नन्दन नीलेकणी का “आधार” “निराधार” नहीं हुआ, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संवैधानिक वैध्यता

सर्वोच्च न्यायालय
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नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ​द्वारा “आधार​”​ को संवैधानिक रूप से वैध करार ​करने के साथ ही, आधार “निराधार” नहीं हुआ और 28 जनबरी, 2009 में इन्फोसिस के सह-संस्थापक नन्दन नीलेकणी द्वारा प्रारम्भ किये गए केन्द्र की महत्वाकांक्षी योजना भी अपने “अस्तित्व” पर “दाग़” नहीं लगने दिया।

यह अलग बात है कि विगत वर्षों में “आधार” को कई न्यायालयों का चक्कर लगाना पड़ा और सबों ने आधार की गँगा में हाथ भी धोये, मैले भी किये और आज स्वयं जीत का सेहरा भी बाँध रहे हैं। चाहे कोई भी आधार के तले अपना आधार मजबूत करे, सच तो यही रहेगा की नीलेकणी ने ही 2010 में आधार का लोगो देश को समर्पित किये थे। देश में अब 122 करोड़ लोगों के पास आधार संख्या है

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि आधार का लक्ष्य कल्याणकारी योजनाओं को समाज के वंचित तबके तक पहुंचाना है और वह ना सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि समुदाय के दृष्टिकोण से भी लोगों के सम्मान का ख्याल रखती है।​ शीर्ष अदालत ने कहा कि आधार जनहित में बड़ा काम कर रहा है और आधार का मतलब है अनोखा और सर्वश्रेष्ठ होने के मुकाबले अनोखा होना बेहतर है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हिंदी शब्द ‘आधार’ का उपयोग अब इसके शब्दकोश वाले अर्थ के लिए ही नहीं किया जाता बल्कि सभी लोग इसे व्यक्ति की पहचान वाले उस पत्र से पहले जोड़ कर देखते हैं जो एक तरह से डिजिटल अर्थव्यवस्था का प्रतीक बन गया है।​ आधार हर घर में पहचान बन गया है और ‘जंगल की आग’ की तरह यह प्रसारित हुआ है।​ न्यायालय ने कहा, ‘‘सर्वश्रेष्ठ होने से अच्छा अनूठा होना है क्योंकि सर्वश्रेष्ठ होने से आप पहले नंबर पर आ जाते हैं लेकिन अनूठे होने से आप इकलौते हो जाते हैं।’’

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इधर, भारत विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने आधार को संवैधानिक रूप से वैध बताने के उच्चतम न्यायालय के फैसले को अपनी जीत बताया है। यूआईडीएआई के मुख्य कार्यकारी अजय भूषण ​पांडे के अनुसार: ‘‘ यह फैसला 4-1 से आधार के पक्ष में है। न्यायालय ने आधार को संवैधानिक दृष्टि से वैध ठहराया है। यह गरीबों और हाशिये पर रह रहे वर्ग को सशक्त करता है। आधार का इस्तेमाल सब्सिडी और सरकारी योजनाओं में होगा जिससे सरकारी कोष का दुरुपयोग नहीं हो सकेगा। इसका इस्तेमाल आयकर के लिए होगा और कर चोरी तथा कालेधन पर अंकुश लगेगा।’’

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि ‘आधार’ को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ‘विशिष्ट पहचान’ कहता है। प्राधिकरण दावा करता है कि यह न केवल किसी व्यक्ति की पहचान का पुख्ता तरीका है बल्कि एक ऐसा उपकरण है जहां कोई व्यक्ति अन्य किसी दस्तावेज के बिना कोई लेनदेन कर सकता है।

नन्दन नीलेकणी
नन्दन नीलेकणी

पीठ ने कहा, ‘‘आधार पिछले कुछ साल में न केवल भारत में बल्कि अन्य कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सबसे अधिक चर्चा वाला शब्द बन गया है। हिंदी शब्दकोश में मौजूद इस शब्द का महत्व दोयम हो गया है। आज कोई ‘आधार’ शब्द बोलेगा तो उसका अर्थ सुनने वाला इसके शब्दकोश में अंकित अर्थ से नहीं लगाता।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसके बजाय ‘आधार’ शब्द का उल्लेख करने से ही कोई व्यक्ति उस कार्ड के बारे में सोचेगा जो किसी को पहचान के लिए दिया जाता है।’’

संविधान पीठ ने आधार योजना संबंधी कानून और इसे वित्त विधेयक के रूप में पारित कराने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इस मामले में तीन अलग अलग फैसले सुनाये गये।​ पहला निर्णय संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति ए के सीकरी ने न्यायमूर्ति सीकरी ने प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और अपनी ओर से फैसला पढ़ा।​ न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि जितनी जल्दी संभव हो आंकड़ों/सूचनाओं की सुरक्षा के लिए मजबूत रक्षा प्रणाली विकसित की जाए।

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उन्होंने कहा कि आधार के खिलाफ याचिकाकर्ताओं के आरोप संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन पर आधारित हैं, जिनके कारण राष्ट्र शासकीय निगरानी वाले राज्य में बदल जायेगा।​ न्यायालय ने कहा कि आधार के लिए यूआईडीएआई ने न्यूनतम जनांकीकीय और बायोमिट्रिक आंकड़े एकत्र किये हैं। साथ ही आधार योजना के सत्यापन के लिए पर्याप्त रक्षा प्रणाली है।​ पीठ ने कहा कि आधार समाज के वंचित तबके को सशक्त बनाता है और उन्हें पहचान देता है।

पीठ ने निजी कंपनियों को आधार के आंकड़े एकत्र करने की अनुमति देने वाले आधार कानून के प्रावधान 57 को रद्द कर दिया है।​ न्यायालय ने कहा कि सीबीएसई, नीट, यूजीसी आधार को अनिवार्य नहीं कर सकते हैं और स्कूलों में दाखिले के लिए भी यह अनिवार्य नहीं है।​ पीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि वह अवैध आव्रजकों को आधार नंबर नहीं दे।

न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा, किसी भी बच्चे को आधार नंबर नहीं होने के कारण लाभ/सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है।​ न्यायालय ने लोकसभा में आधार विधेयक को धन वियेयक के रूप में पारित करने को बरकरार रखा और कहा कि आधार कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करता हो।

इस निर्णय के अनुसार आधार कार्ड/नंबर को बैंक खाते से लिंक/जोड़ना अनिवार्य नहीं है। इसी तरह टेलीकॉम सेवा प्रदाता उपभोक्ताओं को अपने फोन से आधार नंबर को लिंक कराने के लिये नहीं कह सकते।​ पीठ ने कहा कि आयकर रिटर्न भरने और पैन कार्ड बनवाने के लिए आधार अनिवार्य है।​ संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति धनन्जय चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण भी शामिल थे और इस दोनों न्यायाधीशों ने अपने फैसले अलग-अलग लिखे हैं​ (भाषा के सहयोग से)​

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