अजमेर (राजस्थान) / नई दिल्ली : विगत दिनों राजस्थान के अजमेर शहर में था। बजरंग नाथ सर्किल के पास पहाड़ी पर स्थित अंग्रेजों द्वारा बनाये गए सर्किट हॉउस के रास्ते के दाहिने हाथ जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रतिमा को देखकर शरीर स्वयं स्थिर हो गया। मन और आत्मा से नमन हेतु आँखें स्वतः बंद हो गयी। कुछ क्षण रुका। चतुर्दिक देखा। राजस्थान से दिल्ली सल्तनत तक सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोगों को भी एक बार देखा और उसी नजर से जब पंडित दीनदयाल जी की प्रतिमा को, आस-पास के परिवेश को देखा तो आँखें अश्रुपूरित हो गयी, क्योंकि जो स्थिति देखा उसके हकदार नहीं थे पंडित दीनदयाल जी। राजाओं का राज्य कहा जाने वाला राजस्थान 30 मार्च, 1949 को एक राज्य के रूप में अपने अस्तित्व में आया। आज प्रदेश की सरकार 16वीं विधानसभा के रूप में गठित है। खैर।
विगत दिनों केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान नई दिल्ली स्थित कन्वेंशन सेंटर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के “एकात्म मानववाद” दर्शन पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आज दुनिया के सामने जितनी समस्याएं हैं, उसका समाधान अगर कहीं है तो एकात्म मानव दर्शन में है। एकात्म मानव दर्शन बहुत क्लिष्ट दर्शन नहीं है, भारतीय चिंतन का निचोड़ है। अवसर था उपाध्याय जी का एकात्म मानववाद का 60 वीं वर्षगांठ। इस अवसर शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “पंडित जी ने अर्थ की आवश्यकता पर भी बल दिया था। जीवन जीने के लिए व बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति के लिए अर्थ का भी महत्व है। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी जरूरतों की पूर्ति के लिए भी धन की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन अर्थ एक ऐसी जरूरत है, जिसका ना तो ज्यादा अभाव ही सही है और ना ही इसका ज्यादा प्रभाव उचित है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2004 लोकसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान अपनी कुल संपत्ति 58 लाख घोषित किये थे जो 2008 के चुनाव में बढ़कर 1.23 करोड़ हो गया। 2013 में यह राशि 6. 27 करोड़, 2018 में 7. 66 करोड़ और विगत 2024 के चुनाव में यह घोषित राशि 8. 98 करोड़ बताया गया। चौहान साहब के अलावे अगर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट को देखते हैं तो 18वीं लोकसभा में निर्वाचित 543 प्रतिनिधियों में से आश्चर्यजनक रूप से 504 करोड़पति हैं। 2024 के चुनावों में लड़ने वाले हर तीन उम्मीदवारों में से एक करोड़पति थे, और विजेताओं में, यह संख्या दस में से नौ से थोड़ी अधिक थी। 2009 के चुनावों में, चुने गए प्रतिनिधियों में से 58 प्रतिशत करोड़पति थे; 2014 में, यह संख्या बढ़कर 82 प्रतिशत हो गई। 2019 में यह 88 प्रतिशत था, और इस बार 93 प्रतिशत।

सैद्धांतिक रूप में दीनदयाल उपाध्याय जी के “एकात्म मानववाद” दर्शन पर बोलते चौहान साहब कहते हैं कि दुनिया में पहले राजतंत्र था, फिर लोगों ने कहा कि एक राजा ही क्यों रहे और स्वतंत्रता, समानता, विश्वबंधुत्व के मंत्र पर राजतंत्र या तो समाप्त कर दिए गए या उनके अधिकार बहुत सीमित कर दिए गए। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा, पश्चिम की नकल मत करो, क्या हमारे देश के पास कोई ऐसा दर्शन है, जिसके आधार पर हम समाज और राज्य जीवन की रचना कर सकें। तभी पंडित दीनदयाल जी ने प्रस्तुत किया एकात्म मानव दर्शन! मानववाद के विभिन्न स्वरूपों की विवेचना करते हुए चौहान ने कहा कि न्यूटन ने खोज की थी कि पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति होती है, जिसकी वजह से ऊपर की चीज़ें जमीन पर गिरती है। इस खोज के बाद न्यूटन को जो सुख मिला, उसे ही बुद्धि का सुख कहा जाता है। यह सिद्धांत की बात हुयी।
