‘पूर्वोत्तर अब भारत के किनारे पर नहीं है – यह भारत की विकास यात्रा का नया केंद्र है’​ : प्रधानमंत्री

पूर्वोत्तर अब भारत के किनारे पर नहीं है - यह भारत की विकास यात्रा का नया केंद्र है​ : प्रधानमंत्री

नई दिल्ली / गुवाहाटी : अगर राजनीतिक नज़रों से नहीं देखें, तो भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में विकर्षण की तुलना में आकर्षण अधिक मजबूत हुआ है। उत्तरपूर्वी राज्यों में रहने वाले, यहाँ तक कि अपने-अपने प्रदेशों से रोजी-रोटी की तलास में पलायित लोग भी आज अपने राज्यों में, अपनी मिट्टी की ओर वापस आ रहे हैं – आप माने अथवा नहीं मानें आपकी मर्जी। वजह है सरकार और प्रशासन की ओर से हर संभव आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक परिवेश बनाना। वैसे अपवाद भी हो सकता है, उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी होगा, खासकर सुदूर पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में जहाँ विकास की गति नहीं पहुंची हो।  

स्थानीय लोगों का कहना है कि ‘चिकेन-नेक’ के नाम से विख्यात इन सात-बहन राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा – के प्रवेश द्वार से ये सभी राज्य अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए विगत चार-पांच दशकों में जिन क्रांतियों का चश्मदीद गवाह रहे हैं, अपनी अस्तित्व के लिए कितनी लड़ाइयां लड़ी, गिनती से पड़े है। कुछ राजनीतिक स्वायत्तता, सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरण संबंधी था जिसके कारण प्रदेश सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और विकास के अवसरों वाली मुख्य धाराओं से मीलों दूर चली गयी थी। आज धीरे-धीरे ही सही, रोशनी की ओर बढ़ रही हैं।

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम (उल्फा) स्वतंत्र असम की वकालत करने के लिए लड़ा। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोडोलैंड अलग बोडोलैंड के लिए लड़ा। कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन कामतापुर के एक स्वायत्त राज्य की वकालत किया। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड आंदोलन के द्वारा एक बड़े नागालिम की मांग कर रहा है। गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी मेघालय की राजनीतिक स्वायत्तता की मांग कर रहा है। मिजो नेशनल फ्रंट के कारण 1986 में शांति समझौता हुआ था । नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा भी राजनीतिक स्वायत्तता की वकालत करता है। बोडो लिबरेशन टाइगर्स फ़ोर्स बोडोलैंड स्वायत्तता के लिए लड़ रहा है। यूनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सॉलिडेरिटी स्वायत्तता की वकालत करता है। हनीवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल भी मेघालय में राजनीतिक स्वायत्तता की मांग कर रहा है इत्यादि। 

इसके अलावे, पर्यावरण के दृष्टि से, गुमटी बांध विरोधी आंदोलन, दिबांग बहुउद्देशीय परियोजना विरोधी आंदोलन, लोअर सुबनसिरी जलविद्युत परियोजना विरोधी आंदोलन (असम), रैट-होल कोयला खनन विरोधी आंदोलन मेघालय में रैट-होल कोयला खनन पर प्रतिबंध लगाने की वकालत करने वाला आंदोलन, असम में मिशिंग लोगों के अधिकारों और स्वायत्तता की वकालत करने वाला मिसिंग आंदोलन, देवरी आंदोलन, नागा लोगों के अधिकारों और स्वायत्तता की वकालत करने वाला नागा आंदोलन इत्यादि। इतना ही नहीं, पूर्वोत्तर में कई महिला आंदोलन उभरे हैं, जिनमें मणिपुर में नुपी लान, मणिपुर में मीरा पैबी और एमएचआईपी के तहत मिजो महिला आंदोलन शामिल हैं। धार्मिक आंदोलन भी पीछे नहीं रहा और असम में वैष्णव आंदोलन जैसे धार्मिक आंदोलनों ने इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शैक्षणिक आंदोलन भी चला जो पूर्वोत्तर के विभिन्न हिस्सों में शिक्षा और साक्षरता में सुधार के प्रयास किए गए हैं।

इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों में जातीय संघर्ष, उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलन, अवैध कर और जबरन वसूली, और नशीली दवाओं की तस्करी से लेकर खराब परिवहन और संचार और आव्रजन मुद्दों तक की आम समस्याएं रही हैं, आज भी हैं । इन जातीय राजनीति के कारण, विकास के अवसर नहीं मिलने के कारण पलायन अपना छाप छोड़ी है। पूर्वोत्तर राज्यों में आय वृद्धि में समावेशिता का अभाव रहा है। रोजगार के अवसरों के प्रति संवेदनशील होने में विफल रहता है, जिससे श्रमिक पूर्वोत्तर से मुख्य भूमि भारतीय राज्यों में पलायन करने के लिए प्रेरित होते हैं। न केवल श्रमिक प्रवास बल्कि छात्र प्रवास भी स्पष्ट है, जो शैक्षिक प्रणाली की कमजोरी को दर्शाता है। 

इसी तरह, आर बी भगत का एक शोध जो 2020 में इंडियन सोसाइटी फॉर लेबर इकोनॉमिक्स में प्रकाशित हुआ था, के अनुसार, भारत में क्षेत्रीय और शहरी स्थान के संगठन में प्रवास एक महत्वपूर्ण कारक है। भारत में, पूर्वी और मध्य क्षेत्रों से पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में जाने वाले लोगों का प्रवास प्रमुख रहा है। दूसरी ओर, पूर्वोत्तर क्षेत्र में आने वाले लोगों की संख्या और प्रवासियों के आने से होने वाले संघर्षों के लिए जाना जाता है, लेकिन इस क्षेत्र से बाहर जाने वाले लोगों के बारे में अध्ययन की कमी है। यह अध्ययन क्षेत्र से आने वाले लोगों की संख्या और बाहर जाने वाले लोगों का अध्ययन करने का प्रयास करता है और आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रवास दोनों को कवर करता है। 

वैसे, बेहतर आजीविका की खोज में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पलायन मानव इतिहास की एक प्रमुख विशेषता है। जहाँ कुछ क्षेत्र और क्षेत्र आबादी को सहारा देने की अपनी क्षमता में पिछड़ जाते हैं, वहीं अन्य आगे बढ़ जाते हैं और लोग उभरते अवसरों का लाभ उठाने के लिए पलायन करते हैं। आधुनिक समय में पलायन एक सार्वभौमिक घटना बन गई है। परिवहन और संचार के विस्तार के कारण, यह शहरीकरण और औद्योगीकरण की विश्वव्यापी प्रक्रिया का एक हिस्सा बन गया है। पूर्वोत्तर भारत का यह क्षेत्र का प्रत्येक राज्य एक अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है। मणिपुर राज्य पूरे पूर्वोत्तर में अद्वितीय है क्योंकि राज्य में आउटफ्लो की तुलना में आउटफ्लो तीन गुना अधिक है। असम भारत के अन्य राज्यों में आंतरिक प्रवास के कारण जनसंख्या खो रहा है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय प्रवास द्वारा इसकी भरपाई की जाती है। पूर्वोत्तर के बाकी राज्य मुख्य रूप से आंतरिक प्रवास के कारण जनसंख्या प्राप्त कर रहे हैं, जबकि त्रिपुरा में आंतरिक प्रवास की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय से अधिक जनसंख्या प्राप्त हुई।

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इन तमाम बातों के मद्दे नजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल पूर्वोत्तर क्षेत्र को अवसरों की भूमि के रूप में प्रस्तुत करने,  वैश्विक और घरेलू निवेश को आकर्षित करने तथा प्रमुख हितधारकों, निवेशकों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से नई दिल्ली के भारत मंडपम में राइजिंग नॉर्थ ईस्ट इन्वेस्टर्स समिट का उद्घाटन किया।

प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के भविष्य पर गर्व, उत्साह और अपार विश्वास व्यक्त किया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि आज का कार्यक्रम पूर्वोत्तर में निवेश का उत्सव है। उन्होंने कहा कि राइजिंग नॉर्थ ईस्ट इन्वेस्टर्स समिट निवेशकों का सम्मेलन नहीं है – यह एक आंदोलन और कार्रवाई का आह्वान है।पूर्वोत्तर की प्रगति और समृद्धि के माध्यम से भारत का भविष्य नई ऊंचाइयों पर पहुंचेगा। प्रधानमंत्री ने उपस्थित कारोबारी प्रमुखों पर पूरा भरोसा जताया और उनसे विकास को गति देने के लिए एकजुट होने का आग्रह किया। उन्होंने हितधारकों से पूर्वोत्तर की क्षमता के प्रतीक अष्टलक्ष्मी को विकसित भारत के लिए मार्गदर्शक शक्ति में बदलने के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया।  मोदी ने दुनिया के सबसे विविधता पूर्ण राष्ट्र के रूप में भारत की स्थिति को रेखांकित करते हुए कहा कि पूर्वोत्तर हमारे विविधतापूर्ण राष्ट्र का सबसे विविध क्षेत्र है। उन्होंने व्यापार, परंपरा, वस्त्र और पर्यटन में व्याप्त संभावनाओं पर बल देते हुए कहा कि इस क्षेत्र की विविधता इसकी सबसे बड़ी शक्ति है। 

उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर एक संपन्न जैव-अर्थव्यवस्था, बांस उद्योग, चाय उत्पादन और पेट्रोलियम तथा खेल और कौशल के साथ-साथ इको-टूरिज्म के लिए एक उभरते हुए केंद्र का पर्याय है। यह क्षेत्र न केवल जैविक उत्पादों का मार्ग प्रशस्त कर रहा है बल्कि ऊर्जा के एक पावर हाउस के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। पूर्वोत्तर अष्टलक्ष्मी का सार है, जो समृद्धि और अवसर लाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस शक्ति के साथ, हर पूर्वोत्तर राज्य निवेश और नेतृत्व के लिए अपनी तत्परता की घोषणा कर रहा है। 

उधर, मोदी-मंत्रिमंडल के कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने कहा, “पूर्वोत्तर अब भारत के किनारे पर नहीं है – यह भारत की विकास यात्रा का नया केंद्र है।” इस क्षेत्र में आयोजित अब तक के सबसे बड़े बहु-क्षेत्रीय निवेश संवाद के रूप में शिखर सम्मेलन ने वैश्विक निवेशकों, नीति निर्माताओं, उद्यमियों और सामुदायिक नेताओं सहित उपस्थित लोगों को एक मंच प्रदान किया है।

इसी तरह, पूर्वोत्तर को खेल प्रतिभाओं का पावर हाउस बताते हुए युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने कहा कि भारत सरकार हर साल पूर्वोत्तर राज्यों में से एक में खेलो इंडिया नॉर्थ ईस्ट गेम्स की मेजबानी सहित कई पहलों के माध्यम से इस क्षेत्र में खेल के इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। लोग पूर्वोत्तर को भारत के पहले सूर्योदय के क्षेत्र के रूप में जानते थे।  उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर ‘नया भारत’ के विकास में लगातार योगदान दे रहा है।

ज्ञातव्य हो कि दो वर्ष पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में नई दिल्ली में भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रतिनिधियों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुआ था। वह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शांतिपूर्ण, समृद्ध और उग्रवाद मुक्त पूर्वोत्तर के सपने को पूरा करने और असम में स्थायी शांति, समृद्धि और सर्वांगीण विकास लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के दौरान असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा और गृह मंत्रालय और असम सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।

केंद्रीय गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में नई दिल्ली में भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रतिनिधियों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुआ था।

बहरहाल,  विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में पूर्वी भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर को इसका सबसे महत्वपूर्ण घटक बताया और कहा कि हमारे लिए, पूर्वी क्षेत्र सिर्फ एक दिशा नहीं है, बल्कि एक दृष्टि है और इसे सशक्त बनाना, इसके लिए कार्य करना, इसे मजबूत बनाना और इसमें बदलाव लाना, इस क्षेत्र के लिए नीतिगत रूपरेखा को परिभाषित करता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस दृष्टिकोण ने पूर्वी भारत, विशेष रूप से पूर्वोत्तर को भारत के विकास पथ के केंद्र में रखा है। प्रधानमंत्री ने पिछले 11 वर्षों में पूर्वोत्तर में हुए परिवर्तनकारी बदलावों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रगति केवल आंकड़ों में नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर भी दिख रही है। उन्होंने कहा कि सरकार का इस क्षेत्र के साथ जुड़ाव नीतिगत उपायों से कहीं आगे बढ़कर लोगों के साथ दिल से जुड़ाव को बढ़ावा देता है। पूर्वोत्तर में केंद्रीय मंत्रियों द्वारा की गई 700 से अधिक यात्राओं को रेखांकित किया, जो इस भूमि को समझने, लोगों की आंखों में दिखने वाली आकांक्षाओं को महसूस करने और उस विश्वास को विकास नीतियों में बदलने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 

