कांग्रेस की तरह बिहार भाजपा में भी ‘मुख्यमंत्री के दावेदारों की बाढ़’, ‘ठंढ़क’ में होने वाले चुनाव’ के लिए गर्मी में गर्मागर्मी

नीचे सूखी धरती और ऊपर आसमान में खेल देखते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 

पटना: कल्पना कीजिये कि बिहार के ‘वर्तमान’ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक पदोन्नति के लिए, या फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय में “फिर एक बार” बने रहने के लिए “अन्तर्वीक्षा” हो रहा है। मेज के एक तरफ “अनुशासित रूप” में सज-धज कर, सुगन्धित परफ्यूम का छिड़काव कर, आमला तेल लगा सफ़ेद शिरोरुह को कंघी कर अभ्यर्थी नीतीश कुमार बैठे हैं। रह-रह कर वे अपने दाहिने-बाएं हाथ को अपने मुख पर ले जाकर साफ़ कर रहे हैं। दांत से समर्थित नहीं होने के कारण दोनों होठों को सूखने से बचाने के लिए बार-बार विभिन्न दिशाओं में ले जा रहे हैं। चेहरे पर तेज तो है, लेकिन ‘भयभीत’ भी प्रतीत हो रहे हैं। 

और मेज के दूसरे तरफ अन्तर्वीक्षा लेने बैठे हैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह। दोनों प्रदेश में राजनीतिक निर्णय लेने के लिए सुबह-सवेरे दिल्ली से पटना पदार्पित हुए हैं। अन्तर्वीक्षा कक्ष का आकार-प्रकार कोई 30 वर्ग फुट में हैं। चतुर्दिक पारदर्शी शीशा लगा है। शीशे के दूसरे तरफ पटना ही नहीं, भारत वर्ष के छोटे-बड़े स्ट्रिंगर्स से लेकर संपादक तक खचाखच भरे हैं। प्रश्नकर्ता और उत्तरदाता की आवाज सुनने के लिए ‘ठेकेदारी प्रथा के तहत’ बेहतरीन आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था है। कक्ष का तापमान 16 डिग्री है। सन्नाटा पसरा है। 

इससे पहले कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश से गृहमंत्री श्री अमित शाह प्रश्न पूछने के लिए तैयार हों, नीतीश कुमार अपने जेब से द्वितीय वस्त्र निकालकर पसीना पोछते हैं और मेज पर रखे पानी से भरे गिलास को उठाकर दंतहीन मुख तक ले जाते हैं। प्रधानमंत्री उनकी शारीरिक भाषा को देखते अपने सामने रखे कागज पर कुछ लिखते हैं। उधर शीशे के दूसरे तरफ खड़े नीतीश कुमार के ‘तथाकथित समर्थक’, जिसमें कुछ मंत्री, कुछ राजनीतिक ठेकेदार भी हैं जिनका मंत्रियों और अधिकारियों से जबरदस्त साठ-गाँठ है, नीतीश ,कुमार को हतास नज़रों से देखते हैं। अन्तर्वीक्षा कक्ष और उस कक्ष के बाहर परिसर में तापमान धीरे-धीरे उष्मता के तरफ़ बढ़ रहा है। कक्ष के कोने में सूखते कंठ को तरल बनाये रखने के लिए पानी के छोटे-छोटे प्लास्टिक वाला गिलास रखा है। 
तभी प्रधानमंत्री प्रश्न पूछते हैं: नीतीश जी बिहार के छठे और सातवें मुख्यमंत्री कौन थे और दोनों कितने दिन कार्यालय में रहे? 

प्रश्न सुनते ही नीतीश कुमार अपने मुँह को पोछने लगते हैं। जिह्वा को मुख के अंदर इंडिया गेट गोल चक्कर जैसा घुमाने लगते हैं। सामने शीशे के उस पार खड़े उनके तथाकथित हितैषी अपने मोबाइल और लैपटॉप पर गूगल खोज करने लगते हैं। प्रश्न का उत्तर नहीं मिलने पर प्रधान मंत्री कागज पर फिर कुछ लिखते हैं।

 
तभी श्री अमित शाह कहते हैं “नीतीश जी सीधा बिंदु पर आते हैं। आगामी चुनाव में आप मुझे अपनी पार्टी का के वर्तमान संख्या से कितना स्थान दे रहे हैं? प्रश्न पूरा भी नहीं हुआ था कि नीतीश कुमार कहते हैं “हम आपके हो गए सनम” सभी आपका ही है। चौबीस पहले दिए, चौबीस और ले लें। लेकिन  …. ”

