जब ‘आयु’ पर ‘बवाल होता है तो व्यक्ति केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल बनता है; वैभव सूर्यवंशी तो बच्चा है, संदेह नहीं, आशीष दें भारतीय क्रिकेट को पुनः परिभाषित करने के लिए [ताजपुर का ताज-2]

​गुरु-शिष्य: राहुल द्रविड़ और वैभव सूर्यवंशी

ताजपुर (समस्तीपुर)/पटना/नई दिल्ली: देश के लगभग सभी चौराहों पर, ताजपुर का चौराहा भी उसमें सम्मिलित है, इस बात पर चर्चाएं आम हैं कि आखिर वैभव सूर्यवंशी की आयु कितनी है? समाज के लोग, सत्ता के गलियारे में कॉरपोर्रेट घरानों से जुड़े संभ्रांत अपना समय इस पर गंवा रहे हैं। लेकिन यह समझ से परे हैं। परन्तु उन्हीं लोगों के बीच बैठा जीवन का साठ, सत्तर, अस्सी बसंत देखे बुजुर्गों का इस विषय पर एक ही मत है – आयु पर विवाद होना यानी भविष्य उज्जवल होना। इससे पूर्व जिस व्यक्ति की आयु पर बवाल हुआ था वह पहले केंद्रीय मंत्री बना, फिर राज्यपाल। अगर किस्मत और साथ दिया तो शायद देश का प्रथम नागरिक भी बन सकता है। इसलिए वैभव सूर्यवंशी की आयु पर आप खूब व्याख्यान करें, आशीष दें उसे भारतीय क्रिकेट को पुनः परिभाषित करने के लिए। शेष सब मिथ्या है। 

आईपीएल के रिकॉर्ड बुक के मुताबिक वैभव सूर्यवंशी का जन्म 27 मार्च 2011 को हुआ था। लेकिन दादी श्रीमती उषा सिंह के बारे में कोई नहीं सोचता जो श्रीमती आरती सिंह के प्रसव पीड़ा के समय वहां थी। कौन दिन था, क्या तारीख था, कौन साल था, कौन नक्षत्र था, क्या समय था? उनसे बेहतर कौन जान सकती हैं। पढ़े-लिखे लोग तथ्य से परे ‘बतकुच्चन’ अधिक करते हैं। कहते हैं कि वैभव अपने एक पुराने अन्तर्वीक्षा में कहा था कि वह सितंबर 2023 में 14 साल के हो जायेगा। यानी वैभव के उस बात को आधार मानकर लोग बाग़ का कहना है कि इस साल सितंबर में 23 तारीख को उसकी आयु 16 साल होनी चाहिए। जबकि आईपीएल के रिकॉर्ड बुक के मुताबिक वैभव सूर्यवंशी का जन्म 27 मार्च 2011 को हुआ था और उनकी मौजूदा उम्र 14 साल और 36 दिन है। 

बहरहाल, विगत दिनों जब भारतीय क्रिकेट नक्षत्र पर वैभव सूर्यवंशी का नाम एक बाल-युवा खिलाड़ी के रूप में उदय हुआ तो संस्थागत पत्र-पत्रिकाओं से लेकर सामाजिक क्षेत्र के मीडिया साइटों पर सूर्यवंशी की आधिकारिक जन्म तिथि की प्रमाणिकता पर संदेह किया जाने लगा। शब्दों का विन्यास कर अख़बारों के पन्नों पर परोसा जाने लगा। कमर और कन्धा हिलाते, झुकाते देश के संभ्रांत विश्लेषक, विशेषज्ञ सच-झूठ पर तार्किक विश्लेषण करने लगे। भारत की कुल आवादी में 10 से 19 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या कुल आवादी का पांचवा हिस्सा है, जिसमें एक बहुत बड़े समुदाय को संवैधानिक मताधिकार भी प्राप्त है -म उसी भीड़ में वैभव एक बच्चा है जो औरों से अलग है । 

