पटना / नई दिल्ली: पचपन वर्ष पहले बांग्लादेश के निर्माण हेतु भारत-पाकिस्तान के बीच प्रत्यक्ष युद्ध भले 13-दिनों का रहा हो, लेकिन साल 1971 के मार्च के अंतिम सप्ताह (26 मार्च) से दिसंबर के मध्य (16 दिसंबर) के बीच भारत के हस्तक्षेप के पूर्व तक बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी और पाकिस्तान के बीच युद्ध, जिसमें कई हज़ार लोग, महिला-पुरुष, बच्चे वीरगति को प्राप्त किये, नहीं भुलाया जा सकता है। साथ ही, जो आज साठ बसंत के गवाह हैं, खासकर बिहार के, वे यह भी नहीं भुला पाए होंगे कि कैसे उस युद्ध के दौरान प्रदेश में, खासकर पटना में ‘कंजक्टिवाइटिस’ लोगों को ग्रसित कर लिया था। युद्ध के कारण इस बीमारी का नाम ही बांग्लादेश हो गया था। इतना ही नहीं, संध्याकाळ होते ही, जैसे ही ‘सायरन’ बजता था, गली, मोहल्ले, बाजार, सड़कों पर बत्ती गुल हो जाती थी और मजाल है कोई भी व्यक्ति सरकार और व्यवस्था के विरुद्ध चूं तक कर ले।
उन दिनों हम पटना कॉलेज के सामने वाली गली में रहते थे। यह गली अशोक राजपथ और एनी बेसेन्ट रोड को मिलाती थी। इस गली की विशेषता यह थी कि यह यादवों का इलाका था, जिसमें दो चार घर कायस्थों का, ब्राह्मणों का था। लेकिन पूरे इलाके में ‘भैया’ और ‘चाचा’ का बोलबाला था। मजाल है कोई किसी से ऊँची आवाज़ में बात कर ले। बुजुर्गों के प्रति सम्मान और बच्चों के प्रति प्यार का पलड़ा बराबर था। इस गली में रहने के कारण पटना विश्वविद्यालय के तत्कालीन छात्र-छात्राओं को, पटना शहर के अधिकारियों को, पुलिस को जानता-पहचानता था। वजह था सड़क पर कमाल बाइंडिंग हॉउस, अनुपम प्रकाशन, ग्रीन स्टोर्स, बनारसी पान वाले, शांति कैफे आदि दूकानों का होना।
इस नुक्कड़ पर पटना यातायात पुलिस के तत्कालीन डीएसपी श्री बनबारी बाबू के आने-जाने के कारण वे हम सभी बच्चों को जानते थे, पहचानते थे। मेरी एक और पहचान थी कि मैं सुबह-सवेरे पटना से प्रकाशित अख़बारों को बेचा करता था, अखबारवाला था। बनबारी बाबू कई मर्तबा अखबार लिया करते थे और हाथ में पांच-दस पैसे अधिक ही दे दिया करते थे। वे यह भी जानते थे कि मैं टीके घोष अकादमी में पढ़ता भी हूँ। युद्ध के उसी कालखंड में एक दिन बनबारी बाबू पटना मार्किट के सामने अंजुमन इस्लामिया हॉल के सामने मिले। वे पटना यातायात पुलिस के जीप पर हॉल के सामने उनके बाएं हाथ पटना चिकित्सा महाविद्यालय की ओर जाने वाली सड़क के नुक्कड़ पर थे।
मुझे देखते ही वे अपनी ओर बुलाये। फिर कहते हैं: “कल से एक ड्राईव चलेगा गाड़ियों, स्कुटर, मोटर, मोटर साईकिल आदि की अगली बत्ती के ऊपरी हिस्से को काले रंग से रंगने की ताकि सायरन बजने के बाद, ब्लैक आउट होने के बाद अगर कोई वाहन सड़क पर चलती है तो उसकी रोशनी आसमान की ओर नहीं जाय। यह रिक्शा में लगी बत्ती पर भी लागु है।” मैं उनकी बात और उनके इशारे को समझ गया। उस समय मैं जहाँ खड़ा था, वह से 10 कदम पर पेंट-ब्रश की दूकान थी। नूरानी दवाखाना के पास। रंगने के कार्य के लिए नोवेल्टी एंड कंपनी के नजदीक हरिहर पान वाले के पास शुरू हो गयी सुबह-सवेरे से।