दैनिक पूर्वोदय, गुवाहाटी​ के संपादक रविशंकर रवि

दैनिक पूर्वोदय, गुवाहाटी के संपादक रविशंकर रवि कहते हैं कि “इसमें दो राय नहीं कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पूर्वोत्तर भारत में बुनियादी सुविधाओं के विकास ने गति पकड़ी है। जिन इलाकों तक पहुंचना कभी कल्पना भर था, वहां अब सड़कें और सुरंगें बन रही हैं। यातायात सुगम हुआ है, जिससे पर्यटन को नया जीवन मिला है। पहले जो युवा रोजगार की तलाश में बाहर जाते थे, वे अब सरकारी योजनाओं की मदद से स्थानीय उद्यम शुरू कर रहे हैं।
लेकिन इस विकास के समानांतर कुछ क्षेत्रीय चिंताएं भी उभर रही हैं। विशेषकर मेघालय और मणिपुर में “पहचान के संकट” को लेकर गहरा संशय है। यही कारण है कि शिलॉंग तक रेल विस्तार जैसे कदमों का कुछ स्थानीय समूह विरोध कर रहे हैं। व्यापार और निवेश का नया केंद्र बनता पूर्वोत्तर भारत एक सुनहरा अवसर है, लेकिन स्थानीय समुदायों को यह भरोसा भी दिलाना जरूरी है कि उनकी संस्कृति, पर्यावरण, भूमि और अस्मिता की रक्षा की जाएगी। विकास की कोई भी योजना तभी टिकाऊ होगी जब वह संवाद और सहमति के साथ आगे बढ़ेगी।

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प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि बुनियादी ढांचा परियोजनाएं केवल ईंट और सीमेंट के बारे में नहीं हैं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव का एक साधन भी हैं। उन्होंने लुक ईस्ट से एक्ट ईस्ट में बदलाव की पुष्टि करते हुए कहा कि इस सक्रिय दृष्टिकोण के स्पष्ट परिणाम मिल रहे हैं। कभी पूर्वोत्तर को केवल एक सीमावर्ती क्षेत्र माना जाता था, अब यह भारत की विकास गाथा में अग्रणी के रूप में उभर रहा है। पर्यटन क्षेत्र को आकर्षक बनाने और निवेशकों के बीच विश्वास पैदा करने में मजबूत बुनियादी ढांचे की अहम भूमिका को रेखांकित करते हुए श्री मोदी ने कहा कि अच्छी तरह से विकसित सड़कें, बिजली का बुनियादी ढांचा और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क किसी भी उद्योग का आधार बनते हैं, जो निर्बाध व्यापार और आर्थिक विकास को सुविधाजनक बनाते हैं। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचा विकास की नींव है और सरकार ने पूर्वोत्तर में बुनियादी ढांचे की क्रांति का शुभारंभ किया है। उन्होंने क्षेत्र की पिछली चुनौतियों को स्वीकार करते हुए कहा कि यह अब अवसरों की भूमि के रूप में उभर रहा है। 

उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में सेला सुरंग और असम में भूपेन हजारिका पुल जैसी परियोजनाओं का उदाहरण देते हुए कनेक्टिविटी बढ़ाने में हजारों करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। मोदी ने पिछले दशक में 11,000 किलोमीटर राजमार्गों के निर्माण, व्यापक नई रेलवे लाइनों, हवाई अड्डों की संख्या में दोगुनी वृद्धि, ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों पर जलमार्गों के विकास और सैकड़ों मोबाइल टावरों की स्थापना सहित प्रमुख प्रगति का भी उल्लेख किया। उन्होंने उद्योगों के लिए एक विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 1,600 किलोमीटर लंबे पूर्वोत्तर गैस ग्रिड की स्थापना का भी उल्लेख किया। मोदी ने कहा कि राजमार्ग, रेलवे, जलमार्ग और डिजिटल कनेक्टिविटी पूर्वोत्तर के बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रहे हैं,  जिससे उद्योगों के लिए फ़र्स्ट मूवर एडवांटेज (किसी बाजार में सबसे पहले प्रवेश करने वाली कंपनी को होने वाले लाभ) को हासिल करने के लिए लाभकारी आधार तैयार हो रहा है। उन्होंने पुष्टि की कि अगले दशक में,  इस क्षेत्र की व्यापार क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। 

