​​बिहार: घर-घर में एक ही आवाज ✍ “हम बच्चों के खातिर 😢 चीनी छोड़ें – गुड़ अपनाएं” 😢 मम्मी-पापा, दादी-दादा 🙏 (भाग-1)

​विनोद सिंह अपने ऑक्सीजन गौशाला में

पटना / पुरानी दिल्ली : देश में अब ‘तेल बदलने का समय’ आ गया है। राजनीतिक गतिविधियों में स्थायित्व लाने के लिए भी और देश के 140 करोड़ लोगों की स्वास्थ्य के मद्दे नजर भी। अगर वर्तमान मतदाता का स्वास्थ्य स्वस्थ नहीं रहेगा तो वे मतदान के पूर्व यह निर्णय नहीं कर पाएंगे कि किसे मत देना है, किसे चुनकर प्रदेश के विधान सभा से लोक सभा तक भेजना है। उनका ग़लत निर्णय वयस्क होने वाले युवक और युवतियों को भी उचित मार्गदर्शन नहीं दे पायेगा ।

क्योंकि आज की जातिगत राजनीति में सिर्फ एक ही तेल है जो समाजवादी है और देश के प्रत्येक घरों में इसका इस्तेमाल होता है स्वाद के लिए। ऐसी स्थिति में जिह्वा का स्वाद बरकरार रखने के लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है और स्वस्थ रहने के लिए शरीर में अधिक मीठा होना अच्छी बात नहीं है। वैसे चीनी जब शरीर में गिरता है तो मनुष्य बेहोश भी हो जाता है। इसलिए शुद्ध तेल, देसी तेल और देसी गुड़ का इस्तेमाल करना आवश्यक है – आपके स्वास्थ्य के लिए भी और देश के स्वास्थ्य के लिए भी। 

पहले अपने प्रदेश बिहार से ही शुरू करते है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दशक पहले जब स्वच्छ भारत अभियान शुरू किए थे तो अपने आवास के आसपास ही दिल्ली में झाड़ू-पोछा का काम से शुरू किए थे। तीसरी बार देश का नेतृत्व देने वाले नरेंद्र मोदी जैसे ही झाड़ू उठाए, भारत के 28 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं, निकायों, शैक्षणिक संस्थानों सहित पुरुष प्रधान समाज के देश के सभी लोग झाड़ू पोछा करने लगे। सोशल मीडिया पर तस्वीर चिपकाने लगे। करोड़ों लोग उन तस्वीरों को प्रधानमंत्री कार्यालय में भी भेजने लगे।

लेकिन दुःख इस बात की है कि हमारे देश में लोगों को हर चीज बताना पड़ता है, कहना पड़ता है। अगर एक बार वे समझ गए फिर रोतो-रात पूरे देश में चर्चाएं ;’खास’ नहीं, ‘आम’ हो जाती है। आप भी इस कहानी को पढ़ें क्योंकि चीनी, तेल, गुड़ आदि के साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला है । दिल्ली के रायसीना पहाड़ी से भी देश के लोगों से प्रार्थना हो सकती है ‘चीनी की बीमारी से बचें-चीनी का सेवन बंद कर, गुड़ का सेवन करें। नकली तेल नहीं, कोल्हू का तेल इस्तेमाल करें। आप स्वस्थ रहेंगे तो देश का स्वास्थ्य बेहतरीन रहेगा।”

तेल, चीनी, गुड़ की बात यहाँ इसलिए कर रहा हूँ कि अनुमानतः हमारे, आपके, अधिकारियों के, पदाधिकारियों के, नेताओं के, मंत्रियों के, मुख्यमंत्रियों के, या सामाजिक सरोकार रखने/नहीं रखने वाले सभी लोगों के लिए ‘तेल, चीनी, गुड़ बेहद महत्वपूर्ण है।’ अनुमान है कि भारत में 212 मिलियन से ज्यादा लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, जो इसे दुनिया भर में मधुमेह रोगियों की सबसे ज्यादा वाला देश है। यह वैश्विक मधुमेह आबादी का एक चौथाई से ज्यादा है। 2022 में प्रकाशित लैंसेट अध्ययन में पाया गया कि दुनिया भर में लगभग 82.8 करोड़ (828 मिलियन) लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, जिनमें से 212 मिलियन से ज्यादा भारत में हैं। इसके अलावा, लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मधुमेह से पीड़ित लोगों का एक बड़ा हिस्सा, यानी 62%, अनुपचारित है।