व्यवहार में, भारतीय जनता पार्टी के 240 विजेताओं में से 95 प्रतिशत करोड़ पति है। कांग्रेस पार्टी, जिसने 99 सीटें जीतीं, 92 विजेता करोड़पति हैं। तेलुगु देशम पार्टी के सभी 16 विजेता और जनता दल (यूनाइटेड) के 12 विजेता करोड़पति हैं। तेलगु देशम पार्टी और जनतादल (यूनाइटेड) डॉन भाजपा के साथ सरकार में है। वर्तमान केंद्र सरकार में करोड़पतियों की संख्या 90 प्रतिशत से अधिक है। सांसदों की औसत संपत्ति पिछले 15 वर्षों में उनकी औसत संपत्ति में सात गुना से अधिक की वृद्धि हुई है, जो 2009 में 5.35 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024 में 46.34 करोड़ रुपये हो गई है। 2024 में टीडीपी के लोकसभा विजेता की औसत संपत्ति 442 करोड़ रुपये थी। भाजपा के सांसदों की औसत संपत्ति 50 करोड़ रुपये और कांग्रेस के सांसदों की 23 करोड़ रुपये थी। खैर ,यह तो व्यवहार की बात है।
TDP के चंद्रशेखर पेम्मासानी 2024 के लोकसभा चुनावों में चुने गए सबसे अमीर सांसद हैं, जिनकी कुल संपत्ति 5,705 करोड़ रुपये से अधिक है। भारतीय जनता पार्टी के कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी 4,568 करोड़ रुपये से अधिक की घोषित संपत्ति के साथ दूसरे सबसे अमीर सांसद हैं। कल के कांग्रेसी और आज के भाजपा के नवीन जिंदल की कुल संपत्ति 1,241 करोड़ रुपये से अधिक है। टीडीपी के प्रभाकर रेड्डी 716 करोड़ रुपये से अधिक की कुल संपत्ति के मालिक हैं। भाजपा के ही सीएम रमेश अपने चुनावी हलफनामे में कुल 497 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति घोषित की। कल के कांग्रेसी और आज के भाजपा के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कुल 424 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति घोषित की थी। कांग्रेस के छत्रपति शाहू महाराज अपनी कुल संपत्ति 342 करोड़ रुपये से अधिक घोषित की थी। टीडीपी के श्री भारत मथुकुमिली की कुल संपत्ति 298 करोड़ रुपये से अधिक है। भाजपा की हेमा मालिनी की कुल संपत्ति 278 करोड़ रुपये से अधिक है। कांग्रेस की प्रभा मल्लिकार्जुन के पास कुल 241 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है।
हमारा विश्वास है कि ये सभी करोड़पति राजनेता शायद दीनदयाल उपाध्याय जी के “एकात्म मानववाद” दर्शन का शब्दार्थ समझ पाएंगे अथवा नहीं, यह भी एक गहन शोध का विषय है। खैर। व्याख्यान में मंत्री जी कहा कि ‘एकात्म मानववाद का एक ही सूत्र है और वह है एक चेतना। प्रकृति में भी यही चेतना विराजमान है। इसी के अंतर्गत वृक्षारोपण के महाभियान से सभी को जुड़ते हुए एक पेड़ मां के नाम जरूर लगाना चाहिए। प्रकृति का शोषण नहीं, दोहन करें। पेड़ पूजनीय है। धरती केवल मनुष्य मात्र के लिए नहीं हैं, धरती पर सभी प्राणियों का बराबर हक है, जिसकी हमें चिंता करनी है।’ और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जितने भी कार्य हुए हैं, हो रहे हैं उसकी गिनती शुरू कर दिए। और अंत में कहते हैं कि ‘सांस्कृतिक विरासत और आधुनिकता के सामंजस्य के साथ हम आगे बढ़ेंगे तथा पुरानी नींव को ही आधार बनाते हुए नए भारत का निर्माण करेंगे और विश्व का मार्गदर्शन करेंगे।’
