
नई दिल्ली: नई दिल्ली स्थित केंद्रीय जांच एजेंसियों – केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय – के कार्यालय अथवा उसके नियंत्रण मंत्रालय में हो रही सुगबुगाहट को यदि संकेत माना जाए तो आने वाले दिनों में, यानी विधानसभा चुनावी हवा से पूर्व, बिहार में दर्जनों अधिकारी ही नहीं, दर्जनों सफ़ेद वस्त्रधारी इन जांच एजेंसियों के हत्थे चढ़ने वाले हैं। इन अधिकारियों में कुछ ऊँची कुर्सियों पर विराजमान हैं, कुछ खाकी वर्दी में है, कुछ प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं, मंत्रियों के ‘दलाल और बिचौलिए’ के रूप में कार्य कर रहे हैं, तो कुछ ‘नेताओं के नाम पर उगाही’ कर रहे हैं। कहते भी हैं ‘प्यार और युद्ध में सब जायज है,’ अतः सत्ताईस-साल बाद दिल्ली विधानसभा पर कब्ज़ा करने के बाद अब बिहार की बारी है, क्योंकि विगत दो दशक से भाजपा अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं बना पायी है। अतः कैक्टस को हटाना होगा, बैसाखी को त्यागना होगा। चलिए यह तो प्रशासनिक बातें हुईं।
सामाजिक सरोकार की दृष्टि से महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों को जमीनी सतह पर क्रियान्वयन करने के लिए पांच दशक पहले जब बिहार के डॉ. बिंदेश्वर पाठक आरा समाहरणालय के बाहर पीपल पेड़ के नीचे आम लोगों के सहायतार्थ न्यूनतम लागत पर शौचालय शुरू किये थे, जो समयांतराल वह एक शौचालय भारत ही नहीं, विदेशों तक सामाजिक क्रांति लाने में अभूतपूर्व सफलता पाया। बाद में देश के कॉर्पोरेट घरानों द्वारा लोगों को सुविधा उपलब्ध करने के साथ-साथ शौचालय को पैसे छापने का कारखाना बना दिया। अगर ऐसा नहीं होता तो आज शहरों में महात्मा गांधी के विचारों, सिद्धांतों का धज्जी नहीं उड़ती। लोग अपने शौचालय को साफ़ करने के लिए मोबाईल एप डाउनलोड नहीं करते, लघु-दीर्ध शंकाओं के उत्सर्जित स्थानों को (शौचालयों) की साफ़-सफाई कराने निजी क्षेत्र के कर्मियों को नहीं बुलाते। वैसे यह कहा जाता है कि देश में मैला ढ़ोने / साफ़ करने की प्रथा समाप्त हो गयी है। दुःखद है।
वर्धा आश्रम में महात्मा गाँधी अपना शौचालय स्वयं बनाये थे। अपने शौचालय की देखभाल, साफ़-सफाई करने की जिम्मेदारी स्वयं स्वीकार किये थे। शौचालय की साफ़-सफाई, देख-रेख करना जीवन का एक अभिन्न अंग स्वीकार किये थे। उनका कहना था कि भारत के प्रत्येक घरों में शौचालय उतनी ही साफ़-सुथरा होनी चाहिए जितना शहरों में ड्राइंग रूम और गाँव में बैठकी। वे यह भी कहे थे कि आपके मलों की सफाई दूसरा व्यक्ति क्यों करेगा? समय बदला। पैसे की कमाई के कारण गांधी के विचारों को ‘बैक बेंचर’ बना दिया गया और कागज पर मुद्रित, प्रकाशित गांधी, जिसका अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में लगातार मोलों में गिराबट के बाद भी, लोगों के जेबों से लेकर, बक्से, संदूकों, बैंकों तक आधिपत्य जमा लिया। चाहे कमाई का तरीका और द्रव्यों के आगमनों का स्रोत चोरी, चमारी, बेईमानी ही क्यों न हो?