कोई आधे घंटे तक बनबारी बाबू वहीँ खड़े रहे। पीरबहोर थाना के कुछ कर्मी वाहन चालकों को कहते थे, वे सभी आदेश का सम्मान करते किनारे गाड़ी लगाते थे और मैं अपना काम करता था । चवन्नी, बीस पैसा, दस पैसा यही मोल था मेहनत का। शायद बनबारी बाबू इसी रूप में मेरी मदद करना चाहते थे। कुछ माह बाद, उन्होंने एक और ड्राइव शुरू किया था – मोटर साईकिल और स्कूटर के आगे-पीछे नंबर लिखा होने का। अब तक साल 1974 आ गया था और मैं इंडियन नेशन अखबार में नौकरी भी करने लगा था, लेकिन वे दफ्तर आकर सलाह दिए थे और मैं उनके सलाह का सम्मान कर काम भी किया था, कुछ पैसे भी कमाए थे। खैर।
पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत की आपातकालीन प्रतिक्रिया तैयारियों की समीक्षा करने के लिए बड़े पैमाने पर नागरिक सुरक्षा मॉक ड्रिल के तहत बुधवार को भारत भर के कई शहरों में ब्लैकआउट अभ्यास चल रहा है। गृह मंत्रालय ने सोमवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह जांचने के लिए अभ्यास करने का निर्देश दिया था कि क्या वे “नए और जटिल खतरों” के लिए तैयार हैं। सोमवार को यह निर्देश तब आया जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत मंगलवार-बुधवार की मध्यरात्रि को नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर पाकिस्तान में आतंकी चौकियों पर हमला करने की तैयारी की। यह हमला 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में किया गया, जिसमें 26 लोग मारे गए थे, जिनमें से ज्यादातर आतंकवादी थे।

वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र कहते हैं ‘पटना के लिए मॉक ड्रिल और सायरन कोई नई बात नहीं थी। 1962 में पटना शहर में भूमिगत बंकर भी तैयार किए गए थे। लेखक 1971 में पटना कॉलेज में एक छात्र के रूप में अपने अनुभवों को याद करते हैं, जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था। 1971 में पटना कॉलेज में एक छात्र के रूप में, मुझे शहर में किए गए युद्ध-समय के अभ्यास और आपातकालीन ऑपरेशन अच्छी तरह याद हैं। तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट आर.एन. दास नागरिक सुरक्षा संगठन के प्रभारी थे और आपातकालीन ऑपरेशन की देखरेख करते थे।
शहर भर में रणनीतिक स्थानों पर सायरन लगाए गए थे, जिनमें बांकीपुर गर्ल्स हाई स्कूल, हरमंदिर साहब, गुलजारबाग सरकारी प्रेस, बिहारी जी मिल्स, गोलघर और दरभंगा हाउस शामिल थे। शाम होते ही पूरा शहर कई घंटों के लिए अंधेरा हो जाता था, लोग लालटेन का इस्तेमाल भी नहीं करते थे। रात में सभी दुकानें बंद करने की उम्मीद थी, और यारपुर और चितकोहरा जैसे इलाकों में भूमिगत खाई बंकर बनाए गए थे। पटना और पटना साहिब समेत शहर के रेलवे स्टेशन भी अंधेरे में डूबे रहेंगे। सचिवालय कर्मचारियों को सूर्यास्त से पहले काम छोड़ने की अनुमति होगी, और लोग ऑल इंडिया रेडियो से समाचार प्रसारण के लिए ट्रांजिस्टर रेडियो पर निर्भर रहेंगे।