वैसे भारतीय जनता पार्टी संविधान की धारा तीन के अन्तर्गत ‘एकात्मक मानववाद’ भाजपा का मूल दर्शन है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने सुदीर्घ चिन्तन, अध्ययन एवं मनन के बाद सन् 1964-65 में विचारधारा के नाते इसका प्रणयन किया। पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तन ने मानव को ‘सेक्यूलरवाद, व्यक्तिवाद (पूंजीवाद) समाजवाद एवं साम्यवाद की विचार धाराएं दी थीं। स्वतंत्र भारत का नेतृत्व भी इन्हीं वादों में भारत का भविष्य खोज रहा था। दीनदयाल जी ने इस खोज में हस्तक्षेप करते हुए यह सवाल खड़ा किया कि जब हमने पाश्चात्य साम्राज्यवाद को नकार दिया, तब अब हमारी क्या मजबूरी है कि हम पाश्चात्य वादों का अनुगमन करें। सामान्यतः भारत के राजनैतिक क्षेत्र में स्थापित सभी दल यह सोचते थे कि हमें कुछ संशोधनों के साथ इन पाश्चात्य वादों को ही स्वीकारना पडे़गा क्योंकि हमारे पास कोई अन्य चिंतन नहीं है। हम तो राष्ट्र थे ही नहीं। पाश्चात्यों ने ही आकर हमको राष्ट्र बनने के लिए तैयार किया है। उनका विचार है हम राष्ट्र बनने जा रहे हैं या हम नवोदित राष्ट्र है, आदि आदि।
भारतीय जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी भारत को प्राचीन एवं सनातन राष्ट्र मानती है। पश्चिम की राष्ट्र-राज्य परिकल्पना से पुरानी कल्पना भारत के ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की है। भारतीय संस्कृति की एक गौरव सम्पन्न ज्ञान-परम्परा हैं हमें इसी ज्ञान-परम्परा में भारत का भविष्य खोजना चाहिए। मानव की तरफ देखने की पाश्चात्य दृष्टि खण्डित हैं उनका व्यक्तिवाद, समाजवाद का दुश्मन है तथा समाजवाद, व्यक्तिवाद का शत्रु है। वे प्रकृति पर मानव की विजय चाहते हैं, इस प्रकार यहां भी प्रकृति बनाम मानव उनका समीकरण है। एकात्मता, समग्रता में निहित रहती है। समग्रता के अभाव में खण्ड दृष्टि से मानव आक्रांत होता है। जैसे ब्रह्माण्ड की समग्रता है, वैसे ही व्यक्ति की भी समग्रता है। व्यक्ति अर्थात केवल शरीर नहीं, उसके पास मन है, बुद्धि है और आत्मा भी है। यदि इन चारों में से एक की भी उपेक्षा हो जाये तो व्यक्ति का सुख विकलांग हो जायेगा। इन चारों के पृथक पृथक सुख से व्यक्ति सुखी नहीं होता, उसे तो एकात्म एवं धनीभूत सुख चाहिये। जिसे आनंद कहते है। वैसे ही समाज केवल सरकार नहीं है, उसकी अपनी संस्कृति है, जन एवं देश है। बहुत सी अच्छी बातें लिखी है।
एक दूसरे पक्ष पर चलते हैं। भारतीय राजनीति में ऐसे कई नेता हुए हैं जिन्होंने बहुत ऊँचे मुकाम और लोकप्रियता हासिल की। हालांकि, उनकी सफलता ज्यादा दिन नहीं टिक पाई क्योंकि वे अचानक दुनिया से चले गए। दीनदयाल उपाध्याय सहित संजय गांधी, लाल बहादुर शास्त्री या श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं की मौत के बाद कई सवाल अनुत्तरित रह गए। कुछ लोगों ने इसे आकस्मिक बताया जबकि कुछ ने राजनीतिक।
भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक दीन दयाल उपाध्याय ने 1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी मौत के बाद उनका स्थान लिया। एक ज्योतिषी के बेटे, वे जनसंघ में प्रवेश करने से पहले एक सक्रिय आरएसएस कार्यकर्ता थे। उपाध्याय ने 1953 से 1968 में अपनी रहस्यमयी मौत तक जनसंघ का नेतृत्व किया। वे उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन की रेल पटरियों पर मृत पाए गए थे। धीमी पुलिस जांच के कारण भारी आक्रोश के बाद, मामला सीबीआई को सौंप दिया