दृष्टान्त सामने है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 155 वें जन्मदिन के 21 वें दिन, यानी 23 अक्टूबर को पत्रांक नि.वि. स्था (विविध) – 35 /2010 दिनांक 23-10-2024 को बिहार सरकार के निगरानी विभाग के मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा प्रदेश के सभी अपर सचिव, प्रधान सचिव, सचिव, विभागाध्यक्ष, प्रमंडलीय आयुक्त और जिलाधिकारियों के नाम एक पत्र लिखते हैं। इस पत्र में अमृत लाल मीणा की भाषा जितनी साफ़-सुथरी है, काश प्रदेश भी उतना ही साफ़ होता। मीणा कहते हैं कि “यह कहने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि लोक प्रशासन में भ्रष्टाचार जन-जीवन को आक्रांत और कलुषित करता है और अंततः उसे संज्ञाहीन बना डालता है।”
पत्र में कहा जाता है कि “एक स्वच्छ, सक्रिय और निष्ठावान प्रशासन तंत्र ही राज्य में प्रगति का मार्ग प्रसस्त कर सकता है, गरीबी उन्मूलन की योजना को सदगति प्रदान कर सकता है एवं मानवाधिकार की रक्षा कर सकता है। इस परिपेक्ष में पूरे जन-जीवन और प्रशासन तंत्र में भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में अपेक्षित सतर्कता के प्रति अभिचेतना का संचार, प्रचार और प्रसार होगा।”
मीणा साहब कहते हैं कि “विदित हो कि राज्य सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध ‘जीरो टॉलरेंस’ निति को दृढ़ता पूर्वक लागु कर सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार नियंत्रण हेतु ठोस प्रयास जारी है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई हेतु बिहार विशेष अधिनियम 2009 के अंतर्गत भ्रष्ट लोक सेवकों की की संपत्ति को राजसात कराने करने की कार्रवाई को गति प्रदान की गयी है। अतः अनुरोध है कि दिनांक 28-10-2024 को सभी नागरिकों द्वारा सत्यनिष्ठा प्रतिज्ञा सम्बन्धी संकल्प लिया जाय। सभी सरकारी कार्यालयों में कार्यालय प्रधान/वरीयतम पदाधिकारी द्वारा सभी पदाधिकारियों/कर्मचारियों को सत्यनिष्ठा प्रतिज्ञा संबंधी संकल्प 11 बजे पूर्वाह्न में दिलाया जाय। संगठनों के लिए भी सत्यनिष्ठा प्रतिज्ञा के आलोक में भी कार्रवाई की जाए।”
मीणा साहब शायद यह बताने में चूक गए कि यह संकल्प कितने समय तक लिया जायेगा? ‘संकल्प’ का ‘वजूद’ कितना ‘संकल्पित’ होता है यह इस बात से ही स्पष्ट है कि बिहार ही नहीं, देश के किसी भी राज्य में, सरकारी संस्थानों में, निजी निकायों में या कहीं भी जब लोग बाद राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत में फर्क करने में चूक जाते हैं, लगभग 52-सेकेंड्स में गाये जाने वाले ‘राष्ट्रगान’ (जन गण मन अधिनायक जय हे) के समय काल में ‘आम नागरिक ही नहीं, बल्कि आला अधिकारी से चपरासी तक, पंचायत के चयनित लोगों से लेकर विधानसभा और लोकसभा/राज्यसभा के चयनित सदस्य तक, मंत्री से अधिकारी तक, ‘सावधान अवस्था को ‘ठुकराकर ‘चलते-फिरते नजर आते हैं; वैसी स्थिति में ‘कुछ समय का संकल्प प्रदेश से भ्रष्टाचार का उन्मूलन कैसे कर सकता है।
