल देवी के मन्दिर से भिन्न है और आज भी लगातार श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। किले के अंदर दो महल भी स्थित हैं | सन 1970 के भूकम्प में किले की पश्चिमी दीवार क्षतिग्रस्त हो गयी , इसके साथ ही दो पैलेस में से एक पैलेस भी आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गयी | इसी महल में राज परिवार की कुल देवी भी स्थित हैं | यह महल आम लोगों के दर्शनार्थ हेतु नहीं खोले गए हैं | वैसे दुखद बात यह है की दरभंगा महाराज की यह स्मृति है अब रख – रखाव के अभाव में एक खंडहर में तब्दील हो रहा है |

​हे भगवान् !!!!

दरभंगा राज की अन्य धरोहरों की तरह दरभंगा राज किला का स्वास्थ भी अच्छा नहीं है। महाराजाधिराज की सम्प्पतियों के बंटबारे के बाद, कोई भी लाभार्थी, महाराजा के समानार्थ ही सही, कभी दरभंगा राज फोर्ट के तरफ ध्यान नहीं दिए। सम्पूर्ण फोर्ट का परिसर आवक-जावक रास्ता बन गया। संरक्षण के अभाव में किले की दीवारें क्षतिग्रस्त होने लगीं। ईंटों को मिट्टी खाने प्रारम्भ कर दिए। जल-जमाव किले के दीवार को और भी कमजोर बना दिया है, और इसके ढहने का भी खतरा बना हुआ है।

अनेकानेक स्थानों पर दीवारों के उपरी हिस्से में पीपल के पौधे अपनी जड़ो से दीवारों को कमजोर करते जा रहें हैं। इतना ही नहीं, दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह के समय इस दरभंगा फोर्ट में पैर रखना एक सम्मान की बात होती है; आज उनकी मृत्यु के बाद राज परिवार के लोगों ने रामबाग परिसर की कीमती जमीन को बेचना शुरू कर दिया। आज सैकड़ों मकान इस परिसर के अंदर दीखते हैं। उस मिटटी की जिसे महाराजा के समय पूजी जाती थी, आज उनके परिवार के लोग बाग़ के साथ-साथ उस परिसर में रहने वाले नित्य रौंदते हैं – आवक-जावक रास्ता है। इतना ही नहीं, अब तो होटल और सिनेमा घर भी बन गए हैं।

वैसे इस जलकुम्भी को देखकर विश्वास नहीं होता, लेकिन इस परिसर में रहने वाले लोगों का कहना है कि संतानहीन महाराजा डॉ. कामेश्वर सिंह – जिन्होंने मृत्यु से पूर्व वसीयत अपने अनुज राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के पुत्र और उनके संतान के नाम लिख दिए, लेकिन दरभंगा राज का उत्तराधिकारी घोषित किये बिना अंतिम साँस ले लिए – के भतीजे कपिलेश्वर सिंह इस परिसर को साफ़ करने का असफल प्रयास कर रहे हैं। लेकिन स्थानीय लोग यह भी कहते नहीं थकते कि ‘जाबे धरि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं दरभंगा किला के सफाई हेतु नारा नै देथिन, ताबे धरि रामबाग में जलकुम्भी एहिना रहत।”

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