#भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (16) ✍ ‘वास्तु’ – ‘भाजपा’ और ‘भाग्योदय’, 11-अशोक रोड ‘वीरान’ हो गया 😢

#वास्तु ने भाजपा का भाग्योदय कर दिया, 11-अशोक रोड #वीरान हो गया ✍ आज अशोक रोड के 11 नंबर बंगला गया था। कभी जीवंत रहने वाला यह बंगला आज बिल्कुल शांत दिखा। बिलकुल वीरान। मुख्य प्रवेश द्वारा पर सुरक्षाकर्मी थे। उसके बाएं हाथ लकड़ी का एक और दरवाजा दिखा, जो एक कक्ष में खुल रहा था। सुरक्षाकर्मी महोदय उस दरवाजे की ओर इशारा किये और मैं अपनी पहचान बताते प्रवेश लिया। सामने ‘ट्रिंग-ट्रिंग’ करने वाला यंत्र लगा था जिसके रास्ते अंदर आना बाध्यकारी होता है।

कभी यह भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय कार्यालय हुआ करता था। कभी जीवंत होता था यह बंगला। आज मुश्किल से चार-पांच गाड़ियां इस बंगले के सामने बायीं ओर खड़ी दिखाई दी। कोई बैनर नहीं, कोई झंडा-पताखा नहीं। भाजपा के किसी भी नेता की कहीं कोई तस्वीर नहीं। कहीं भी जिन्दावाद-जिन्दावाद लिखा नहीं दिखाई दिया। लगभग 99 फीसदी नामोनिशान नहीं था। खैर। आज के लोगबाग़ नहीं समझेंगे आखिर ऐसा क्या हुआ कि 11 अशोक रोड तिरस्कृत हो गया, वीरान हो गया।

आज की इस विरानीयत की बुनियाद सन 1996 में पड़ गई थी मन-ही-मन, जब 13 दिन प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठने के बाद, राष्ट्र का नेतृत्व करने के बाद भारतीय जनता पार्टी के स्तम्भ सम्मानित अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री कार्यालय से बाहर आना पड़ा, भारी मन से। उस ऐतिहासिक, परन्तु, भारतीय राजनीतिक पटल के उस काला दिवस के कुछ ही दिनों के बाद भारत के बड़े-बड़े वास्तुशास्त्र विशेषज्ञ, ज्ञानी, महात्मा, अंक, दिशा के ज्ञाता इस 11 अशोक रोड बंगला, बंगला की स्थिति की जांच-पड़ताल हुयी थी। कुछ परिस्थितियां भयंकर बाधक थी जो भाजपा के तत्कालीन समय और भविष्य के लिए अपसकुन था, प्रतिकूल था ।

ये भी पढ़े   'एयर इंडिया' समूह के अलावे 'इंडिगो' और 'आकाशा' के बेड़े में अगले आठ वर्षों में 1976 विमान शामिल होंगे

उन तमाम विशेषज्ञों की एक बैठक हुई थी। पूरी रात, तक़रीबन छः घंटा का मनन-चिंतन किया गया था। उस बैठक में उपस्थित सभी महात्मनों के मुख से निकलने वाले शब्दों को भाजपा के, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी सज्जन एकांत-चित होकर सुन रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे उन महात्मनों, विद्वानों, ज्ञानियों, विशेषज्ञों के जिह्वा पर माँ सरस्वती विराजमान हों। फिर यह निर्णय लिया गया कि संसद की दिशा से जब हम अपने बाएं हाथ कार्यालय परिसर में प्रवेश लेते हैं, प्रवेश के साथ ही विशालकाय नीम का वह वृक्ष सामने खड़ा दीखता है। कोई भी आगंतुक उस वृक्ष को नजर अंदाज नहीं कर सकता, चाहे पार्टी के नेता हों या पार्टी के कार्यकर्त्ता अथवा देश के मतदाता, जो भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान और भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात थी।