अगर ऐसा होता तो बिहार के वरिष्ठ मंत्री दिलीप कुमार जायसवाल अपने विभाग में कथित भ्रष्टाचार की बात नहीं करते। कुछ समय पूर्व जायसवाल स्वीकार किए थे कि उनके विभाग में बिना पैसे के कोई काम नहीं होता है। उन्होंने कहा था कि राजस्व कर्मचारी और अन्य निचले स्तर के अधिकारी तथा भू-माफियाओं के साथ मिलीभगत वाले बिचौलियों ने स्थिति को और खराब कर दिया है, क्योंकि गरीब लोग भी तब तक अपना काम नहीं करवा पा रहे हैं, जब तक कि वे अच्छा पैसा नहीं देते। एक मंत्री का यह कथन पूरे तंत्र पर एक प्रहार था। वैसे प्रदेश में भाजपा सरकार में है तो लेकिन उसकी सरकार नहीं है। नीतीश कुमार का सिक्का चलता है और नीतीश जनता दल यूनाइटेड के हैं।
चलिए आगे बढ़ते हैं। इसी तरह, वैसे राष्ट्रीय जनता दल या उसके किसी भी नेता को भ्रष्टाचार के बारे में कुछ भी बोलना शोभा नहीं देता, क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल का परिवार भ्रष्टाचार को न केवल पुनः परिभाषित किया है, बल्कि आधुनिक भी बनाया है। अध्यक्ष का परिवार दृष्टांत है। तथापि पार्टी के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा था कि राज्य में भ्रष्टाचार सर्वव्यापी है। कोई भी काम नहीं करवा सकता, क्योंकि अब तो मंत्री भी आईना दिखा रहे हैं। हमारे राज्य में संस्थागत भ्रष्टाचार है, कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता, लेकिन मुख्यमंत्री ‘भीष्म पितामह’ की तरह काम कर रहे हैं और मूकदर्शक बने हुए हैं। अब क्या चाहिए?
ज्ञातव्य हो कि विगत दिनों प्रदेश के निगरानी विभाग पद का दुरुपयोग करने वाले, भ्रष्ट या जिन पर विभागीय कार्रवाई चल रही है, ऐसे सभी स्तर के कर्मियों की सूची जारी की थी। इस सूची के अनुसार प्रदेश के सरकारी विभाग में मकड़े की जाल जैसा भ्रष्ट अधिकारी फैले हैं। विभाग ने 4517 ऐसे भ्रष्ट अधिकारिओं का नाम जारी किया था। इसका अर्थ यह है कि बिहार में कुल 2046201 सरकारी कर्मियों में प्रत्येक 454 कर्मचारी में एक कर्मचारी भ्रष्ट है, बेईमान है, रिश्वत लेता है। और यह कर्मचारी चपरासी भी हो सकता है और शीर्षस्त अधिकारी भी। इसमें सभी विभागों के अलावा जिला स्तरीय कर्मियों और भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में शामिल निजी लोगों की सूची भी शामिल है। सबसे ज्यादा वैसे पदाधिकारियों या कर्मियों की संख्या है, जिन पर अपने पद के दुरुपयोग का आरोप लगा है।
इतना ही नहीं, सभी स्तर के कर्मियों की इसी सूची में कुछ उच्च पद पर रह चुके राजनीतिक शख्सियत भी शामिल है। एक पूर्व विधान परिषद एवं विधान सभा अध्यक्ष के नाम भी शामिल हैं। इन आरोपी कर्मियों की सूची में सबसे ज्यादा शिक्षा विभाग से मुख्यालय से लेकर जिला एवं स्कूल स्तर तक के 930 कर्मियों के नाम है। इसके अलावा कृषि से 55, पशुपालन विभाग से 24, भवन निर्माण से 47, वाणिज्य कर के 11, सहकारिता विभाग के 63, ऊर्जा से 114, वित्त से 14, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण से 72, वन से 30, सामान्य प्रशासन विभाग से 243, स्वास्थ्य से 160, गृह (जेल एवं अग्निशमन) से छह, उद्योग से 11, श्रम संसाधन से 22, खनन से सात कर्मियों के नाम शामिल हैं। इसके अलावा अल्पसंख्यक विभाग से 12, पंचायती राज से 321, पीएचईडी से 19, योजना से 28, पुलिस महकमा से 221, सड़क निर्माण से 79, निबंधन से 23, राजस्व से 174, ग्रामीण विकास विभाग से 123, ग्रामीण कार्य विभाग से 50, समाज कल्याण विभाग से 68, ट्रांसपोर्ट से 36, नगर विकास एवं आवास से 117 एवं ग्रामीण कार्य विभाग से 102 कर्मियों के नाम हैं। इसके अलावा इसमें विभाग से जुड़े या भ्रष्टाचार के अलग-अलग मामलों में शामिल 658 निजी लोगों के नाम भी शामिल है।