एक संवाददाता के रूप में 14-वर्षीय इस वैभव सूर्यवंशी की आयु विवाद का मसला अख़बारों के पन्नों पर, टीवी चैनलों के स्क्रीनों पर आते ही सबसे पहले भारत के तत्कालीन थल सेना प्रमुख जेनेरल विजय कुमार सिंह पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एडीसी याद आ गए। आज से 13 वर्ष पहले, जब स्वतंत्र भारत के लोग 62वें जश्ने गणतंत्र मनाने के लिए सज्ज हो रहे थे, दिल्ली के राजपथ पर भारतीय थल सेना अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए अंतिम अभ्यास कर रही थी, जनवरी महीने के तीसरे सप्ताह के पहले सोमवार को तत्कालीन सेनाध्यक्ष की आयु को लेकर भूचाल आ गया था। जनरल वीके सिंह 16 जनवरी, 2012 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से भारत के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर किये। वह पहली घटना थी जब किसी सेना प्रमुख ने सरकार को कानून की अदालत में घसीटा था। सरकार से लेकर अखबार और टीवी तक जनरल की आयु का मामला छाया हुआ था। 

उन दिनों जनरल सिंह ने कहा था: “मुद्दा ईमानदारी और सम्मान का है। मुद्दा (उम्र का) हमेशा से रहा है, मैं इस बात पर जोर दे रहा हूं, मुद्दा हमेशा से ईमानदारी और सम्मान का रहा है।” तत्कालीन सेना प्रमुख का कहना है कि 10 मई, 1951 को उनकी वास्तविक जन्मतिथि माना जाना चाहिए, क्योंकि यह उनके 10वीं के प्रमाण पत्र में दर्ज है, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने इसे खारिज कर दिया है, क्योंकि 10 मई, 1950 उनकी संघ लोक सेवा आयोग प्रवेश परीक्षा के फॉर्म में दर्ज की गई तारीख है।अपनी याचिका में जनरल सिंह ने कहा था कि यह मामला उनके “सम्मान और ईमानदारी” से जुड़ा है, क्योंकि वे 13 लाख कर्मियों वाले बल का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार ने उनकी जन्मतिथि “बदलने” का फैसला क्यों किया, जबकि वे 36 साल सेवा में रहे और पूरे करियर में पदोन्नति पाते रहे।

खैर, तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने उनके वैधानिक प्रतिनिधित्व को खारिज कर दिया था, जिससे जनरल के लिए इस विषय पर सभी आंतरिक अपील विकल्प समाप्त हो गए थे। सरकार के इस फैसले से जनरल सिंह को 31 मई, 2012 को सेवा निवृत होना पड़ा था और उनके स्थान पर आये थे जनरल विक्रम सिंह। 

आयु के अलावे सिंह अपने कार्यकाल के दौरान लगातार विवादों से जुड़े रहे एक बवाल प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी के लीक हो जाने पर भी था । सरकार द्वारा जब उनकी दलील को ठुकरा दी गई, वे मामले को लेकर वो सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए। खैर। कोई १२ साल बाद सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल जी.ई. वाहनवती ने कोर्ट को यह जानकारी दी कि सरकार ने 30 दिसंबर के उस फैसले को वापस ले लिया है, जिसमें सरकार ने जनरल वीके सिंह की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें जनरल ने अपनी जन्मतिथि 10, मई 1951 बताई थी। जैसे ही, सरकार याचिका वापस ली, जनरल सिंह ने भी अपनी अर्जी वापस ले ली है। मामला समाप्त। खैर। 

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अवकाश के बाद सिंह राजनीति में प्रवेश लिए और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हज़ारे द्वारा चलायी जा रही आंदोलन में खुलकर हिस्सा लिया। इरादा साफ़ था – सेवाकाल के उपरांत राजनीति में आना, राजनेता के रूप में देश का सेवा करना। वैसे अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में दशकों पूर्व चले आदोलन में अन्ना के मंच और अन्ना के कन्धों का इस्तेमाल भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उद्येश्य से भले किया गया हो, लेकिन लोगों की मंशा कुछ और थी। क्योंकि उस दिन भी जनरल को भारत के आम लोग जितना जानते थे, अन्ना हज़ारे का पलड़ा भारी था। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, सिंह साहब गाजियाबाद से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। पहले सैनिक के वर्दी में आते थे, बाद में आम पोषक में आने। मोदी के मंत्रिमंडल में मंत्री का पदभार भी संभाला। आज मिजोरम के राज्यपाल के पद पर शोभायमान हैं। 

उम्र विवाद का अंत  इससे बेहतर और क्या हो सकता है। क्या पता आज वैभव सूर्यवंशी के मामले में उसकी उम्र को लेकर देश में जो भी विवाद हो रहा हो, कल वैभव सूर्यवंशी में उसकी अपनी पुरुषार्थ इतनी अधिक हो जाय कि वह भारतीय क्रिकेट टीम का अंडर-19 और ओवर-19 का कप्तान भी बने, विश्व के पटल पर भारत को क्रिकेट की दुनिया में एकाधिकार भी प्रदान करें। कुछ भी हो सकता है। सब समय की बात है। 