भारत में, अनुमानतः 18 वर्ष से अधिक आयु के 77 मिलियन लोग मधुमेह (टाइप 2) से पीड़ित हैं और लगभग 25 मिलियन लोग प्री-डायबिटीज (निकट भविष्य में मधुमेह विकसित होने का अधिक जोखिम) से पीड़ित हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) इस भयंकर बीमारी पर शोध-दर-शोध कर रहा है। अब तक 15 राज्यों को कवर किया गया है और मधुमेह का प्रचलन बिहार में 4.3% से लेकर चंडीगढ़ में 13.6% तक है, जबकि प्री-डायबिटीज का प्रचलन मिजोरम में 5.8% से लेकर केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और त्रिपुरा राज्य में 14.6% तक है।

आईसीएमआर ने युवाओं में रोग के प्राकृतिक इतिहास, जटिलताओं और प्रबंधन अभ्यास पैटर्न को समझने के उद्देश्य से “भारत में कम उम्र में मधुमेह की शुरुआत वाले लोगों की रजिस्ट्री” भी शुरू की है। अब तक, देश भर के 8 केंद्रों से कम उम्र में मधुमेह की शुरुआत वाले 5546 लोगों के आंकड़ों से पता चला है कि 40% युवा मधुमेह के रोगी हैं। मधुमेह में वृद्धि के लिए जिम्मेदार कारक अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, शराब का हानिकारक उपयोग, अधिक वजन / मोटापा, तंबाकू का सेवन आदि हैं।

और जब जागरूकता लाने की बात होती है तो हम अपने प्रदेश बिहार की राजधानी पटना में रहने वाले सिंह-भाइयों (विनोद सिंह और मनोज सिंह) को नजरअंदाज कर ही नहीं सकते। या यूँ भी कह सकते हैं कि बिहार में शायद यह पूरा परिवार एकलौता परिवार है जो इस दिशा में जागरूकता फैला रहे हैं। पिछले 22 वर्षों से विनोद सिंह-मनोज सिंह और उनका परिवार पटना में स्टूडेंट्स ऑक्सीजन मूवमेंट और ऑक्सीजन गौशाला चला रहे हैं। अपने प्रयास को उन्होंने कभी पेटेंट नहीं कराया। इसका वजह यह है कि सिंह ब्रदर्स कहते हैं कि चूँकि उनका प्रयास सामाजिक सरोकार से जुड़ा है, पेटेंट का रथ है उनका एकाधिकार। लेकिन उनका मानना है कि यह प्रयास बिहार ही नहीं, भारत के घर-घर तक पहुंचे एक जागरूकता के तहत। उनकी पूरी कोशिश है कि लोग अधिकाधिक स्वस्थ रहें, निरोग रहे। अगर भारत के लोग स्वस्थ रहेंगे तो देश का विकास स्वतः हो जायेगा।

विनोद सिंह और ऑक्सीजन गौशाला का परिवार

स्टूडेंट्स ऑक्सीजन मूवमेंट के तहत उनका प्रयास यह है कि बिहार ही नहीं, देश के सभी बच्चों को गुणवत्ता से परिपूर्ण शिक्षा मिले। शिक्षा उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। अतः समाज के प्रत्येक नागरिकों का, उनके माता-पिताओं का, अभिभावकों का, गुरुजनों का, शासन-प्रशासन से जुड़े लोगों का यह दायित्व है कि उन बच्चों को गुणवत्ता वाली शिक्षा दे। शिक्षा के माध्यम से एक ऐसा परिवेश बनाये जो न केवल बच्चों को शिक्षित बनाये, उन्हें उनके व्यावसायिक गुणों से परिपूर्ण बनाये, बल्कि एक बेहतर इंसान भी बनाये। इसका वजह यह है कि आज समाज में ‘इंसानों’ की, ‘विवेकशील’ लोगों की किल्लत हो रही है। उनकी विवेकशीलता चाहे मनुष्य के साथ हो या पशुओं के साथ।

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विनोद सिंह कहते हैं: “बच्चे सबसे मजबूत माध्यम है हमारे प्रयास को घर-घर तक पहुँचाने का। हम बच्चों का भविष्य अगर उन्हीं के माध्यम से, उनके माता-पिता, अभिभावकों के सहयोग से बनाने में एक कदम भी आगे बढ़ पाते हैं, तो हम अपने प्रयास को सफल मानेंगे।