तभी प्रधानमंत्री बीच में कहते हैं: आप धृतराष्ट्र हो गए हैं नीतीश जी । धृतराष्ट्र को पुत्र मोह हो गया था और आपको मुख्यमंत्री कार्यालय में रखी कुर्सी से। मोह का त्याग करें। आप पवन कुमार चामलिंग, नवीन पटनायक, ज्योति बसु, जी अपंग, लाल थनहवला, वीरभद्र सिंह, माणिक सरकार, एम करुणानिधि, प्रकाश सिंह बादल, यशवंत सिंह पंवार, नेफ्यू रिओ, श्रीकृष्ण सिन्हा, शिवराज चौहान, मोहनलाल सुखदिआ जैसे ‘विरासत मुख्यमंत्रियों’ की सूची में हैं। यह एक इतिहास है। आपके अंक को पार करने वाला आने वाले समय में शायद कोई नहीं होगा। आगामी वर्ष में आप अपने जीवन का हीरक जयंती मनाएंगे। अब युवाओं को मुख्यमंत्री कार्यालय में आने के लिए स्थान छोड़ दें। अधिक जिद अच्छा नहीं होता। अब तक आप जो कहे, हम मानते गए।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार

प्रधानमंत्री के मुख से जैसे-जैसे शब्द निकल रहे थे, अभ्यर्थी नीतीश कुमार का मुख मलिन हो रहा था। मुखमण्डल का प्रकाश ‘बादलमय’ हो रहा था। शीशे के दूसरे तरफ उपस्थित लोगों के चेहरों पर भी सहस्त्र फांक दिख रहा था। कुछ हंस रहे थे, कुछ मन ही मन व्यथित हो रहे थे। कुछ भाजपा में प्रवेश के लिए ‘हरी पत्ती’ प्राप्त कर लिए थे, कुछ संदेह के घेरे में लिपट रहे थे। इस बीच नीतीश कुमार के जीवन में चलने वाली सांस की तरह चिपके उनके ‘अपने लोग’ अपना भविष्य देख रहे थे। बाहर उपस्थित पत्रकार दीर्घा में टिकर पर कहानियों की श्रृंखला लिखी जा रही थी। टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज आ रहा था। 

बहरहाल, पटना में गर्मी अभी से उफान पर है। वैसे बिहार में इन दिनों कुछ ज्यादा ही गर्मी पड़ रही है। मौसम के साथ-साथ राजनीतिक गर्मी से भी राज्य उबलने लगा है। अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसको लेकर सभी पार्टियां तैयारियों में जुट चुकी हैं। चुनाव को लेकर हमेशा एक कदम आगे रहने वाला एनडीए अभी से ही जोश में है। भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बिहार के नेताओं के साथ चुनावी रणनीति बना रहे हैं। दिल्ली के बाद अब बिहार में फिर से अपनी सरकार बनाने को उतावली भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है और शायद इसलिए पिछले दिनों एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार को लाडला संबोधित कर यह जता दिया था कि बिहार में इस बार भी नीतीश ही सीएम फेस रहेंगे। हालांकि अभी से इस पर भी बात होने लगी है कि इस बार भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर अस्वस्थता के कारण चुनाव बाद भाजपा उनके बदले किसी और को रिप्लेस कर सकती है। 

बिहार की राजनीति सीधे केंद्र की राजनीति पर असर डालती है, इसलिए केंद्र की किसी भी सरकार के लिए बिहार का समीकरण इंपाॅर्टेंट होता है। राज्य की राजनीति कब किस तरह से करवट लेगी, कहना मुश्किल है, पर इतना तो तय है कि इस बार भी बिहार का चुनाव नीतीश कुमार के इर्द गिर्द बुना जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में 243 सीटों की विधानसभा में भाजपा 110 सीटों तथा जदयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस बार सीटों के बंटवारे को लेकर रस्साकशी व सौदेबाजी देखने को मिल सकती है, क्योंकि पिछली बार जेडीयू मात्र 43 सीटों जीत पाई थी। नीतीश का स्वास्थ्य भी अभी अच्छा नहीं चल रहा है, इसलिए भाजपा हरसंभव कोशिश करेगी कि जदयू को कम से कम सीटें दी जाए। हालांकि सबकुछ उस समय की परिस्थिति पर ही निर्भर करेगा। अगर राजद को अच्छी सीटें आती हैं तो नीतीश कुमार के पास आरजेडी के साथ जाने का विकल्प बना रहेगा और इसका डर भाजपा को भी है। 