बहरहाल चाहिए चलते हैं ताजपुर स्थित वैभव सूर्यवंशी के घर। समस्तीपुर रेलवे स्टेशन से ऑटो स्टैंड से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के गाँव कर्पूरी ग्राम होते सुभाष चौक पहुंचें। यहाँ से जो रास्ता सीधा हॉस्पिटल और कोल्ड स्टोरेज होते आगे निकल रहा है, उसे छोड़ दें। यह मार्ग महुआ होते बिहार की राजधानी पटना सचिवालय की ओर जाती है जहाँ प्रदेश के मुख्यमंत्री, खेलमंत्री, अधिकारी, पदाधिकारी खेल के प्रति कान में तेल डालकर बैठते आये हैं। 

सुभाष चौक से दाहिने हाथ ठाकुरबाड़ी स्थित मिलेगा। मुख़्यमंरग से पगडण्डी के रूप में जो रास्ता आगे दिखाई दे रहा है यह बाबू उमेश प्रसाद सिंह, पूर्व-व्याख्याता, इंदिरागांधी-श्री रामजी रॉय महाविद्यालय के पोते वैभव सूर्यवंशी का घर है। आज सिंह साहब नहीं हैं, लेकिन उनका आशीष अपने सभी बच्चों पर है। ठाकुरबाड़ी से आगे बढ़ने पर नीम चौक और बाएं दरगाह रोड भी मिलेगा। वैभव के घर के पीछे मुद्दत से बहने वाली जमुआरी नदी का अस्तित्व भी बिहार में खेल-कूद के अवसर जैसा ही हो गया है। जमुआरी नदी मुजफ्फरपुर जिले के सकरा प्रखंड के जहांगीरपुर से निकल कर समस्तीपुर जिले के पूसा, ताजपुर, मोरवा व सरायरंजन प्रखंड से होकर गुजरती है। उत्तर दिशा में सकरा प्रखंड के जहांगीरपुर चौर स्थित बूढ़ी गंडक से निकलकर यह नदी दक्षिण दिशा में सरायरंजन प्रखंड अरमौली गांव स्थित नून व बलान नदी में जा मिलती है। यह बूढ़ी गंडक की एक सहायक नदी है और इसकी बाईं शाखा, जिसे बैंती के नाम से भी जाना जाता है, बूढ़ी गंडक के साथ संगम से पहले नून नदी में मिल जाती है। 

इतिहासकारों की मानें तो इस नदी का अस्तित्व उतना ही पुराना है, जितना कि गंगा व बूढ़ी गंडक का। इस नदी की लम्बाई करीब 60 किलोमीटर व चौड़ाई करीब डेढ़ सौ मीटर है। आरंभिक दिनों में यह नदी उक्त पांचों प्रखंडों में सिंचाई की रीढ़ थी। बूढ़ी गंडक से आवश्यक जल वितरण होता था, जो इसके बहाव के पूरे क्षेत्र में हजारों एकड़ जमीन को सींचता था। बड़े-बुजुर्गो के अनुसार नदी के बीचोंबीच बहाववाली जमीन सरकारी एवं गैरमजरूआ है, जबकि नदी के दोनों किनारे की जमीन रैयती है। चार दशक पूर्व इस नदी में अक्सर पानी दिखता था, पर धीरे-धीरे मिट्टी के भर जाने से यह नदी उथरी होती गई। रही-सही कसर इसके उद्गम स्थल पर स्लुइस गेट के द्वारा बंद कर जल प्रवाह को रोक दिया गया। परिणामस्वरूप, बूढ़ी गंडक से जल प्रवाह के रुक जाने से यह नदी पूरी तरह बरसाती नदी बन कर रह गई। बिहार में ऐसी घटनाएं आम हैं। क़याम खेल, क्या नदी, क्या शिक्षा, क्या परीक्षा – सब धन बाइस पसेरी। 