मिश्रा जी कहते हैं कि ‘उन दिनों पटना के बी.एन. कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर रामेश्वर सिंह कश्यप ने लोहा सिंह नामक एक लोकप्रिय रेडियो धारावाहिक लिखा था, जो चीन के साथ युद्ध के दौरान शुरू हुआ था। यह धारावाहिक शाम के मनोरंजन का मुख्य साधन बन गया, जिसमें फाटक बाबा और खदेरन की माँ जैसे किरदार घर-घर में मशहूर हो गए। पचास साल पहले, पटना एक बहुत छोटा शहर था। रात की ट्रेनों से आने वाले लोग सुबह ही स्टेशन से निकलते थे और रात में घर के दरवाज़े और खिड़कियाँ कसकर बंद कर दी जाती थीं। वह समय उथल-पुथल भरा था, लेकिन शहर की लचीलापन और सामुदायिक भावना चमकती थी। जब हम उन दिनों को याद करते हैं, तो हमें प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयारी और समुदाय के महत्व की याद आती है।’
1971 के इन अभ्यासों में गुप्त सैन्य अभियान, मुक्ति वाहिनी के साथ समन्वय और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की मुक्ति के लिए तैयारियों हेतु सेनाओं की रणनीतिक स्थिति बनाना शामिल था। अभ्यास में हवाई हमले की चेतावनी और ब्लैकआउट शामिल थे। शहरों ने आने वाले हमलों का संकेत देने के लिए हवाई हमले के सायरन का इस्तेमाल किया गया था । ब्लैकआउट अभ्यास के लिए घरों, दुकानों और सरकारी कार्यालयों को लाइट बंद करनी पड़ी या खिड़कियों को काले कपड़े से ढंक दिया जाता था। लोगों को सिखाया गया कि इमारतों को जल्दी से कैसे खाली किया जाए और निर्दिष्ट आश्रयों में कैसे जाया जाए। अभ्यास के दौरान स्वयंसेवकों को प्राथमिक चिकित्सा, अग्निशमन और बचाव तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया। स्कूलों ने लोगों को आपात स्थिति के दौरान कैसे प्रतिक्रिया करनी है, यह सिखाने के लिए नकली बम हमले का अनुकरण किया। पोस्टर, रेडियो घोषणाएँ और अख़बारों के कॉलम में हवाई हमले के दौरान क्या करना है, बच्चों, बुज़ुर्गों और घायलों की सुरक्षा कैसे करनी है और बिना फटे बम या आग लगने की सूचना कैसे देनी है, इस बारे में विशेष निर्देश दिए गए थे।

पटना जिला सुधार समिति के महासचिव और पुराने कांग्रेस कार्यकर्ता राकेश कपूर कहते हैं कि “कल का होने वाला मॉक ड्रिल और ब्लैक आउट से पिछले 1962,1965 और 1971 युद्ध के दौरान होने वाली कवायद का स्मरण हो आया। उस दौरान जो मॉक ड्रिल हुई थी उसमें मोहल्ले के लोगों ने स्वयंसेवक का रोल अदा कर देशवासियों को जागरूक किया था। उसी से अनुभव लेकर पटना में सिविल डिफेंस सर्विस का गठन हुआ और उस समय के स्वयंसेवकों वार्डन बनाया गया था। फिर आगे चलकर गृह रक्षा वाहिनी का भी गठन किया गया। ब्लैक आउट के समय लोगों को कहा गया था बल्ब के ऊपर कैप लगा दें घर और बाहर के लाईट को सायरन बजने पर बुझा दें। उस दौरान जगह जगह पर सायरन लगाया गया था।पटना सिटी में तख्त श्री हरिमंदिर जी गुरूद्वारा के ऊपर भी सायरन लगाया गया था जो काफी दिनों तक रहा।”
कपूर साहब जो उन दिनों काॅमर्स कालेज मे आई.कॉम के छात्र थे और एनसीसी के कैडेट भी थे कहते हैं: “1962 में भारत-चीन युद्ध के समय मेरी उम्र करीब बारह साल की थी ।इसलिए थोड़ा-बहुत याद है और घर के सदस्यों ने ब्लैक आउट के दौरान मोहल्ले में सेवा दी थी । 1971 के पाकिस्तान युद्ध समय मैं 8 वीं कक्षा का छात्र था उस समय देश को दो मोर्चों पर पाकिस्तान से युद्ध लड़ा जा रहा था पश्चिम व पूर्वी क्षेत्र के दोंनो ओर पूर्व में बंगाल के नजदीक रहने के कारण बिहार में डर बना था।तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी की दृढ इच्छा-शक्ति व जनरल माॅनक शाह कुशल रणनीति के परिणाम स्वरुप पाकिस्तान युद्ध में पराजित हुआ और करीब 90 हजार सैनिको के साथ आत्मसमर्पण भी किया जो इतिहास बनकर बंग्लादेश पाकिस्तान से टूट कर एक नया देश बना।पाकिस्तान के आत्मसमर्पण किये गए सैनिको को देखने का मौका मुझे 1974 में N.C.C के रामगढ़ बिहार में लगे कैम्प के दौरान देखने का अवसर मिला था उन क़ैदियों को दामोदर नदी पर बने पुल के पास सुरक्षा घेरा में रखा गया था।