भ्रष्टाचार के इसी परिदृश्य में विगत दिनों रिशु रंजन सिन्हा का नाम उभरा । रंजन का नाम जैसे ही प्रवर्तन निदेशालय के फ़ाइल में आया, प्रदेश में हड़कंप मच गया, खासकर प्रदेश में ऊँची-ऊँची कुर्सियों पर बैठे अधिकारियों-पदाधिकारियों की नींद उड़ गयी। दिल्ली के प्रवर्तन निदेशालय में इस बात की चर्चा है कि रिशु रंजन के मुख में बहुत राजनेताओं का भी नाम है जिनके लिए/नाम पर वे करती करते थे। संभव है वह सभी नाम शीघ्र सामने परोसा जाय। वैसे स्थानीय अख़बारों में अनेकों सवाल उठ रहे हैं कि प्रदेश के सैकड़ों ‘खास’ अधिकारी कौन-कौन हैं जिनके साथ/जिनके लिए रंजन ‘झुनझुन्ना’ बजाते थे। दिल्ली जान एजेंसियों के पास फाइलों की मोटाई बढ़ रही है जिसमें यह लिखा जा रहा है कि ‘फैलाने फैलाने अधिकारियों, राजनीति से जुड़े लोगों के आदेश से सैकड़ों महत्वपूर्ण फाइलों को वसूली अभियान की समाप्ति तक ‘दिव्यांग’ बना दिया गया था। रंजक का यह कार्य सरकारी स्तर पर होने वाले सभी कार्यों – निविदा, स्थानांतरण, सरकारी सामग्रियों की खरीददारी, ठेका, निर्माण कार्य आदि तक फैला था जो बड़े-बड़े भारतीय प्रशासनिक/पुलिस अधिकारियों से रास्ते मंत्रालय और मंत्री के मेज तक फैला था।
एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि “चारा घोटाला के बाद, अलकतरा घोटाला, गर्भाशय घोटाला, सृजन घोटाला, शौचालय घोटाला, सड़क निर्माण घोटाला और न जाने कितने घोटाला हुए हैं। इन सभी घोटालों में नए-नए अवतार भी जन्म लिए हैं, उसी तरह जैसे नए-नए अधिकारी बने हैं, नए नए नेता और मंत्री। आज यह तय करना कठिन है कि कौन वास्तव में अपना विकास चाहता है और कौन समाज और प्रदेश का। आप विगत 20-25 वर्षों का इन अधिकारियों, नेताओं और मंत्रियों का आर्थिक इतिहास पर शोध करें तो आपको ज्ञात हो जाएगा कि जो कल दरिद्र था, आज प्रदेश को दरिद्र बनाने लायक हो गया है। यह कार्य कोई अकेले नहीं कर सकता। बहुत बड़ा गिरोह है। रिशु रंजन अथवा संजीव हंस तो महज एक छोटा सा पियादा है। पूरी व्यवस्था में मकड़े की जाल जैसा भ्रष्ट लोगों का साम्राज्य है। जिस तरह कल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सम्मानित न्यायमूर्तियों ने अपनी-अपनी संपत्ति और देनदारी को सार्वजनिक किया है, क्या बिहार ही नहीं, देश के अधिकारी, पदाधिकारी, नेता, अभिनेता, मंत्री, संत्री अपनी सम्पत्तियों को सार्वजनिक करने की कूबत रखते हैं? शायद नहीं।
स्थानीय अख़बारों में प्रकाशित समाचारों को उद्धृत करते अधिकारी कहते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच रिपोर्ट के अनुसार, रिशु ने पांच वर्षों में 500 करोड़ रुपये की संपत्ति जुटाई। यह संपत्ति ठेके, लाइजनिंग और कमीशन के जरिए अर्जित की गई। बताया जा रहा है कि वह कई वरिष्ठ अधिकारियों की काली कमाई को दुबई, सिंगापुर और यूरोपीय देशों में निवेश करने में सहायता कर रहा था। उसका लगातार विदेश दौरे पर रहना इस बात का सबूत है कि यह सिर्फ एक ‘बिचौलिया’ नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित आर्थिक अपराध नेटवर्क का चेहरा है। कोई तो है जो इन सभी कार्यों के पीछे है। रिशु या हंस बिहार की भ्रष्ट व्यवस्था का मात्र एक कड़ी है और हमारी कोशिश है कि हम अंतिम कड़ी तक पहुंचे।