प्रधानमंत्री ने बताया कि आसियान के साथ भारत का व्यापार वर्तमान में लगभग 125 बिलियन डॉलर है और आने वाले वर्षों में इसके 200 बिलियन डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है, जिससे पूर्वोत्तर एक रणनीतिक व्यापार सेतु और आसियान बाजारों के लिए प्रवेश द्वार बन जाएगा। उन्होंने क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में तेज़ी लाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। थाईलैंड, वियतनाम और लाओस के साथ भारत की कनेक्टिविटी मजबूत बनाने से जुड़ी म्यांमार से थाईलैंड तक सीधी पहुंच प्रदान करने वाली महत्वपूर्ण मार्ग परियोजना, भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के महत्व पर बल देते हुए मोदी ने कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट परियोजना में तेज़ी लाने के लिए सरकार के प्रयासों का उल्लेख किया। यह कोलकाता बंदरगाह को म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह से जोड़ेगा और मिज़ोरम के माध्यम से एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि इस परियोजना से पश्चिम बंगाल और मिजोरम के बीच यात्रा की दूरी काफी कम हो जाएगी तथा व्यापार और औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। 

गुवाहाटी, इम्फाल और अगरतला में मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स हब के रूप में जारी विकास योजनाओं का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मेघालय और मिजोरम में लैंड कस्टम स्टेशनों की स्थापना से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अवसरों का और विस्तार हो रहा है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ये प्रगति पूर्वोत्तर को भारत-प्रशांत देशों के साथ व्यापार में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में स्थापित कर रही है, जिससे निवेश और आर्थिक विकास के नए मार्ग प्रशस्त हो रहे हैं। वैश्विक स्वास्थ्य और कल्याण समाधान प्रदाता बनने के भारत के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हील इन इंडिया पहल को एक विश्वव्यापी आंदोलन के रूप में विकसित किया जा रहा है। उन्होंने पूर्वोत्तर की समृद्ध जैव विविधता, प्राकृतिक पर्यावरण और जैविक जीवन शैली पर भी अपने विचार व्यक्त करते हुए इसे कल्याण के लिए एक आदर्श गंतव्य बताया। प्रधानमंत्री ने निवेशकों से भारत के हील इन इंडिया मिशन के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में पूर्वोत्तर का पता लगाने का आग्रह किया, उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि इस क्षेत्र की जलवायु और पारिस्थितिक विविधता कल्याण-संचालित उद्योगों के लिए अपार संभावनाएं प्रदान करती है। 

मोदी पूर्वोत्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख करते हुए, संगीत, नृत्य और समारोहों के साथ इसके गहरे जुड़ाव पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र वैश्विक सम्मेलनों, संगीत समारोहों और गंतव्य विवाहों के लिए एक आदर्श स्थान है, जो इसे एक संपूर्ण पर्यटन पैकेज के रूप में स्थापित करता है। जैसे-जैसे विकास पूर्वोत्तर क्षेत्र के हर कोने तक पहुंच रहा है, पर्यटन पर इसका सकारात्मक प्रभाव स्पष्ट है, आगंतुकों की संख्या दोगुनी हो रही है। ये केवल आंकड़े नहीं हैं – इस वृद्धि के कारण गांवों में होमस्टे की संख्या बढ़ी है, युवा गाइडों के लिए रोजगार के नए अवसरों का सृजन हुआ है और टूर एवं ट्रैवल इकोसिस्टम का विस्तार हुआ है। पूर्वोत्तर पर्यटन को और बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए,  प्रधानमंत्री ने इको-टूरिज्म और सांस्कृतिक पर्यटन में विशाल निवेश क्षमता का जिक्र किया। शांति और कानून व्यवस्था किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं और हमारी सरकार की आतंकवाद और उग्रवाद के प्रति शून्य-सहिष्णुता की नीति है। पूर्वोत्तर एक समय नाकाबंदी और संघर्ष से जूझ रहा था, जिसने यहां के युवाओं के अवसरों को गंभीर रूप से प्रभावित किया। 

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उन्होंने शांति समझौतों के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों को रेखांकित करते हुए कहा कि पिछले 10-11 वर्षों में 10,000 से अधिक युवाओं ने शांति को अपनाने के लिए हथियार छोड़ दिए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस बदलाव ने क्षेत्र के भीतर नए रोजगार और उद्यमशीलता के अवसरों को खोल दिया है। मोदी ने मुद्रा योजना के प्रभाव की भी जानकारी दी, जिसने पूर्वोत्तर के लाखों युवाओं को हजारों करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है। उन्होंने शिक्षा संस्थानों के उदय का भी उल्लेख किया, जो युवाओं को भविष्य के लिए कौशल विकसित करने में सहायता प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर के युवा केवल इंटरनेट उपयोगकर्ता नहीं हैं, बल्कि उभरते डिजिटल इनोवेटर भी हैं। उन्होंने कहा कि युवा उद्यमी अब क्षेत्र के भीतर प्रमुख स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं, जो भारत के डिजिटल गेटवे के रूप में पूर्वोत्तर की भूमिका को मजबूत कर रहे हैं। 