दिल्ली में मॉक ड्रिल के दौरान 8 बजे से सवा आठ बजे तक पूरे लुटियन जोन में ब्लैक आउट किया गया। अधिकारियों के अनुसार देश की सीमा पर मौजूदा हालात को देखते हुए मॉक ड्रिल भविष्य में भी जारी रहेगी। दिल्ली के कई इलाकों में अंधेरा छाया रहा।राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास, अस्पतालों और डिस्पेंसरियां में आईसीयू को ब्लैकआउट से छूट दी गई। दिल्ली में मौक ड्रिल का नेतृत्व आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) कर रहा है। साथ ही, विभिन्न एजेंसियों की मदद से विभिन्न बाजारों, आइजीआइ एयरपोर्ट, खान मार्केट, पालिका केंद्र व सिविक सेंटर, राम मनोहर लोहिया समेत विभिन्न अस्पतालों, आवासीय कॉलोनियों, स्कूलों व सरकारी कार्यालयों व भीड़भाड़ वाले इलाकों में राहत बचाव कार्य के लिए अभियान चलाया गया। यह भी कहा जाता है कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, पाकिस्तान द्वारा संभावित हवाई हमलों से बचाने के लिए ताजमहल को छिपाया गया था। सफ़ेद संगमरमर से बने मुगल युग के मकबरे को एक बड़े हरे कपड़े से ढक दिया गया था।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले करीब 50 साल पहले भारत में भी इसी तरह का अभ्यास किया गया था। तब, देश भर में आयोजित नागरिक सुरक्षा अभ्यास पाकिस्तान द्वारा संभावित हवाई हमलों के लिए नागरिक आबादी को तैयार करने की केंद्र सरकार की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। ये अभ्यास खास तौर पर सीमावर्ती और प्रमुख शहरी क्षेत्रों में प्रमुख थे। पाकिस्तान ने 3 दिसंबर, 1971 को भारतीय वायु सेना के ठिकानों को निशाना बनाकर हवाई हमले किए। भारत सरकार ने नागरिक और रणनीतिक स्थानों पर बमबारी की आशंका जताई थी। ऑपरेशन चंगेज खान, 3 दिसंबर, 1971 की शाम को भारतीय वायु सेना (IAF) के अग्रिम एयरबेस और रडार प्रतिष्ठानों पर पाकिस्तानी वायु सेना (PAF) द्वारा किए गए अग्रिम हमलों को दिया गया कोड नाम था।
उधर गाजियाबाद में जिला मजिस्ट्रेट दीपक मीना ने बताया कि पांच ऊंची इमारतों में बिजली भी काट दी गई है। डीएम ने कहा, “हमने निर्देश दिया है कि अभ्यास आगे भी जारी रहना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक छात्रों और अन्य स्वयंसेवकों को इनपुट मिल सके और उन्हें सुरक्षा उपायों का प्रशिक्षण मिल सके। यह विकासशील परिदृश्य के बीच प्रासंगिक है।” गाजियाबाद उत्तर प्रदेश के उन 15 नागरिक सुरक्षा जिलों में से एक है, जहां अभ्यास आयोजित किए जाने थे। हिंडन एयरबेस के पास स्थित सिविल एयरपोर्ट से उड़ानें बुधवार को एक दिन के लिए निलंबित कर दी गईं। सिविल एयरपोर्ट एयरबेस के रनवे का उपयोग करता है और 15 अलग-अलग गंतव्यों के लिए सिविल उड़ानें संचालित करता है।