वैभव की दादी को उस इलाके के बच्चे से लेकर बूढ़े तक, घनाढ़यों से लेकर दुकानदारों, सब्जीवाले, रिक्शावाले, ऑटोवाले सभी जानते हैं। पहले अपने पति के कारण, फिर दोनों पुत्रों – संजीव और राजीव सूर्यवंशी – बाद में बच्चों के संतानों के कारण और अंततः विगत आईपीएल में वैभव सूर्यवंशी के ऐतिहासिक प्रदर्शन के कारण। इस क्षेत्र में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, चाहे प्रदेश के मुख्यमंत्री कितना भी जातिगत जनगणना करा लें राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए, सूर्यवंशी परिवार के प्रति सबों का सामान सम्मान है। हाँ, वैभव की प्रतिभा उस सम्मान में चार-चांद लगा दिया। 

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सूर्यवंशी परिवार से जुड़े राष्ट्रीय जनतादल के जिला महासचिव तबरेज आलम कहते हैं: “मेरे पहला संतान का जब जन्म हुआ था तब चाची जी (वैभव की दादी जी) मेरी पत्नी के बगल में खड़ी थी मोहल्ले के कई महिलाओं के साथ। हमलोगों का वैभव के परिवार से, पिता से, चाचा से, घर के अन्य सदस्यों से वैभव के जन्म से पहले से मधुर सम्बन्ध है। सभी एक दूसरे के प्रति संवेदनशील हैं। वैभव के जन्मदिन के अवसर पर जब उससे कहे कि एक फोटो मेरे साथ भी खींचा लो, कल जब तुम बड़ा आदमी हो जायेगा, कपिलदेव, सुनील गावस्कर, धोनी, विराट कोहली के बराबर हो जायेगा तो तस्वीर को दिखाएँ, वह गले से लग गया। कहने लगा आप आशीष दें। वैभव और उस घर के सभी बच्चों में परिवार का का संस्कार कूट-कूट कर भरा है।”

वैभव की दादी कहती हैं: “वैभव का खेल के प्रति, क्रिकेट के बल्ला से बचपन से बहुत प्रेम रहा है। मेरे घर के पास पहले बहुत खुला क्षेत्र था। ठाकुरबड़ी पास में होने के कारण मोहल्ले के बच्चों के साथ वैभव भी खेलता था। उन दिनों प्लास्टिक के बॉल और प्लास्टिक के बैट थे उसके पास। स्वाभाविक है कम उम्र के कारण बैट या बॉल भारी नहीं दिया जा सकता था। एक दिन खेलते-खेलते जब वह अपने बैट से मारा तो बॉल कुछ फर्लांग हट कर बहने वाली जमुआरी नदी की ओर चला गया और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा छक्का-छक्का। उन दिनों उसके पिता और चाचा बॉल को रस्सी में बांध कर छत से लटका देते थे। बचपन में सभी के माता-पिता और घर के सदस्य बच्चों को इसी तरह प्रशिक्षण देते हैं, वैभव कुछ अलग नहीं था। एक सामान्य परिवार में जितनी सुविधा और सुरक्षा मिलनी चाहिए थी, वैभव को मिलता रहा।”

दादी कहती हैं: “खेल, विशेष कर क्रिकेट के प्रति वैभव का रुझान उसके पिता के खून से आया है। मेरा बेटा (संजीव सूर्यवंशी) भी बहुत उम्दा खिलाड़ी था। बचपन में खेल के प्रति उसकी जो चाहत थी, खेल की दुनिया में वह जो अपना नाम कमाना कमाना चाहता था, वह पूरा नहीं हो सका। आज की बात तो नहीं कह सकती, लेकिन उन दिनों हमारे प्रदेश में खेल के क्षेत्र में खिलाड़ियों को वह सुविधाएँ और अवसर नहीं मिल पाती थी जो अन्य जगह मिला है। यह जरुरी नहीं है कि सभी बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में ही अव्वल आए। शिक्षा के अलावे, चाहे खेल हो या व्यवसाय, विज्ञान हो अथवा अन्य, बच्चों की अभिरुचि अलग-अलग होती है। संजीव की भी अभिरुचि कुछ अलग थी खेल के प्रति। वह उम्दा खिलाड़ी बनना चाहता था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।”

वैभव की दादी

दादी कहती है: “वैभव जब कोई छह साल का हुआ था तब ठाकुरबाड़ी के पास लोगों से बात कर खेलने का एक स्थान बनाया गया। वैभव के साथ-साथ अन्य बच्चे भी खेलते थे वहां, लेकिन अब तक पिता-चाचा-माँ की नजर वैभव की प्रतिभा पर टिक गयी थी। सभी उसके साथ खड़े थे, खड़े हैं। बाद में जब ठाकुरबाड़ी के क्षेत्र का भी विस्तार हुआ, कई मकान बन गए, तब अपने घर के नीचे अभ्यास करना के स्थान बनाया गया, पीच बनाया गया, जाल लगाया गया।”