विकास को गति देने और बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने में कौशल विकास की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल देते हुए, मोदी ने कहा कि पूर्वोत्तर इस उन्नति के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करता है, जिसमें केंद्र सरकार शिक्षा और कौशल निर्माण पहलों में पर्याप्त निवेश कर रही है। जैविक खाद्य पदार्थों की बढ़ती वैश्विक मांग पर बल देते हुए कहा कि उनका सपना है कि दुनिया भर में हर खाने की मेज पर एक भारतीय खाद्य ब्रांड मौजूद हो। पिछले एक दशक में पूर्वोत्तर में जैविक खेती का दायरा दोगुना हो गया है, इस क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाली चाय, अनानास, संतरे, नींबू, हल्दी और अदरक का उत्पादन होता है। उन्होंने पुष्टि की कि इन उत्पादों के असाधारण स्वाद और बेहतर गुणवत्ता के कारण अंतरराष्ट्रीय मांग बढ़ रही है। उन्होंने भारत के जैविक खाद्य निर्यात के प्रमुख चालक के रूप में पूर्वोत्तर की क्षमता को पहचानते हुए हितधारकों को इस बढ़ते बाजार का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर दो राजनीतिक क्षेत्रों- ऊर्जा और सेमीकंडक्टर के लिए एक प्रमुख गंतव्य के रूप में उभर रहा है। उन्होंने पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में जलविद्युत और सौर ऊर्जा में सरकार के व्यापक निवेश का उल्लेख किया जिसमें कई हजार करोड़ रुपये की परियोजनाएं पहले ही स्वीकृत हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि संयंत्रों और बुनियादी ढांचे में निवेश के अवसरों से परे, सौर मॉड्यूल, सेल, भंडारण समाधान और अनुसंधान सहित विनिर्माण में महत्वपूर्ण संभावनाएं हैं। उन्होंने इन क्षेत्रों में निवेश को अधिकतम करने के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि आज अधिक आत्मनिर्भरता भविष्य में विदेशी आयात पर निर्भरता को कम करेगी। 

उधर, कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा शिक्षा राज्य मंत्री श्री जयंत चौधरी ने कहा, “पूर्वोत्तर अब भारत के किनारे पर नहीं है – यह भारत की विकास यात्रा का नया केंद्र है। पूर्वोत्तर सिर्फ एक क्षेत्र नहीं है; यह एक जीवंत शक्ति है जो भारत के भविष्य को नया आकार दे रही है। चौधरी ने कहा, “भविष्य आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस में निहित है और भारत को स्वदेशी मॉडल बनाकर और हमारे युवाओं को एआई-संचालित दुनिया के लिए तैयार करके नेतृत्व करना चाहिए। चौधरी ने कहा, “एक अन्य लाभार्थी सुश्री मेरिना लाहिड़ी ने अपने सपनों को कौशल और उद्देश्य के धागों से बुना है। वह अब 300 महिला किसानों और 15 कारीगरों की एक टीम का नेतृत्व करती हैं, जो एरी सिल्क उत्पाद का उत्पादन करती हैं जो परंपरा में निहित हैं और एक स्थायी अभ्यास है। उनका किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) अब भारत सरकार के किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के लिए कार्यक्रम द्वारा मान्यता प्राप्त है। ये सभी सफलता की कहानियां हैं जो भारत की अर्थव्यवस्था में उभरने वाली हरी जड़ों के एक बड़े प्रवाह के संकेत हैं।”

पूर्वोत्तर को खेल प्रतिभाओं का पावरहाउस बताते हुए युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने कहा कि भारत सरकार हर साल पूर्वोत्तर राज्यों में से एक में खेलो इंडिया नॉर्थईस्ट गेम्स की मेजबानी सहित कई पहलों के माध्यम से इस क्षेत्र में खेल के इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। 2030 में राष्ट्रमंडल खेलों और 2036 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की मेजबानी के लक्ष्य के साथ, खेल मंत्री ने कहा कि भारत जैसा विशाल देश पूरे साल अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए एक आदर्श स्थान है। उन्होंने कहा, “जिस तरह से पूर्वोत्तर में बदलाव हो रहा है, खेल के सामान का उद्योग और खेल इकोसिस्टम विकसित हो रहा है, वह दिन दूर नहीं जब दुनिया पूर्वोत्तर में खेलने के लिए आएगी।

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