अपने मजबूत वोटबैंक की वजह से पक्ष-विपक्ष के केंद्र में नीतीश

नीतीश कुमार 74 साल के हो गए हैं, ऐसे में इस बार वे सीएम कुर्सी पर बैठेंगे या नहीं, इस पर संशय है। बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले वरीय पत्रकार उमाकांत लखेड़ा कहते हैं कि नीतीश में अब वो दम नहीं, जो बिहार को अपने मनमुताबिक चला सके। अभी ही वे बीमार लग रहे हैं और कुछ भी बोल जा रहे हैं। बिहार के लिए भले ही उन्होंने बहुत काम किया है, पर लोगों को भी लगने लगा है कि अगले पांच साल के लिए नीतीश तो बिलकुल फिट नहीं हैं। नीतीश कुमार ने अपने बाद जदयू में दूसरी पंक्ति का कोई नेता उभरने ही नहीं दिया और 23 साल से पूरी पार्टी उनके ही इर्द-गिर्द घूम रही है। दूसरी पंक्ति में अब उनके बेटे निशांत कुमार को आगे किया जा रहा है, पर 40 की उम्र पार कर रहे निशांत राजनीतिक विरासत संभालने में कितने सफल हो पाएंगे, यह तो वक्त ही बताएगा। 

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राजनीति विश्लेषकों की मानें तो नीतीश के बाद जेडीयू का अस्तित्व मुश्किल में लग रहा है। सबसे बड़ी बात नीतीश कुमार के पास 14 प्रतिशत वोट है और भाजपा भी इस बात को मानती है कि नीतीश जिस तरफ जाते हैं, जीत उसी की होती है। इसी कारण बिगड़ते स्वास्थ्य व बोल के बावजूद भी नीतीश भाजपा के लाडला बने हुए हैं। एक बार मान भी लें कि अगर नीतीश को अलग-थलग किया गया, तो अति पिछड़ा वर्ग का वोट टूटेगा। इस टूट का बड़ा हिस्सा भाजपा में जाएगा, तो राजद को भी फायदा मिलेगा। यह वही वोटबैंक है जो राजद से टूटकर जदयू में आया है। राज्य में 15 साल की सरकार के बाद भी विपक्षी पार्टी राजद का वोट प्रतिशत लगातार 26 से 27 प्रतिशत के बीच बना हुआ है। अति पिछड़ा वर्ग काफी जद्दोजहद के बाद जेडीयू के साथ गया है। अगर राजद को इस वोटबैंक में सेंध लगानी है तो टिकट बंटवारे में उस जमात को प्रतिनिधित्व देना पड़ेगा। 

बिहार विधान सभा

2020 में एनडीए को जीत मिली और नीतीश के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ था, पर 2022 के अगस्त में नीतीश महागठबंधन में चले गए और राजद संग सरकार बना ली। इस दौरान ‘सर्वमान्य नेता’ ने विपक्षी दलों को एकजुट किया और ‘इंडिया गठबंधन’ की नींव रखी, पर जनवरी 2024 में फिर मन बदला और वापस एनडीए में लौट गए। तबसे नीतीश कुमार कई बार सार्वजनिक मंचों से कह चुके हैं कि वह अब कहीं नहीं जाने वाले हैं। पर, मन और दिल कब बदल जाये, कौन जानता है? अमित शाह के हालिया बयान के बाद पक्ष-विपक्ष के केंद्र में आ चुके नीतीश इतने सालों बाद भी क्यों सत्ता के शीर्ष पर बने हैं? 

राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है, परिस्थितियां बहुत कुछ बदल देती हैं। ऐसे भी राजनीति में ‘खेला’ आम हो चुका है। बिहार में भी समय-समय पर ‘खेला’ होते रहा है, इसलिए लोगों को लगता है कि 2025 के चुनाव से पहले राज्य में एक बार फिर ‘पलटबाजी’ हो सकती है, पर यह अफवाह या ‘वायरल भविष्यवाणी’ कितनी सच होगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। फिलहाल एनडीए में सबकुछ सामान्य है या ऐसे कहें कि सामान्य दिखाने की कोशिश जारी है। दरअसल, बिहार राजनीति में फिर से नीतीश कुमार ट्रेंड कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बिहार के सीएम फेस को लेकर कहा था कि यह पार्लियामेंट्री बोर्ड तय करेगा कि सीएम कौन होगा?