विगत दिनों जब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान संसद में कहे कि शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में है तथा अधिकांश विद्यालय संबंधित राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों के अधिकार क्षेत्र में हैं। उनकी बातों को सुनकर हमारे प्रयास को एक और बल मिला। निजी क्षेत्र की शैक्षणिक संस्थाओं की बात नहीं कर उन्होंने कहा कि बिहार में 9361 क्रियाशील माध्यमिक/उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं तथा सभी 8386 ग्राम पंचायतों को अब माध्यमिक/उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सुविधा से कवर किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य ने विभिन्न गुणात्मक पहल की हैं, जो प्रशासकीय व्यवस्था से जुड़ी है। हज़ारों भवन बनाए गए, शौचालय बनाए गए, पानी की व्यवस्था की गई, चारदीवारी बनाए गए खेलकूद का मैदान बनाये गए, बिजली की सुविधा उपलब्ध करायी गई और की जा रही है। 

स्वाभाविक है कि इससे प्रदेश का शैक्षिक माहौल बेहतर होगा। लेकिन हमारी कोशिश है कि सरकारी और निजी क्षेत्रों के विद्यालयों के बच्चों के माध्यम से पूरे प्रदेश में, देश में एक चीनी छोड़ने, गुड़ अपनाने का, बाज़ारीकृत तेलों को छोड़कर कोल्हू तेल अपनाने का संदेश पहुंचाएं। बच्चे अपने माता-पिता को समझाएं कि चीनी छोड़िये, क्योंकि आज देश में चीनी की बिमारी से पीड़ित माता-पिताओं की किल्लत नहीं है। आज करोड़ों माता-पिता, अभिभावक चीनी की बीमारी से, कैस्ट्रोल की बीमारी से ग्रसित हैं। बच्चे अपने सर से इन जानलेवा बीमारी के कारण अपने माता-पिता का छाया खोना नहीं चाहते। यह प्रयास मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ संवेदनशीलता और भावनात्मक भी है। अब अगर हम इस प्रयास में दस फीसदी माता-पिता / अभिभावकों को जागरूक कर पाये तो एक नागरिक के रूप में हम राष्ट्र के प्रति अपना दायित्व का निर्वाह कर लिए। 

इन 22 वर्षों में हमने जो कोशिश की उसका सकारात्मक नतीजा भी दिखता है। विगत दिनों केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अपने अधीनस्थ वाले सभी विद्यालयों में शुगर बोर्ड बनाने का निर्णय लिया है। शैक्षिक जगत में विद्यालय स्तर पर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का केंद्रीय शिक्षा बोर्ड की यह सोच सराहनीय ही नहीं, स्वागत योग्य भी है। क्योंकि अगर 22 वर्ष तक कार्य करने के बाद इस स्तर पर कोई पहल होता है तो यह पेटेंट होने पर नहीं संभव हो सकता था। हम अपने प्रयास से पटना स्थित विद्यालयों में, चाहे सरकारी क्षेत्र के हों या निजी क्षेत्र के, अपने ऑक्सीजन मूवमेंट को लेकर पहुँच रहे हैं। लाखों बच्चों को, विद्यालय के प्रधानाचार्यों को, शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को बता रहे हैं “चीनी छोड़ो-गुड़ पकड़ो।” एक आम नागरिक के रूप में हम इतना तो कर ही सकते हैं।

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क्योंकि पूरे भारत में किए गए एक बड़े पैमाने के सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, 2021 में मधुमेह से पीड़ित 43 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं की आयु 60 वर्ष से अधिक थी। विशेष रूप से, 20 से 29 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग 3.3 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने भी उस वर्ष मधुमेह होने की बात कही। यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति थी और इसका संबंध अस्वस्थ जीवनशैली से था। 2019 के अनुमानों से पता चला है कि भारत में 77 मिलियन लोगों को मधुमेह है, जिसके 2045 तक बढ़कर 134 मिलियन से ज्यादा हो जाने की उम्मीद है। इनमें से लगभग 57% लोगों का निदान नहीं हो पाया है। टाइप 2 मधुमेह, जो कि अधिकांश मामलों के लिए जिम्मेदार है, मल्टी ऑर्गन जटिलताओं को जन्म दे सकता है, जिसे मोटे तौर पर माइक्रो वैस्कुलर और माइक्रो वैस्कुलर जटिलताओं में विभाजित किया जाता है। ये जटिलताएँ मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों में समय से पहले रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण हैं, जिससे जीवन प्रत्याशा कम हो जाती है और मधुमेह की वित्तीय और अन्य लागतें भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर गहरा आर्थिक बोझ डालती हैं। 

लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद-भारत मधुमेह द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, भारत में अब 101 मिलियन मधुमेह रोगी हैं। अध्ययन में कहा गया है कि 2019 में 70 मिलियन प्रभावित लोगों की तुलना में चार वर्षों में मधुमेह के मामलों की संख्या में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसे भारत में मधुमेह और अन्य चयापचय गैर-संचारी रोगों पर किया गया सबसे बड़ा सर्वेक्षण कहा जाता है। अध्ययन में कहा गया है कि 15.3 प्रतिशत आबादी (कम से कम 136 मिलियन लोग) प्री-डायबिटिक हैं – एक व्यक्ति जिसका रक्त शर्करा स्तर सामान्य से अधिक है, लेकिन इतना अधिक नहीं है कि उसे मधुमेह माना जाए। प्री-डायबिटिक को मधुमेह विकसित होने के उच्च जोखिम वाले समूह में शामिल माना जाता है।

इतना ही नहीं, मधुमेह का जोखिम काफी हद तक जातीयता, आयु, मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता, अस्वस्थ आहार और व्यवहार संबंधी आदतों के अलावा आनुवंशिकी और पारिवारिक इतिहास से प्रभावित होता है। रक्त शर्करा रक्तचाप और रक्त लिपिड स्तरों पर अच्छा नियंत्रण मधुमेह जटिलताओं की शुरुआत को रोक सकता है और/या देरी कर सकता है। भारत में मधुमेह और इससे संबंधित जटिलताओं की रोकथाम और प्रबंधन कई मुद्दों और बाधाओं के कारण एक बड़ी चुनौती हैं। वैसी स्थिति में चीनी छोड़ो के अलावे दूसरा कोई विकल्प नहीं है। इसलिए चीनी छोड़ो-गुड़ अपनाओ।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजेश भूषण

विगत दिनों भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजेश भूषण जो भारत सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय में अतिरिक्त सचिव के रूप में पदस्थापित हैं ऑक्सीजन गौशाला में भ्रमण-सम्मेलन किये, व्यवस्था देखा, रख-रखाव देखे, पशुओं को देखे और अंत में देश के लोगों से यह निवेदन करने में नैतिक भी संकोच नहीं किए ‘आप भी जहरीली चीनी छोड़े, गुड़ खाएँ। चीनी की बीमारी या अन्य बीमारियों की जड़ ही नहीं नहीं चीनी, बल्कि आज कैन्सर जैसी भयंकर बीमारी को भी प्रोत्साहित कर रही है चीनी।”

विनोद सिंह कहते हैं कि “गाय का स्थान हमारे देश में क्या है इसे जानना हो तो रामायण के इन तीन चौपाइयों को पढ़ें जिसमें लक्ष्मण परशुराम संवाद, परशुराम भगवान राम संवाद और राजा जनक के दूत का राजा दशरथ के साथ संवाद है। ईश्वर का भरपूर आशीर्वाद है, हमारा परिवार गौ सेवा में लगा हुआ है। हानिकारक दूध घी तेल से हम सब परेशान हैं और हानिकारक खाद से हमारे सारे खेत बेहाल हैं। दोनों का इलाज देसी गौ बैलों के पास है। देसी गौ सर्वश्रेष्ठ दूध देंगी और बैल दिन भर कोल्हू में मेहनत कर सर्वश्रेष्ठ कोल्ड प्रेस्ड तेल देंगें। थोड़ा दाना भूंसा खाकर देसी गौ बैल सर्वश्रेष्ठ गोबर खाद देंगें। गोबर खाद से पर्यावरण शुद्ध होगा और बैल कोल्हू से रोजगार बढ़ेगा। इतना ही नहीं, गौ दूध घी और बैल कोल्हू कोल्ड प्रेस्ड तेल से हम सब स्वस्थ खुशहाल रहेंगे। इसलिए देसी काऊ कैंपेन और बैल कोल्हू कैंपेन से जुड़े ।जहां से भी संभव हो गौ प्रसाद दूध दही छाछ माखन घी और बैल कोल्हू कोल्ड प्रेस्ड तेल अपने घर ले आयें।”

उनका कहना है कि जब विदेशियों को पता चला कि उनके गाय का दूध हानिकारक है और भारतीय देसी गायों का दूध सर्वश्रेष्ठ है तो उन्होंने अपने दूध का पाउडर बना भारत में निर्यात करना शुरू किया।  इतना ही नहीं, अपने गायों को भारत में बेचना शुरू किया और भारत के देसी गायों का निर्यात अपने देश में करना शुरू किया। नतीजा सामने है, भारत में देसी गाएँ विलुप्त होने के कगार पर आ गयीं। विश्व विख्यात सोनपुर पशु मेले में बिकने इस वर्ष एक भी देसी गाय नहीं आयी थी। इसलिए देसी गाय का दूध अपने घर लाना शुरू कीजिए, आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा और हमारी देसी गायें विलुप्त होने से बच जाएगी। गौशाला के पचपन बीघे में खेती के लिए गौशाला के बैलों का उपयोग होता है। गौशाला के सारे बछड़े यहीं रहते है, कसाई खाने कटने नहीं जाते। गौशाला के खेतों में खाद स्वरूप गायों के गोबर गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है। गौशाला के क़रीब दो सौ सदस्य पटना तथा देश के अन्य शहरों में है जिन्हें गौशाला से दूध घी भेजा जाता है।