सभी विशेषज्ञों का एक मत हुआ – या तो प्रवेश द्वार बदला जाय अथवा उस नीम के वृक्ष का ‘कतरन’ किया जाए। श्री वाजपेयी जी ‘सजीव’ थे जीवन पर्यन्त और जीवों की पीड़ा जानते थे, महसूस किये थे। स्वाभाविक है वे वृक्ष के कतरन के विरुद्ध थे। हां, द्वार अलग किया जा सकता है, स्वीकार्य था उन्हें। वास्तु-विशेषज्ञों, विद्वानों, महात्मनों का यह फैसला हुआ कि इस अवरोध के बाद भारतीय जनता पार्टी का स्थान देश के मतदाताओं के हृदय में अनमोल होगा, लिख लीजिये ।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में बनी और बिगड़ी वह 13 दिन की सरकार भाजपा के भविष्य का केंद्रबिंदु बन गया। 16 मई, 1996 से 1 जून, 1996 तक की सरकार और उनकी सरकार के विरोधी में, पार्टी के विरोध में जन्म ले रही अन्य पार्टियों की विचारधाराएं वाजपेयी जी के ह्रदय को छल्ली कर दिया था। फिर सरकार बनी और 19 मार्च, 1998 से 13 अक्टूबर, 1999 तक श्री वाजपेयी जी प्रधानमंत्री कार्यालय में विराजमान हुए। बहरहाल, 11 अशोक रोड का वह मनहूस, वास्तु-विरोधी प्रवेश द्वार टूटना प्रारम्भ हो गया था और एक दूसरा रास्ता कोई 20 कदम दूर आगे सुरक्षित कर दिया गया था ।

ये भी पढ़े   Only Shashtriji and Scindia took the responsibilities of trains disasters in 73 years, more than 260 major accidents took place since 1950, killing several thousands passengers

मैं सन 1996 में उस दिन अपने एक मित्र सुश्री अदिति कौल (अब दिवंगत – इसे श्रद्धांजलि समझा जाए) के साथ 11-अशोक रोड श्री गोविंद आचार्य जी से मिलने आया था। कहानी की तलाश कर रहा था। दोपहर के एक बज रहे थे। गोविन्द जी हम दोनों को देखकर खुश हो गए। खाना नहीं बना था। फिर खिचड़ी-चोखा बना और बात-बात में बात निकल गई विगत रात की बैठक की, मंथन की, निर्णय की, भाजपा की वर्तमान मांगलिक-दशा की और वास्तु-दोष निवारण हेतु देश के महात्मनों द्वारा सुझाये उपायों की।

मैं उस समय इण्डियन एक्सप्रेस का एक छोटा सा रिपोर्टर था। कोई पांच सौ शब्दों की कहानी लिखा गया जिसे प्रथम पृष्ठ पर प्राथमिकता के साथ प्रकाशित किया गया । अगली सुबह दिल्ली सल्तनत के पत्रकार मित्र-मित्राणी मेरी कहानी का मज़ाक उड़ाए। वे कटाक्ष में हंस रहे थे और मैं यथार्थ में स्वीकार कर रहा था। कुछ दिन बाद 11-अशोक रोड का वह द्वार बंद हो गया। नीम के पेड़ का जीवन बच गया।

इधर यह सब हो रहा था उधर समय बदल रहा था। ‘वास्तु’ अपना करवट ले रहा था। भाजपा की भाग्य रेखाएं बदल रही थी। ‘कुंडली’ के घरों में बैठे तत्कालीन नेताओं का स्थान परिवर्तित हो रहा था। कहीं आकर्षण हो रहा था तो कहीं विकर्षण । 13 अक्टूबर, 1999 से 22 मई, 2004 तक श्री वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किये। लेकिन देश में एक नए राजनेता का अभ्युदय अब तक हो गया था। समय और वास्तु अपने-अपने तरह से उसे संरक्षित, सम्पोषित कर रहा था। दस वर्ष बाद ‘वास्तु’ और भाजपा की कुंडली में बैठे सभी नेताओं (अपवाद छोड़कर) के घरों में बेतहाशा परिवर्तन हुआ। एक आंधी चली। कई उस तूफ़ान में दूर अदृश्य हो गए। वास्तु-मंथन के बाद कई नए चेहरे अवतरित हुए।

ये भी पढ़े   आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू 👁 कल के श्री वाजपेयी जी के चहेते आज पटना में 'फीता काटने में विशेषज्ञता प्राप्त कर रहे हैं 😢 हाय रे राजनीति

आज जब 11 अशोक रोड पर तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय के बाहर उसी प्रवेश द्वार (अब नामोनिशान समाप्त) के सामने फुटपाथ पर बैठकर उस तारीख को सोच रहा था तो उन महात्मनों के प्रति विश्वास, समय के प्रति आस्था और भी मजबूत हो रहा है। दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर गगनचुम्बी भाजपा का राष्ट्रीय कार्यालय, कल के 11-अशोक रोड पर वास्तु के प्रभाव के कारण ही है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here