उसके बाद से कयास लगाए जाने लगे कि नीतीश कुमार फिर से असहज हो गए हैं। हालांकि अमित शाह के बयान पर जेडीयू ने साफ कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एनडीए का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे। दो कदम आगे बढ़ते हुए जदयू ने कई पोस्ट भी जारी कर दिए, जिसमें संदेश दिया गया कि 2025 में अगर एनडीए की सरकार बनी, तो चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे। जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो। क्यों करें विचार, जब हैं ही नीतीश कुमार। इस तरह के स्लोगन प्रेशर पॉलिटिक्स की एक बानगी हो सकती है, पर यह भी सच्चाई है कि भाजपा के लिए अब भी मजबूरी हैं नीतीश कुमार। 

भाजपा नेताओं को शाह का गुरुमंत्र, जनता के बीच जाकर मोदी के कामकाज बताएं

एक-दूसरे के वोटबैंक में सेंधमारी की कोशिशें भी जारी हैं। भाजपा के प्रदेश परिषद की बैठक में भाजपा यह कहने तक में संकोच करती रही कि पार्टी अकेले सरकार बनाने की इच्छा रखती है। हालिया मंत्रिपरिषद विस्तार में भी भाजपा ने अपने वोटबैंक सवर्ण व वैश्य को साधते हुए कुर्मी, कोइरी सहित अति पिछड़ों को भी साधा है। कल्याणकारी योजनाओं से भाजपा अति पिछड़ा वर्ग के पास जा रही है, तो जदयू की मुख्य वोटर महिलाओं में भी पैठ बढ़ा रही है। 

पिछले महीने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भाजपा नेताओं को आगामी चुनावों की तैयारी के लिए गुरुमंत्र दिया। उनका कहना था कि बिहार में मतदाता प्रतिशत बढ़ाने व कमजोर क्षेत्रों को मजबूत करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने पार्टी नेताओं से वोट शेयर को बढ़ाने की रणनीति पर काम करने को कहा। अमित शाह का कहना था कि मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भाजपा को कभी 23 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिले थे, वहीं महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत के आसपास ही था, पर पार्टी ने ऐसे वीक प्वाइंट को पहचान कर उसपर काम किया और रिजल्ट सबके सामने है। बिहार में भी उन्होंने नेताओं से कमजोर बूथों को चिह्नित कर वहां काम करने और जनता का भरोसा जीतने को कहा है।
 

आप राजनीतिक गुरु हैं अमित जी, ध्यान रखिएगा – प्लीज

दरअसल, राज्य में विपक्षी गठबंधन की कमजोरियां भाजपा के लिए एक बड़ा अवसर है। अगले छह महीनों के लिए एक विस्तृत रोडमैप पेश किया गया। इसमें बूथ-स्तरीय कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग, मतदाता जागरूकता अभियान, सोशल मीडिया के जरिए प्रचार और स्थानीय मुद्दों को उठाने जैसे बिंदु शामिल है। इसके साथ ही यहां की जनता के बीच केंद्र सरकार की उपलब्धियों जैसे उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत और किसानों के लिए शुरू की गई योजनाओं को जोर-शोर से प्रचारित करने की आवश्यकता बताई। दरअसल, भाजपा इस बार किसी हाल में बिहार में अपनी मौजूदगी को और बेहतर करना चाहती है, ताकि अगर चुनाव बाद नीतीश का मन बदले तो जोड़-तोड़ कर किसी तरह से सरकार बनाने में सफल हो जाए। भाजपा फिलहाल संभल कर राजनीति कर रही है, ताकि नीतीश कुमार दूर भी न जाएं और वह अपने पैरों पर खड़ी भी हो जाए। 

माहौल अभी से बनने लगा है, इधर भी और उधर भी…  

सियासी हलकों में चर्चा गर्म है कि क्या एनडीए से नीतीश कुमार का फिर मोहभंग होता जा रहा है? क्या नीतीश कुमार का समाजवाद फिर जाग उठेगा और वे फिर से लालू यादव को पुराना मित्र बताने लगेंगे? सवाल कई हैं, जिसका जवाब सिर्फ और सिर्फ नीतीश कुमार के ही पास है, क्योंकि अब भी नीतीश कुमार कब, कौन सी चाल चलेंगे, यह सिर्फ उन्हें ही पता होता है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कुछ समय पहले कहा था कि सीएमओ को बीजेपी वाले चला रहे हैं, सीएम नीतीश का सरकार पर कंट्रोल नहीं है। हाल के दिनों पक्ष-विपक्ष में नीतीश कुमार को लेकर बयानबाजी तेज हो गई है। राजद नेता का कहना है कि विपक्ष में रहते हुए तेजस्वी यादव ने कभी भी नीतीश कुमार का अपमान नहीं किया, जबकि भाजपा के नेता सम्राट चौधरी नीतीश कुमार को ‘पागल’ तक कह चुके हैं। 