कुछ पल रुकते दादी कहती है कि “अपने संतान के लिए पिता का योगदान तो होता ही है, लेकिन वैभव के जीवन निर्माण में उसकी माँ की जो भूमिका रही है उसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। मेरी बहु एक गृहणी है, लेकिन आधुनिक दृष्टि से देखा जाय तो वह किसी भी शिक्षित, बहुत शिक्षित महिला अधिकारी, पदाधिकारी से बहुत बेहतर है। वह भले क्रिकेट के मैदान में या अभ्यास करने के स्थान पर शरीर से स्वयं उपस्थित नहीं रहती थी; लेकिन खेलने के दौरान किन-किन वस्तुओं की जरूरत होगी, खासकर भोज्य सामग्रियों की, उसको कभी किल्लत नहीं होने दी। अपनी सम्पूर्ण सामर्थ्य से वह अपने पुत्र को गरिमामय इतिहास लिखने के लिए समर्पित कर दी।”

दादी के अनुसार, “इस बात को पुनः परिभाषित की कि एक मां, एक बच्चे के जीवन निर्माण में पहली शिक्षिका होती है। बाद में वैभव को समस्तीपुर की एक स्थानीय अकादमी में दाखिला दिलाया गया। वित्तीय कठिनाइयों के बावजूद, उसके  पिता उन्हें पटना में बेहतर सुविधाओं के लिए ले गया ताकि वैभव को उचित प्रशिक्षण मिले। “

वैभव के चाचा राजीव सूर्यवंशी, जो वैभव के नित्य कठिन परिश्रम के साझेदार हैं, कहते हैं: “चालीस वर्ष पहले, यानी 1985-1990 के कालखंड में भैया (संजीव सूर्यवंशी) एक बेहतरीन क्रिकेट के खिलाड़ी थे। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता था कि उन दिनों प्रदेश में क्रिकेट के क्षेत्र में भी साधनों, अवसरों की किल्लत थी, वैसी स्थिति में जिला स्तर पर किल्लत होना भी स्वाभाविक था। जिला स्तर पर वे बहुत प्रतिभावान थे, मशहूर थे। कुछ पारिवारिक और कुछ अवसरों की कमी के कारण वे निखार नहीं पाए। अपनी प्रतिभा और आशाओं की ह्रदय के एक कोने में दबा दिया। फिर एक निजी क्षेत्र में कार्य करने के क्रम में बाहर गए। लेकिन कभी भी वे अपने आप को क्रिकेट की दुनिया से अलग नहीं किये।”

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राजीव जी के अनुसार, “उस ज़माने के जितने भी बेह्तरीओं खिलाड़ी थे, चाहे कपिल देव हों, सुनील गावस्कर हों, रोजर बिन्नी हों, रवि शस्त्री हों, राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, गुंडप्पा विश्वनाथ, अनिल कुमले, सौरभ गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी, गौतम गंभीर, वीरेंदर सहबाग, युवराज सिंह, सभी के खेलों की अदाओं को, वे बहुत ही गंभीरता से अध्यन करते थे और अभ्यास के दौरान उसपर अमल भी करते थे।” 

राजीव सूर्यवंशी आगे कहते हैं कि “विवाह (2003) के बाद जब घर में बच्चों का आगमन हुआ, समय बदल रहा था। लेकिन वैभव जब चार साल का था, वह खेलने के क्रम में क्रिकेट बैट को अधिक पसंद करता था। एक दिन जब वह जोर-जोर से छक्का, छक्का चिल्लाया, तो सबों की नजर वैभव पर टिक गयी। आप यह भी कह सकते हैं कि क्रिकेट के क्षेत्र में दूसरी पीढ़ी की यात्रा शुरू हो गयी। अब तक घर की स्थिति भी बदल गयी थी और सरकारी क्षेत्र में ना सही, निजी क्षेत्र की मदद से राज्य और देश में क्रिकेट की परिभाषा भी बदल रही थी। समस्तीपुर में जो भी स्थानीय क्रिकेट प्रशिक्षण केंद्र था उसमें वैभव का आना-जाना शुरू  हुआ। यहाँ सबसे पहले प्रशिक्षक बने श्री ब्रजेश ओझा जी। वैभव दिन में एकेडमी में प्रशिक्षण लेता था और घर पर पिता उसके कोच बन गए। धीरे-धीरे घर के सभी लोग, क्या दादा, क्या दादी, क्या माँ, क्या चाचा-चाची सभी उसके खेल और प्रशिक्षण का हिस्सा बनते गए और अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाते गए।”