बिहार की हर सरकार ने ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को सीधे या परोक्ष रूप से संरक्षण दिया। सत्ता चाहे जो हो, सिस्टम वही रहा। नौकरशाही में बैठे भ्रष्ट अफसरों की पकड़ इतनी मज़बूत है कि वे सरकारें बदलवा सकते हैं, लेकिन खुद पर आंच नहीं आने देते। ज्ञातव्य हो कि प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले सप्ताह संजीव हंस के सहयोगियों की 23.72 करोड़ रुपये की संपत्तियां अस्थायी रूप से जब्त कीं। संजीव हंस 1997 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और अब बेउर सेंट्रल जेल में बंद हैं। कहा जा रहा है कि हंस एक चालाक मनी लॉन्ड्रिंग ऑपरेशन के आर्किटेक्ट और लाभार्थी दोनों थे। ईडी के एक आधिकारिक नोट के अनुसार, जब्त की गई सात अचल संपत्तियां कथित तौर पर हंस से जुड़ी हैं। इनमें नागपुर में तीन जमीन के टुकड़े, दिल्ली में एक फ्लैट और जयपुर में तीन फ्लैट शामिल हैं, जो हंस के करीबी सहयोगियों- प्रवीण चौधरी, पुष्पराज बजाज और बजाज के परिवार के सदस्यों के नाम पर हैं।
स्थानीय रिपोर्ट के अनुसार, ईडी जांचकर्ताओं का दावा है कि ये संपत्तियां बिहार सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहने और 2018 से 2023 तक केंद्रीय प्रतिनियुक्तियों पर रहने के दौरान हंस की कथित भ्रष्ट गतिविधियों के माध्यम से अर्जित “अपराध की आय” (पीओसी) का उपयोग करके खरीदी गई थीं। ईडी का दावा है कि वास्तविक स्वामित्व को छिपाने के लिए इन संपत्तियों को हंस के सहयोगियों के नाम पर खरीदा गया था। बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के रूप में हंस का कार्यकाल ईडी की जांच का केंद्र बिंदु बना हुआ है। एजेंसी का आरोप है कि 2018 से 2023 के बीच की इस अवधि में हंस भ्रष्ट आचरण में लिप्त रहे, जिसने उनके अवैध साम्राज्य की नींव रखी। हंस के नाटकीय पतन की ओर ले जाने वाली घटनाओं की श्रृंखला वित्तीय अनियमितताओं से नहीं बल्कि जनवरी 2023 में दर्ज एक बलात्कार के मामले से शुरू हुई।
प्रकाशित रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि एक महिला वकील ने हंस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पूर्व विधायक गुलाब यादव पर यौन शोषण, ब्लैकमेल और जबरदस्ती का आरोप लगाया। हालांकि पटना उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी को खारिज कर दिया, लेकिन ईडी, जिसने पहले ही प्रारंभिक प्राथमिकी की जांच शुरू कर दी थी, ने कहीं अधिक गंभीर अपराधों का पता लगाया। 18 अक्टूबर को, हंस और यादव को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के तहत कथित धन शोधन के लिए गिरफ्तार किया गया था। जांचकर्ताओं ने हाल ही में खोले गए डीमैट खातों का पता लगाया, जो सतह पर हानिरहित प्रतीत होते हैं, लेकिन इनमें 60 करोड़ रुपये के आश्चर्यजनक शेयर छिपे हुए थे। हंस के एक करीबी सहयोगी के परिवार के सदस्यों के ये खाते जानबूझकर बहुत सक्रिय नहीं रखे गए थे, ताकि पता न चले।