राजद नेता भाई वीरेंद्र का कहना है कि नीतीश कुमार का मन सांप्रदायिक शक्तियों के साथ रहकर भर गया है तो वो इधर आ सकते हैं, इधर उनका स्वागत रहेगा। किसी का तो यहां तक कहना है कि बिहार में भाजपा बहुमत में आएगी तो सीएम बदल देगी। अपना सीएम बनाएगी महाराष्ट्र जैसा, नीतीश जी सजग और सतर्क रहें, वरना उनके साथ खेला तय है।

हालांकि, जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार फिलहाल ऐसा कोई फैसला नहीं करने जा रहे हैं, कम से कम आगामी विधानसभा चुनाव तक तो बिल्कुल भी वे कहीं नहीं जा रहे हैं, पर चर्चाओं का बाजार गर्म है और राजनीति में कब क्या हो जाए यह कोई नहीं जानता। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर का कहना है नीतीश कुमार ही एनडीए का चेहरा होंगे। जदयू एनडीए के साथ लड़े या महागठबंधन के साथ, अगले चुनाव में उन्हें 20 सीटें भी नहीं मिलेंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि आज अगर बिहार की जनता सबसे ज्यादा किसी से नाराज है, तो वो हैं नीतीश कुमार। जनता नीतीश के अफसर राज से परेशान है। 

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भाजपा भी जानती है कि नीतीश कुमार आज राजनीतिक बोझ बन चुके हैं और कोई उनका भर उठा नहीं सकता, हालांकि नियति ने भी ऐसी व्यवस्था बना दी है कि भाजपा की मजबूरी हो गई है कि अगला चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ना लड़ेगी। प्रशांत किशोर ने चुनौती तक दे दी है कि अगर हिम्मत है तो बीजेपी अगला चुनाव नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके लड़े। अगर ऐसा हुआ तो जो 2020 के चुनाव में जेडीयू के साथ हुआ, वह इस बार जदयू के साथ-साथ भाजपा का भी होगा। दरअसल, बिहार के बच्चों की चिंता करने की जगह भाजपा ने दिल्ली में चंद सांसदों के लालच में बिहार को नीतीश कुमार के हवाले कर दिया। 

महागठबंधन में सीट बंटवारा राजद के लिए किसी मैच जीतने से कम नहीं

वैसे, देशभर में भले ही मोदी नाम की धूम है, मोदी के नाम पर भाजपा चुनाव जीत जा रही है, पर बिहार में अब भी नीतीश हैं तो मुमकिन है। भाजपा का काई भी ऐसा नेता नहीं है, जो नीतीश कुमार की बराबरी कर सके। 2013 में जब नीतीश कुमार ने गठबंधन बदल राजद के साथ गए और वापस एनडीए में आए तब भी भाजपा ने उनका स्वागत किया। अभी की सरकार में ही देखिए, भाजपा के दो उप मुख्यमंत्री और 21 मंत्री हैं, तो जदयू के सिर्फ 13 मंत्री हैं। पिछली बार जेडीयू को 43 सीट आई थी और भाजपा को 74 पर जीत हासिल हुई थी। 

हालांकि कुछ ऐसा ही महगठबंधन में भी है। कांग्रेस पिछली बार की तरह इस बार भी 70 सीट पर लड़ना चहती है, पर राजद 30 से ज्यादा देने के मूड में नहीं है। वाम दल अलग ही राग अलाप रहे हैं। पिछली बार 19 में से 12 सीटों पर माले को जीत मिली थी, वहीं 2-2 पर भाकपा व माकपा जीतने में कामयाब रही। अब तो भाकपा-माले के दो सांसद भी हो गए हैं। आप कह सकते हैं कि कांग्रेस भले बिहार में अपनी मौजूदगी की लड़ाई लड़ रही है, वाम दलों का जनाधार बढ़ा है तो इस बार अधिक सीटों की उनकी दावेदारी भी बनेगी ही। उधर, महागठबंधन की सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने का सपना पाले हुए मुकेश सहनी भी सम्मानजनक सीट का दावा करेंगे। पर, इन सबके बीच पिछली जीत से उत्साहित राजद इस बार अधिक से अधिक सीटों पर लड़ना चाहती है। 