राजीव सूर्यवंशी आगे कहते हैं: समय बीत रहा था। नौ वर्ष की आयु में संपतचक पटना में श्री मनीष ओझा द्वारा संचालित पटना जेनेक्स एकेडमी में प्रवेश दिलाया गया वैभव को। हमारे घर से उस एकेडमी की दूरी करीब 110 किलोमीटर के आसपास है। उस एकेडमी में अभ्यास के लिए सप्ताह में चार दिन जाना निश्चित हुआ। यहाँ से वैभव की माँ और घर के अन्य महिला सदस्यों की भूमिका अधिक हों गयी। यह प्रशिक्षण स्थान पटना-गया सड़क पर स्थित है। भैय्या सप्ताह में चार दिन वैभव को ऐसे लेकर निकलते थे कि सूर्योदय से पहले वह अपने प्रशिक्षण केंद्र पर पहुँच जाय और प्रशिक्षण समाप्त होने के साथ वापस समस्तीपुर। भाभी सभी प्रकार के पौष्टिक खाना, पानी और अन्य पदार्थ साथ दे देती थीं, जो न केवल वैभव या भैया के लिए, बल्कि साथ खेलने वाले अन्य खिलाड़ी भी खा सकें। यह एक तपस्या थी। इन्ही प्रशिक्षण और तत्कालीन टूर्नामेंट खेलों के दौरान वैभव पर बीसीसीआई के अध्यक्ष राकेश तिवारी की नजर पड़ी और प्रदेश (बिहार) स्तरीय टूर्नामेंट्स में वैभव का चयन हुआ।”

वैभव की क्रिकेट में स्टारडम की यात्रा घरेलू टूर्नामेंटों में शानदार प्रदर्शन से शुरू हुई। अंडर-16 ट्रायम्फ: अंडर-16 ट्रायल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और हेमन ट्रॉफी में 8 मैचों में 800 रन बनाकर बिहार के शीर्ष स्कोरर बने। वीनू मांकड़ ट्रॉफी: अंडर-19 प्रतियोगिता में 78.60 की औसत से 393 रन बनाए। भारत बी अंडर-19: चतुष्कोणीय श्रृंखला में भाग लिया, जिसमें प्रमुख मैचों में 53, 76 और 41 रन बनाए।रणजी ट्रॉफी डेब्यू (2024): महज 13 साल की उम्र में मुंबई के खिलाफ बिहार के लिए पदार्पण किया। इंडिया अंडर-19: उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की अंडर-19 टीम का प्रतिनिधित्व किया है। यूथ टेस्ट डेब्यू में उसने सितंबर 2024 में ऑस्ट्रेलिया अंडर-19 के खिलाफ यूथ टेस्ट में डेब्यू किया और चेन्नई में 58 गेंदों में शतक बनाकर सुर्खियां बटोरीं। यह अंडर-19 टेस्ट में किसी भारतीय द्वारा सबसे तेज शतक है। उन्होंने इस मैच में 104 रन बनाए थे। अंडर-19 एशिया कप: उन्होंने 2024 में यूएई में हुए अंडर-19 एशिया कप में भी भाग लिया और टीम के लिए महत्वपूर्ण रन बनाए, जिसमें मेजबान यूएई के खिलाफ अर्धशतक और सेमीफाइनल में श्रीलंका के खिलाफ प्लेयर ऑफ द मैच प्रदर्शन शामिल है।

19 अप्रैल 2025 को, 14 साल और 23 दिन की उम्र में, उन्होंने राजस्थान रॉयल्स के लिए खेलते हुए इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में पदार्पण किया, और ऐसा करने वाले सबसे युवा खिलाड़ी बन गए। अपने पहले ही मैच में लखनऊ सुपर जायंट्स के खिलाफ खेलते हुए, उन्होंने अपनी पहली ही गेंद पर छक्का मारकर शानदार शुरुआत की। उन्होंने 20 गेंदों में 34 रन बनाए, जिसमें दो चौके और तीन छक्के शामिल थे। आईपीएल 2025 में राजस्थान रॉयल्स ने उन्हें 1.10 करोड़ रुपये में खरीदा है। 

क्रमशः 

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