मंत्री जी सुन रहे हैं🦻’राम’ के लिए ‘अयोध्या’ में मंदिर, लेकिन ‘सीता’ के जन्मस्थान सीतामढ़ी के लोगों के लिए एक ट्रेन भी नहीं 😢

सीतामढ़ी के सांसद सुनील कुमार पिंटू केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव

नई दिल्ली: धार्मिक दृष्टि से भारत में ‘सीतामढ़ी’ का जो भी महत्व हो, देश की राजनीतिक गलियारे में इस ऐतिहासिक स्थल का राजनेता जिस कदर ‘इस्तेमाल’ करते हों अपनी-अपनी राजनीतिक सिद्धि के लिए; लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज़ादी के 76-साल बाद भी कोई 4,380,000+ आवादी वाले जिले को, जहाँ शिक्षा का प्रकाश ‘आधी आवादी’ तक भी नहीं पहुंची, रोजी-रोजगार की तो बात ही नहीं करें, इस जिले को जो हक़ मिलना चाहिए थे, नहीं मिला। कहते हैं – कुछ लोहे में दोष तो कुछ लोहार में।

अगर ऐसा नहीं होता तो 60:42 का अनुपात पुरुष और महिला शिक्षा में रखने वाले इस जिले से रोजी रोटी की तलाश में यहाँ के लोगों को, मतदाताओं को, सीतामढ़ी की सीमा लांघकर कोई 34+ घंटे की सफर तय कर 1858 किलोमीटर की दूरी तय नहीं करना पड़ता। इससे प्रदेश के मुख्यमंत्री सम्मानित नीतीश कुमार को क्या या फिर इस संसदीय क्षेत्र से अब तक लोकसभा और प्रदेश के विधानसभा तक जाने वाले, कुर्सियों को तोड़ने वाले नेताओं को क्या फर्क पड़ता है ?

कहते हैं सीतामढ़ी में ही राजा जनक की पुत्री और भगवान् राम की पत्नी सीता का जन्म हुआ था। यह भी कहा जाता है कि सीतामढ़ी के पुनौरा नामक स्थान पर जब राजा जनक ने खेत में हल जोत रहे थे, तो उस समय धरती से सीता का जन्म हुआ था। सीता जी के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा। प्राचीन काल में सीतामढ़ी तिरहुत का अंग रहा है। इस क्षेत्र में मुस्लिम शासन आरंभ होने तक मिथिला के शासकों यहाँ शासन किया। 1908 ईस्वी में तिरहुत मुजफ्फरपुर का हिस्सा रहा। स्वतंत्रता पश्चात 11 दिसंबर 1972 को सीतामढ़ी को स्वतंत्र जिला का दर्जा मिला, जिसका मुख्यालय सीतामढ़ी को बनाया गया।

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बहरहाल, सीतामढ़ी के सांसद सुनील कुमार पिंटू केन्द्रीय रेल मंत्री को एक पत्र लिखे हैं । वे मुंबई में रहने वाले मिथिला से प्रवासित, श्रमिक, मजदूर, शिक्षित, अशिक्षित सभी तबके के लोगों से मिले। वैसे मुंबई में जब भी कोई केन्द्रीय मंत्रिमंडल के मंत्री आते हैं, मुंबई में रखने वाले लोग अपने गाँव, प्रदेश की त्रादसी के निवारण हेतु मिलते जरूर हैं। पिछले दिनों बिहार के मिथिला धाम के अनेकों संस्थाएं अपने सांसद के साथ साथ केन्द्रीय  रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव से मिले और याचना पत्र भी दिया। मंत्री महोदय उसे मुस्कुराते ‘स्वीकार’ भी किये, लेकिन सवाल यह है कि क्या मंत्री महोदय इस समस्या का निवारण करने में सफल हो पाएंगे ?

सीतामढ़ी के सांसद सुनील कुमार पिंटू के साथ मुंबई के मिथिला संगठन के नेता राजेश झा

पत्र में लिखा है: “महोदय, जैसा की हम सब जानते हैं मिथिला-बिहार के लोग रोजगार ढूंढने हेतु अपने राज्य से बाहर जाते हैं। मुंबई में ज्यादातर लोग कार्य करते हैं। मिथिलांचल के लोगों को अपने घर आने-जाने के लिए मात्र एक ट्रेन पवन एक्सप्रेस हैं जो दरभंगा से लोकमान्य तिलक के बीच चलती है। जहाँ एक तरफ आप देश में वन्दे भारत सुपरफास्ट जैसी ट्रेन चला रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ हम मिथिला वासी को मुंबई से अपने घर आने जाने के लिए ऐसी कोई सुविधा नहीं है।”

पत्र में त्रादसी की स्थिति देखिये। पत्र में लिखा है: “इस रूट पर यात्री ज्यादा होने के कारण पवन एक्सप्रेस ट्रेन में साल के 365 दिन सीट पूरा बुक रहता है और पर्व त्यौहार में तो इस ट्रेन में टिकट मिलता ही नहीं। यात्रियों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ रही है और ट्रेन सभी यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुँचाने में असफल हो रही है। महाशय, मुंबई से दरभंगा के लिए पवन एक्सप्रेस को ‘सुपरफास्ट’ करने की आवश्यकता है, साथ ही, मुंबई से रक्सौल. विजय दरभंगा-सीतामढ़ी होते हुए नई ट्रेनों की शुरुआत आवश्यक है जिससे बिहार के सभी लोगों को आने-जाने में सहूलियत हो सके। हम तो निवेदन ही कर सकते हैं, निर्देश तो आपका ही होगा।”

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अब सवाल यह है कि अगले वर्ष चुनाव होने वाला है। केंद्र का बिहार के नेताओं से 36 का आंकड़ा है। चुनाव से पूर्व रेल बजट और आम बजट दोनों है। अगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल के रेलमंत्री वैष्णव जी की बातें सुन भी लेते हैं तो रेल बजट में ऐलान तो हो जायेगा – परन्तु अनुवादित होगा अथवा नहीं, यह कई करोड़ का प्रश्न है। क्योंकि विगत 76 वर्षों में बिहार में रेल-परिचालन व्यवस्था दुरुस्त हो, लोगों को सुख-सुविधा मिले, सैकड़ों योजनाएं, परियोजनाएं लागू हुए। कई शुरू होने से पहले मृत्यु को प्राप्त किये, कई शुरू होते ही दम तोड़ दिए।  

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