2020 में राजद ने 243 में 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, वहीं वाम दलों ने 29 सीटों पर उम्मीदवार दिए थे, जिसमें भाकपा माले ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाकपा ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। माकपा के चार उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। कांग्रेस को गठबंधन में 70 सीटें मिली थे, पर जीत महज 19 पर मिली। बिहार में इस बार अपनी पार्टी के अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्ण अल्लावारु भी बहुत सधे हुए शब्दों में आक्रामक दिखने की कोशिश कर रहे हैं। राजद ने अभी तक कुछ कहा नहीं है, पर कांग्रेस की सीटें कम करने और सीपीआईएमएल की सीट बढ़ाने की चर्चा है। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस व राजद के बीच चुनाव तक उठापटक बढ़ने की आशंका है। हालांकि इंडिया गठंबंधन के लिए अच्छा यही है कि जितनी जल्दी हो सके चीजों का बंटवारा करके सार्वजनिक घोषणा करें, क्योंकि जनमानस में धारणा बहुत मायने रखती है।

एनडीए में नीतीश के नाम पर सहमति, पर सब मान रहे इस बार सीएम कुर्सी पर नया चेहरा

प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीति को लेकर दावा किया है कि नीतीश कुमार अब मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। इस बार चुनाव में चाहे कोई भी पार्टी जीते, नीतीश जी की कुर्सी जाएगी। जनता बदलाव चाहती है और प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान इसी बदलाव की बात लोगों तक पहुंचा रहा है। पीके कहते हैं कि अगर एनडीए जीतता है, तो भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। अगर एनडीए हारता है, तब भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। मतलब साफ है कि इस बार बिहार को एक नया मुख्यमंत्री मिलेगा। हालांकि पीएम मोदी कह चुके हैं कि अब भी नीतीश ही उनके लाडले हैं, पर राजनीति में लाडला कब खटक जाए, पता नहीं चलता। जीतन राम मांझी व चिराग पासवान भी नीतीश कुमार के नाम पर पहले ही अपनी मुहर लगा चुके हैं। 

इतना तो साफ है कि कुछ भी हो एनडीए नीतीश कुमार के नाम पर ही चुनावी मैदान में उतरने वाला है। भाजपा कोटे के मंत्री प्रेम कुमार का कहना है कि मुख्यमंत्री के सवाल पर विचार चुनाव के बाद होगा, वहीं बिहार भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल का कहना है कि चुनाव तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, हालांकि मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला भाजपा का संसदीय बोर्ड करता है। इधर, जदयू भी निशांत कुमार के जरिये भाजपा पर लगातार दबाव बना रहा था कि नीतीश कुमार को ही एनडीए का सीएम फेस घोषित कर दिया जाए, जो कामयाब नजर आता दिख रहा है। 

राजद को पीके से नुकसान, एनडीए की राह हो सकती है आसान

कहा जाता है बिहार की राजनीति जातियों पर आधारित है। राज्य में छोटी पार्टियों के नेताओं की एक विशेष जाति पर पूरी पकड़ है, जैसे चिराग पासवान का एक अपना वोट बैंक है, तो जीतन राम मांझी का एक अलग वोट बैंक है। मुकेश साहनी की भी अपनी जाति पर अच्छी पकड़ है। इनके जातिगत वोट बैंक को हासिल करने के लिए गठबंधन की जरूरत है। राजद के लिए अच्छा यही रहेगा कि कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के बजाय अपनी सीटों पर प्रत्याशी उतारे, तो ज्यादा फायदा होगा। भाजपा भी अपना फुटप्रिंट बनाने की कोशिश कर रही है। 

दम है तो कोई मुख्यमंत्री बन के दिखा दीजिये

चिराग पासवान को जितनी सीटें मिलती रही है उतनी ही मिलेगी, जीतन राम मांझी की भी जहां पकड़ है, वहां सीटें दी जाएगी। बाकी छोटी पार्टियों की भूमिका कुछेक क्षेत्रों तक सीमित है। हालांकि चुनाव में इस बार जनसुराज पार्टी भी एक फैक्टर है, पर यह कितना काम करेगा यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। प्रशांत किशोर भले अपने दम पर कुछ नहीं कर पाएं, पर नुकसान सबका करेंगे यह तो तय है। पीके को जितने भी प्रतिशत वोट आएंगे, वह महागठबंधन से ही निकलेगा, जिससे एनडीए की राह आसान हो जाएगी। 
आज भी नीतीश, कल भी नीतीश… सबकी पसंद में हमेशा ‘बीस’ 
 