गया, जिसने दावा किया कि उपाध्याय की हत्या पटना जाने वाली ट्रेनों में ट्रेन लुटेरों या सामान उठाने वालों ने की थी। हालांकि, उनकी मौत के इर्द-गिर्द कई षड्यंत्र सिद्धांत हैं। जब जनता पार्टी सत्ता में थी, तो सुब्रमण्यम स्वामी ने तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह से मौत की जांच के लिए एक पैनल गठित करने का आग्रह किया था। हालांकि एक आयोग का गठन किया गया था, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। हालांकि, अनुभवी नेता बलराज मधोक ने दावा किया कि उनके प्रतिद्वंद्वियों अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख ने उपाध्याय की मौत की जांच को बार-बार विफल किया था।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की “मृत्यु” से सम्बंधित “दस्तावेज” विभिन्न कारणों से “पुनः खुल सकते” हैं, लाल-कपडे में बँधे फाईलों के ऊपर जमी मिट्टी की परतों को झाड़ा-पोछा जा सकता है, सत्य और सत्यता की खोज के लिए; तो फिर दीनदयाल उपाध्याय जी की “मृत्यु” से सम्बन्धित दस्तावेजों को, फाईलों को, कमिटी, कमीशन के निर्णयों को, न्यायालय के अन्तिम शब्दों को “पुनः” क्यों नहीं “जाँचा” जा सकता हैं? कहीं श्री दीनदयाल उपाध्याय की “मृत्यु” “राजनीतिक हत्या” तो नहीं थी ? इसकी जांच का आदेश आधुनिक भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सिर्फ और सिर्फ प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी ही दे सकते हैं क्योंकि मोदी जी पर पार्टी सहित भारत के लोगों का अटूट विश्वास है। स्टेशन का नाम बदलने से, गाँव का नामकरण करने से सच तो नहीं सामने आएगा !!
क्योंकि, सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, देश के दूर-दरस्त इलाकों में भी स्थापित दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रतिमाओं को सम्मानित होने का उतना ही अधिकार है, जितना दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में उनकी प्रतिमा पर लोगों के विशालकाय श्रृंखला द्वारा पुष्पांजलि प्राप्त करने का। परन्तु ऐसा होता नहीं – यह दुखद है। भारत के लोगों को राजनीति से अलग एक मानवीय सोच भी रखना होगा राष्ट्र के उन तमाम सुधारकों के प्रति, चाहे उनका योगदान सामाजिक उत्थान में हो, आर्थिक रूप से राष्ट्र की नींव को मजबूत करने के लिए हो, न्यायिक व्यवस्था को देश के प्रत्येक नागरिकों के दरवाजे तक बिना किसी भेदभाव के पहुँचाने में हो।

इसी तरह, इंदिरा गांधी की कैबिनेट में रेल मंत्री रहे ललित नारायण मिश्र की 2 जनवरी, 1975 को बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट में मारे गए । आज 50 साल से भी ज़्यादा समय बीत गया। दिल्ली की एक अदालत ने हत्या के लिए चार लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लेकिन मिश्र की हत्या ने विवाद को जन्म दिया। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के दौरान भारत का नेतृत्व किया। 10 जनवरी, 1966 को, उन्होंने रूसी (तब सोवियत संघ) के प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसिगिन द्वारा आयोजित एक शिखर सम्मेलन के लिए ताशकंद में पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अयूब खान से मुलाकात की। दोनों देशों के बीच एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए और दोनों सेनाएं युद्ध के बाद अपनी मूल स्थिति में वापस जाने के लिए सहमत हुईं। हालांकि, 10-11 जनवरी की रात को शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। आधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया कि प्रधानमंत्री की मौत कई दिल के दौरे से हुई। हालांकि, उनकी पत्नी ने दावा किया कि उनका शरीर नीला पड़ गया था और जगह-जगह कट के निशान थे।