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बिहार भाजपा के संगठन महामंत्री नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी भी ऑक्सीजन गौशाला का भ्रमण-सम्मेलन किये थे। उनके अनुसार, गायें हमारी भारतीय संस्कृति की अभिन्न अंग हैं। पूर्व के ग़लत नीतियों के कारण देश में विलुप्त हो रही देसी गायों को बचाना हमारा कर्तव्य बनता है। देसी गायों का दूध दही छाछ घी अमृत समान है। मेरा अनुरोध है कि लोग देशी गायों को पालें, उनका दूध दही घी का सेवन कर स्वस्थ रहें। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि भारत के खेतों में पहले सिर्फ़ गोबर का खाद दिया जाता था जिससे धरती से पौष्टिक अन्न हमें मिला करता था। रासायनिक खादों के कारण हमारी धरती बंजर होती जा रही हैं और हानिकारक अन्न पैदा हो रहे हैं। मुझे खुशी है मैं ऑक्सीजन गौशाला से जुड़ा हूँ और मुझे यहाँ से अमृत समान दूध प्राप्त होता है।

बहरहाल, बिहार उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है, जिसका क्षेत्रफल और गन्ना उत्पादन क्रमशः लगभग 2.52 लाख हेक्टेयर और 126.00 + लाख टन, लेकिन गन्ना क्षेत्र में इसका हिस्सा केवल 4.90 प्रतिशत और उत्पादन में 4.31 प्रतिशत है। प्रदेश में वर्तमान में 11 चीनी मिलें काम कर रही है जबकि 17 मिलें बंद हैं। आज़ादी के बाद बिहजार में 35 चीनी मिलें थी।

उधर, प्रदेश में गन्ने की खेती को नये सिरे से पुनर्जीवित करने गन्ना उद्योग विभाग बड़े कदम उठा रहा है। वित्तीय वर्ष 2025-2026 में 124 नयी गुड़ यूनिट लगाने का लक्ष्य तय किया है। गुड़ बनाने वाली यूनिट को बड़ी संख्या में आकर्षित करने गन्ने की खेती को विस्तार देने की रणनीति बनायी गयी है। करीब तीन लाख हैक्टेयर तक गन्ना खेती करने का लक्ष्य है। कुछ समय पहले संभावनाशील गन्ना उत्पादक क्षेत्र चिह्नित किये गये थे। यहां नयी चीनी मिलें और बड़ी गुड़ यूनिट लगाने की समुचित संभावना है। गन्ना उद्योग विभाग ने ट्रिब्यूनल ने किसानों के बकाया 43 करोड़ बकाये की मांग की है। 

वैसे, नीतीश कुमार के मंत्रालय में पदस्थापित एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि “नीतीश कुमार के कालखंड में अगर किसी भी क्षेत्र में आम नागरिक का कार्य जमीनी सतह पर दिखा है, अथवा दिख रहा है तो वह है ‘ऑक्सीजन गौशाला’, जहाँ प्रदेश के ही नहीं, बल्कि केंद्र के बड़े-बड़े राजनेता और अधिकारी भ्रमण किये हैं। कइयों ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उसके विषय में सरकारी विभागों को भी अवगत कराये हैं। बिहार में गुड़ के महत्व के मद्देनजर राज्य में गुड़ का उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा ही। कई कदम भी उठाए गए हैं।  अभी तक 81 गुड़ उत्पादन इकाइयों को स्थापित करने के लिए लगभग 1240 लाख रुपये मोल के बराबर विस्तृत योजना भी बनाई गयी है। वर्तमान में 2.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती की जाती है। पिछले 22 वर्षों से ऑक्सीजन मूवमेंट के कन्वेनर के रूप में अनेक कैंपेन का नेतृत्व किया हूँ।अनेक कैंपेन चलाये हैं – मसलन ‘नो हॉर्न कैंपेन’, ‘क्रिएटिविटी स्कॉलरशिप’, ‘वन्स अ वीक खड़ी मूवमेंट’, ‘क्विट शुगर कैम्पेन’, ‘सेव देसी काऊ कैम्पेन’, ‘बैल कोल्हू कैम्पेन’ मुख्य हैं। अभी तेल बदलिए देश बदलेगा कैंपेन को काफ़ी प्राथमिकता दे रहा हूँ। 

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