2025 के विधानसभा चुनाव को लेकर अभी सबसे बड़ा मुद्दा यही है कि एनडीए की तरफ से कौन होगा मुख्यमंत्री का चेहरा? 30 दिसंबर से चंपारण से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी ‘प्रगति यात्रा’ शुरू कर चुके हैं। हालांकि पहला फेज पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के बाद स्थगित करना पड़ा, पर इस यात्रा के दौरान उन्होंने विकास की कई योजनाओं के साथ रीगा चीनी मिल की विधिवत शुरुआत करके लोगों के बीच एक बार फिर से विकास की किरण जगाई है। नीतीश की इस यात्रा के बाद जनवरी के दूसरे सप्ताह से जदयू की जिला व प्रमंडलीय बैठक भी शुरू होने वाली है। उधर, 6 और 7 जनवरी को भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री अमित शाह भी बिहार आने वाले हैं, जो एनडीए के सहयोगी दलों के साथ बैठकर आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे। 

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नीतीश के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की भी यात्रा चल रही है। दरअसल, इस बार तेजस्वी भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। भाजपा, जदयू, राजद के अलावा लगभग सभी दल अपनी चुनावी चौपड़ बिछाने में लगे हैं। चुपके चुपके होते होते अब सार्वजनिक तौर पर चर्चा छिड़ गई है कि नीतीश कुमार तो हैं ही, अगर वो नहीं तो कौन होगा उनके बाद? हालांकि अमित शाह के बयान के बाद जिस तरह से विपक्ष ने नीतीश को लेकर भाजपा को घेरना शुरू कर दिया, उससे बचने के लिए एक के बाद एक भाजपा नेता यह कहते दिखे कि अगला चुनाव एक बार फिर से नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ जाएगा। अब भी केंद्र में नरेंद्र मोदी और बिहार में नीतीश कुमार सर्वमान्य नेता हैं।
 
नीतीश के नाम में अब भी कोई इफ बट नहीं है। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने भी साफ कर दिया है कि अगला चुनाव नीतीश कुमार और पीएम मोदी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। वहीं, बिहार भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने भी नीतीश कुमार की ही अगुवाई में चुनाव लड़ने की बात कही है। जेडीयू कह चुका है नीतीश कुमार की अगुवाई में ही चुनाव लड़ा जाएगा। बिहार की राजनीति को करीब से जानने वालों का मानना है कि स्लोगन देकर जदयू ने सहयोगियों से विरोधियों तक सबको यह संदेश दे दिया है कि सीएम पद की बात होगी तो पार्टी अपने नेता के नाम से टस से मस नहीं होगी। 

बिहार की राजनीति में सबकुछ सामान्य तो बिल्कुल नहीं है!

एक बार कुछ महीनों की क्रोनोलॉजी को देखेंगे तो पूरे मामले को समझ जाएंगे, पहले बिहार में सीएम फेस को लेकर अमित शाह का बयान, फिर भीम राव आंबेडकर को लेकर गृहमंत्री के बयान को लेकर केजरीवाल की नीतीश को चिट्ठी, फिर एनडीए की बैठक से पहले सीएम का बीमार हो जाना और अब सम्राट चौधरी से लेकर दिलीप जायसवाल तक द्वारा नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात करना, कहीं न कहीं इस बात की ओर इंगित करता है कि बिहार की राजनीति में सबकुछ सामान्य बिल्कुल नहीं है। भाजपा नेताओं को यहां तक बोलना पड़ा कि एनडीए में नीतीश कुमार के नेतृत्व को लेकर विपक्ष द्वारा अफवाह फैलाया जा रहा है। सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, गिरिराज सिंह, प्रेम कुमार, दिलीप जायसवाल जैसे लगभग सभी बड़े भाजपा नेताओं को बोलना पड़ गया कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही सरकार चल रही है और आगे भी चलती रहेगी। सबसे बड़ा बवाल उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के बयान से मच गया था, पहले उन्होंने कहा था कि बिहार में जब अपनी सरकार बनेगी तो अटल बिहारी वाजपेयी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी, पर बाद में अपने बयान को सुधारते हुए कहा कि बिहार में अटल बिहारी वाजपेयी के सोच के अनुकूल सरकार बनेगी और नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार आगे भी रहेगी। 