उसी ‘आकस्मिक मृत्यु’ की कड़ी में संजय गांधी का भी नाम है। 33 वर्ष की छोटी उम्र में, संजय गांधी का निधन 23 जून, 1980 को राष्ट्रीय राजधानी में एक भयानक हवाई दुर्घटना में हुआ था। उन्हें इंदिरा गांधी का उत्तराधिकारी माना जाता था, जो छह महीने पहले लोकसभा चुनावों में शानदार जीत के बाद सत्ता में लौटी थीं। कई लोगों ने दुर्घटना की प्रकृति पर सवाल उठाए थे, क्योंकि विमान ने जमीन पर गिरने से पहले एक अप्राकृतिक मोड़ लिया था।
1951 में, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जवाहर लाल नेहरू सरकार से उद्योग और नागरिक आपूर्ति मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े प्रचारकों (स्वयंसेवकों) की मदद से अपनी नई पार्टी, भारतीय जनसंघ (बीजेएस) की शुरुआत की। कहते हैं मुखर्जी चाहते थे कि नेहरू पाकिस्तान से ज़मीन की मांग करें ताकि पूर्वी पाकिस्तान से पश्चिम बंगाल में पलायन करने वाले लगभग 10 लाख शरणार्थियों का पुनर्वास किया जा सके। उन दिनों, भारत के अन्य हिस्सों से लोगों को जम्मू और कश्मीर में प्रवेश करने के लिए परमिट की आवश्यकता होती थी। जनसंघ के संस्थापक ने जम्मू और कश्मीर के भारत के साथ पूर्ण एकीकरण का आह्वान किया और परमिट नियम को चुनौती देने का फैसला किया। उन्होंने कुछ स्वयंसेवकों के साथ 1953 में कश्मीर में प्रवेश किया, जहाँ उन्हें राज्य पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 23 जून, 1953 को, मुखर्जी की रहस्यमय परिस्थितियों में पुलिस हिरासत में मृत्यु हो गई।
गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या की 26 मार्च, 2003 की सुबह उनकी कार में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वे अहमदाबाद के लॉ गार्डन इलाके में टहलने निकले थे। गुजरात उच्च न्यायालय ने 2011 में हत्या के मामले में मुख्य आरोपी सहित 12 लोगों को बरी कर दिया था। कभी मन करे जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम से अलंकृत दिल्ली के मुखर्जी नगर इलाके में स्थित बत्रा सिनेमा परिसर के पास मुखर्जी साहब की प्रतिमा की दशा को देख लें।
अजमेर में दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रतिमा को देखकर प्रतिमा का इतिहास याद आ गया। कहते हैं ‘भारत में प्रतिमा विज्ञान एवं प्रतिमा कला या मूर्तिकला का जन्म तथा विकास एवं प्रोल्लास देवार्चा से पनपा। सभी ध्यानी, योगी, ज्ञानी नहीं हो सकते थे, अत: ‘भावना’ के लिये प्रतिमा की कल्पना हुई। कालांतर पाकर पौराणिक पूर्तधर्म (देवताय निर्माण, देव प्रतिष्ठा एवं देवार्चन) ने प्रतिमा निर्माण की परंपरा में महान योगदान दिया। देवी मंदिरों के निर्माण में न केवल गर्भगृह के प्रधान देवता के निर्माण की आवश्यकता हुई वरन् देवगृह के सभी अंगों, भित्तियों, शिखरों आदि पर भी प्रतिमाओं के चित्रणों का एक अनिवार्य अंग प्रस्फुटित हुआ। इस प्रकार प्रधान देवों के साथ साथ परिवार देवों तथा भित्ति देवताओं की भी प्रतिमाएं बनने लगीं। मंदिर की भित्तियाँ पौराणिक आख्यानों के चित्रणों से भी विभूषित होने लगीं। नाना उप लक्षणों, प्रतीकों की पूर्ति के लिये यक्ष, गंधर्व, किन्नर, कूष्माण्ड, ऋषिगण, वसुगण, शार्दूल, मिथुन, सुर, सुंदरी, वाहन, आयुध आदि भी चित्रित होने लगे जिनकी प्रतिमा भारतीय मूर्तिकला के समुज्ज्वल निदर्शन हैं।