एजेंसी ने 70 बैंक खातों को भी फ्रीज कर दिया, जिनका कथित तौर पर अवैध धन को प्रसारित करने और जमा करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इन खातों में कुल 6 करोड़ रुपये की संदिग्ध नकदी जमा की पहचान की गई। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, जयपुर, पटना, पुणे, चंडीगढ़, अमृतसर और नागपुर में की गई तलाशी में लग्जरी सामान और अघोषित नकदी का खजाना मिला। ईडी ने क्रमशः 80 लाख रुपये और 65 लाख रुपये मूल्य के सोने के आभूषण और लग्जरी घड़ियां जब्त कीं। इसके अलावा, 1.07 करोड़ रुपये की अघोषित नकदी बरामद की गई, साथ ही 11 लाख रुपये मूल्य के 13 किलो चांदी के सिक्के और 1.25 करोड़ रुपये मूल्य के 1.5 किलो सोने के सिक्के और आभूषण भी बरामद किए गए। जांचकर्ताओं ने 20 लाख रुपये की विदेशी मुद्रा भी जब्त की।
संजीव हंस के केस में जांच के बाद 7 अफसरों पर शिकंजा कसते हुए छापेमारी शुरू की थी। इस दौरान राजधानी पटना में नीतीश सरकार के अलग-अलग अफसरों के यहां छापे मारे थे। उसमें एक या दो करोड़ नहीं बल्कि 11 करोड़ 65 लाख तो सिर्फ कैश जब्त किए गए। एक अखबार के अनुसार इन अफसरों के पास से आपत्तिजनक दस्तावेज तक मिले हैं। इसी तरह, जब ईडी ने भवन निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर तारिणी दास के यहां रेड की तो नोट गिनने वाली मशीन मंगानी पड़ी। इसके बाद ही उनके ठिकाने से मिली नकदी को गिना जा सका। अब सोच लीजिए एक चीफ इंजीनियर ने इतने पैसे कहां से पीट लिए। विगत 7 मार्च को नालंदा के DTO अनिल कुमार दास के ठिकानों पर विजिलेंस ने छापा मारा था जिसमें अनिल दास की आय से अधिक करीब 94 लाख रुपए से अधिक संपत्ति का मामला मिला।
बहरहाल, विगत 19, मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने संसद को सूचित किया है कि प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले 10 वर्षों में वर्तमान और पूर्व सांसदों और विधायकों सहित राजनेताओं के खिलाफ कुल 193 मामले दर्ज किए और उनमें से दो में दोषसिद्धि हासिल की। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह बात कही थी । उन्होंने कहा कि संघीय धन शोधन निरोधक एजेंसी ने मौजूदा और पूर्व सांसदों, विधायकों और एमएलसी सहित राजनेताओं के साथ-साथ राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं, लेकिन इसका राज्यवार डेटा नहीं रखा जाता है। चौधरी ने कहा कि अप्रैल 2015 से फरवरी 2025 के बीच ईडी ने इस श्रेणी के व्यक्तियों के खिलाफ 193 मामले दर्ज किए। मंत्री ने कहा कि दो मामले, एक वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान और दूसरा 2019-20 में, दोषसिद्धि के लिए नेतृत्व किया और कोई भी बरी नहीं हुआ। उन्होंने जवाब में मामलों या आरोपियों के नामों का उल्लेख नहीं किया।
हालांकि, आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, झारखंड के पूर्व मंत्री हरिनारायण राय को 2017 में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत सात साल के कठोर कारावास और 5 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी, जबकि राज्य के एक अन्य पूर्व मंत्री अनोश एक्का को 2020 में सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी और 2 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जांच के तहत ईडी ने दोनों की जांच की थी। यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों दोषी राजनेताओं ने रांची में विशेष पीएमएलए अदालतों द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ अपील की थी या नहीं। आंकड़ों के अनुसार, ईडी ने वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान पूर्व और वर्तमान विधायकों के खिलाफ सबसे अधिक 32 मामले दर्ज किए।