वहीं, केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने भी साफ तौर पर कह दिया है कि 2025 का चुनाव भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। हम के नेता और मंत्री संतोष सुमन ने भी कहा है कि नीतीश कुमार की कोई नाराजगी नहीं है एनडीए में सब एक है। विपक्ष के सवाल पर संतोष सुमन का कहना था कि विपक्ष को कोई काम नहीं है, इसलिए विपक्ष इस तरह की बातें कर रहा है। सरकार में रहते नीतीश को खरी-खरी सुनाने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार और नवीन पटनायक को भारत रत्न देने की मांग कर नया शिगूफा छोड़ दिया है। गिरिराज ने कहा कि बिहार को एक ऊंचाई पर ले जाने का काम नीतीश कुमार ने किया है। ओडिशा में नवीन पटनायक ने भी सालों तक सेवा की। ऐसे व्यक्ति को देश में पुरस्कृत किए जाने की जरूरत है। 

निर्णय हम करेंगे नहीं तो खेला हो जायेगा

चाहे वह जिस भी पद पर रहा हो, काम करने वाले को भारत रत्न से नवाजा जाए। गिरिराज का यह बयान महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है, क्योंकि अक्टूबर में उनकी ‘स्वाभिमान यात्रा’ को लेकर जदयू भड़क गई थी। जदयू का कहना था कि बिहार में सभी लोग सुरक्षित हैं और सौहार्द बना हुआ है तो फिर इस तरह की यात्रा की क्या जरूरत? इसपर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल को बीच में आकर बोलना पड़ा था कि गिरिराज की यात्रा से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे भी नीतीश कुमार और गिरिराज सिंह के बीच कभी भी बहुत मधुर संबंध नहीं रहे हैं, जिसकी गाहे-बगाहे चर्चा होती रहती है। अब नीतीश को लेकर ऐसे बयान देकर गिरिराज ने कहीं न कहीं यह जताने की कोशिश की है कि एनडीए में सबकुछ सामान्य है। 

नीतीश नहीं तो कौन? भाजपा में एक नहीं कई हैं ‘सीएम इन वेटिंग’ 

अंदरूनी झगड़े और पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार होना भाजपा की सबसे बड़ी समस्या है। पार्टी के अंदर एक नहीं कई नाम हैं, जो खुद को ‘सीएम इन वेटिंग’ मानते हैं। इस आकांक्षा की पहली पंक्ति में डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी का नाम सबसे पहले आता है। राजद छोड़ जबसे सम्राट भाजपा जॉइन किए हैं, तभी से उन्हें लगने लगा है कि भाजपा का सीएम उम्मीदवार वही हैं। हालांकि पार्टी में आते ही उन्हें बड़ी बड़ी जिम्मेवारी देकर कहीं न कहीं उनकी ऐसी भावना को और भड़काया गया है। उनके बाद दूसरे डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा भी कहीं न कहीं यह मानते हैं कि पार्टी में वही सर्वसम्मत नेता हैं, और गाहे-बगाहे बयान देकर ऐसा जताते भी रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल भी इस रोग से अछूते नहीं हैं। उनके चाहने वालों का मानना है कि सम्राट चौधरी से अध्यक्ष की कुर्सी उन्हें इसलिए दी गई है, ताकि सीएम उम्मीदवार के लिए उनका नाम सबसे आगे रहे। 

इसके अलावा केन्द्रीय गृह मंत्री नित्यानंद राय और गिरिराज सिंह में भी वो काबिलियत पूरी है, जो एक सीएम बनने में होती है। हाँ, ये बात और है कि भाजपा आलाकमान को कौन पसंद आता है, ये तो वक्त बताएगा। वैसे, बिहार एनडीए के अन्य घटक दलों के नेता चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता भी नीतीश कुमार को 2025 के चुनाव रिजल्ट के बाद एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनाने की बातें कह चुके हैं। 2019 के बिहार चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी के खिलाफ कैंडिडेट देने वाले चिराग पासवान ने तो यहां तक कह दिया है कि 2025 में भी नीतीश कुमार ही एक बार फिर से शपथ लेंगे। इसलिए भाजपा नेताओं की उम्मीद कितनी पूरी होगी यह अभी कहना मुश्किल है।

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