ज्ञातव्य हो कि कुछ दिन पूर्व एक संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा था कि “हमारे शास्त्रों में कहा गया है- “स्वदेशो भुवनम् त्रयम्” अर्थात, अपना देश ही हमारे लिए सब कुछ है, तीनों लोकों के बराबर है। जब हमारा देश समर्थ होगा, तभी तो हम दुनिया की सेवा कर पाएंगे। एकात्म मानव दर्शन को सार्थक कर पाएंगे। दीनदयाल उपाध्याय जी ने भी यही लिखा था-‘एक सबल राष्ट्र ही विश्व को योगदान दे सकता है।’ यही संकल्प आज आत्मनिर्भर भारत की मूल अवधारणा है। इसी आदर्श को लेकर ही देश आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि सामाजिक जीवन में एक नेता को कैसा होना चाहिए, भारत के लोकतंत्र और मूल्यों को कैसे जीना चाहिए, दीनदयाल जी इसके भी बहुत बड़ा उदाहरण हैं। एक ओर वो भारतीय राजनीति में एक नए विचार को लेकर आगे बढ़ रहे थे, वहीं दूसरी ओर, वो हर एक पार्टी, हर एक विचारधारा के नेताओं के साथ भी उतने ही सहज रहते थे। हर किसी से उनके आत्मीय संबंध थे।”
दीन दयाल जी मथुरा जिला के नागला चन्द्रवं गाँव में जन्म लिए। पिता एक ज्योतिषी थे और माँ एक कुशल द्रष्टा, खासकर हिन्दू प्रथा की। शिक्षा पिलानी (राजस्थान), कानपूर-आगरा (उत्तर प्रदेश) से प्राप्त किये। सं 1937 के करीब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक के बी हेडगेवार जी से मिले। मुलाकात इनके जीवन-रेखा को कुछ अलग, कुछ करने की ओर मोड़ दी। बाद में ये पूर्णकालीन रूप से संघ से जुड़ गए और जीवन-पर्यन्त प्रचारक बन गए। जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी सन 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना किये, दीन दयाल जी कानपूर के महासचिव बने, फिर अखिल भारतीय महासचिव बनाये गए। लगभग 15 लगातार वर्षों तक वे महासचिव रहे। सं 1963 में वे जौनपुर लोक सभा क्षेत्र से चुनाव लड़े। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। सन 1967 के आम चुनाव में जनसंघ को कुल 35 सीट प्राप्त हुए और संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। समय बदलता गया। श्री दीन दयाल जी जनसंघ के अध्यक्ष बने, साल 1967 था। ये पांचजन्य के संपादक भी रहे।
राजनीतिक हवाएं बदल रही थी। श्री दीन दयाल जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बनने के महज दो महीने के अंदर ही 10 फरवरी, 1968 को सियालदह एक्सप्रेस ट्रेन से लखनऊ से पटना यात्रा हेतु ट्रेन पर सवार हुए। ट्रेन देर रात कोई 2.10 बजे मुगलसराय स्टेशन पहुँची। लेकिन दीनदयालजी उस ट्रेन में नहीं थे, अलबत्ता, उनका पार्थिव शरीर स्टेशन के ट्रेक्शन पोल संख्या 748 के पास पड़ी मिली। जीवन का समय यहाँ पूर्ण-विराम लगा दिया था। कहा जाता है वे अंतिम बार जीवित, सांस लेते जौनपुर स्टेशन पर देर रात देखे गए थे। मृत्युपरांत अनेकानेक अन्वेषण हुए, कमिटी बानी, कमीशन बनी, कुछ संदिग्ध पकड़ाए, कुछ संदिग्ध छोड़े गए, और अंततः क्या हुआ यह प्रश्न अनुत्तर रहा, आज तक।
सन 1967 में जब दीनदयाल उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थे, तत्कालीन आम चुनाव में कुल 35 सीट जीतकर भारतीय संसद में तीसरा नाम दर्ज किये । साल विगत लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत के संसद (लोकसभा) में भाजपा की संख्या 303 थी, आज लोकसभा में 240 और राज्यसभा में 90 सदस्य हैं – लेकिन दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांत और विचार ‘वास्तविक व्यवहारों से मीलों दूर है,’ हम चाहे कुछ भी कह लें।