सहरसा / पटना / नई दिल्ली : हिन्दू धर्म के अठारह प्रमुख पुराणों में ‘वायु पुराण’ में एक श्लोक है “मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना – कुंडे कुंडे नवं पयः - जातौ जातौ नवाचाराः - नवा वाणी मुखे मुखे” अर्थात जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं। एक ही गाँव के अंदर अलग-अलग कुऐं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है। एक ही संस्कार के लिए अलग-अलग जातियों में अलग-अलग रिवाज होता है तथा एक ही घटना का बयान हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से करता है। वायु पुराण का यह श्लोक मिथिला-भारत, मिथिला-बिहार, कोसी-मिथिला’ में अक्षरशः लागू होता है। चाय की दूकान से लेकर शाश्त्रार्थ हेतु बने कक्ष तक भ्रमण-सम्मेलन करके देख लीजिये – लाखों नहीं, करोड़ों लोग मिलेंगे जो मैथिली भाषा भाषी होने के बावजूद, वैचारिक मतभेद के कारण अलग- विचारधाराओं में बह रहे हैं। लेकिन ईस्ट एंड वेस्ट 88.4 एफएम रेडियो शीघ्र ही मिथिला-मैथिल और मैथिली को ‘मेरा नहीं’, अपितु ‘हमारा व्यवहार’ है, में तब्दील करने जा रहा है।
इस बात का यहाँ इसलिए जिक्र कर रहा हूँ कि सम्पूर्ण भारत के साथ-साथ विश्व के कोने-कोने में रहने वाले मैथिली भाषा-भाषी लोगों की संख्या कितनी है, यह आज़ादी के 78 वर्ष बाद भी ‘स्पष्ट’ नहीं है, प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले राजनीतिक लाभ के लिए जातिगत जनगणना एक बार नहीं, सौ बार करा लें। लेकिन आखिर कहीं न कहीं, किसी न किसी आंकड़े को मानकर चलना पड़ेगा। एक आंकड़े के अनुसार भारत में लगभग सात करोड़ लोग हैं जो मैथिली भाषा भाषी हैं। इसमें विद्वान से लेकर विदुषी तक सभी की गणना है, चाहे वे इस पृथ्वी पर कहीं भी रहते हों।
अब, जब भारत सरकार द्वारा मैथिली भाषा को उच्चतम स्थान प्रदान करने के लिए भारत के संविधान को मैथिली में अनुवाद करने की बात आयी और इन सात करोड़ मैथिली भाषा भाषी लोगों, विद्वानों, विदुषियों, शास्त्रार्थ कर्ताओं में से भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा की संबंध इकाई ईस्ट एंड वेस्ट टीचर्स ट्रेंनिंग कॉलेज, पटुवाहा, सहरसा में भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के राष्ट्रीय अनुवाद मिशन द्वारा भारतीय संविधान का मैथिली अनुवाद हेतु दस दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया और फिर भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के अधिकारी डॉ तारीख खान द्वारा ईस्ट एंड वेस्ट टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, सहरसा के अध्यक्ष डॉ रजनीश रंजन को समन्वयक चुना गया – यह सम्मान उन सात करोड़ मैथिली भाषा भाषी लोगों से अलग तो अवश्य कर देता हैं डॉ. रजनीश रंजन-श्रीमती मनीषा रंजन को। आप माने या नहीं माने, बतकुच्चन करें या राजनीति करें, सच तो यही है।

कहते हैं कि मैथिली का मानक रूप सोतीपुरा है जिसे मध्य मैथिली भी कहा जाता है। मुख्य रूप से दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, समस्तीपुर, अररिया और सहरसा जिलों में बोली जाती है। नेपाल में यह धनुषा, महोत्तरी, सिराहा, सप्तरी, सरलाही और सुनसारी और मोरंग जिलों में बोली जाती है। बज्जिका बोली जिसे पश्चिमी मैथिली के नाम से भी जाना जाता है, मुख्य रूप से सीतामढी, मुजफ्फरपुर, वैशाली और शिवहर जिलों और नेपाल के रौतहट और सरलाही जिलों में बोली जाती है। थोथी बोली मुख्य रूप से कोसी, पूर्णिया, मुंगेर, मोकामा और नेपाल के कुछ निकटवर्ती जिलों में बोली जाती है। जबकि अंगिका बोली मुख्य रूप से भागलपुर, बांका, मुंगेर, झारखंड के गोड्डा, साहेबगंज, दुमका जिलों में और उसके आसपास बोली जाती है।
आइये चलते हैं सहरसा के पटुवाहा गाँव स्थित ईस्ट एंड वेस्ट टीचर्स ट्रेंनिंग कॉलेज जहाँ विगत दिनों कोसी-मिथिला क्षेत्र के इतिहास में शायद पहली बार प्रदेश का कोई राज्यपाल का भ्रमण-सम्मेलन हुआ था – एक सकारात्मक पहल को मूर्त रूप देने।
साठ के दशक के उत्तरार्ध कोसी-मिथिला क्षेत्र में जो जन्म लिए, शायद वे अपने जिला में अब तक किसी लाट साहब के आगमन का चश्मदीद गवाह नहीं हुए होंगे। उस कालखंड के पूर्वार्ध जन्म लिए लोगों को शायद याद होगा कि प्रदेश के पांचवें राज्यपाल महामहिम की मदभूषि अनंतशयनं अयंगार, जो आजादी के बाद प्रदेश के पांचवें राज्यपाल थे ((12 मई, 1962 से 06 दिसंबर, 1967) सहरसा जिले के बनगाँव-महिषी स्थित उग्रतारा स्थान व मंडन धाम पर पधारे थे। आज भी महिषी गांव में एक पौराणिक सड़क का नाम राजपाल रोड के नाम से जाना जाता है।
महामहिम अयंगार के बाद राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान प्रदेश के 42 वें महामहिम हैं जो कोसी-मिथिला क्षेत्र के पटुवाहा गाँव पधारे थे। यानी स्वाधीनता के बाद बिहार में अब तक 42 राज्यपाल बने, लेकिन दो को छोड़कर किसी ने भी गंगा-कोसी नदियों की धाराओं को नहीं लांघे। इस दृष्टि से आप स्वयं इस क्षेत्र की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक गरिमा के प्रति प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में बैठे लोगों की मानसिकता को आंक सकते हैं – क्योंकि कोसी-मिथिला क्षेत्र का यह इलाका सरस्वती का मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
सहरसा जिले की स्थापना 1 अप्रैल, 1954 को हुआ और इन 71 वर्षों में सहरसा में कितना विकास हुआ सरकारी स्तर पर, यह सहरसा के मतदाता तो जानते ही हैं, अधिकारी, पदाधिकारी, विधायक, सांसद और सरकार के नुमाइंदे भी अवगत है। समस्या चाहे शिक्षा की हो, स्वास्थ्य की हो, सड़क की हो, रोजगार की हो, विकास की हो, संस्कृति की हो, भाषा की हो, गरिमा की हो, सोच की हो।

लेकिन पटुवाहा स्थित ईस्ट एंड वेस्ट टीचर्स ट्रेंनिंग कॉलेज और उसके संस्थापक डॉ. रजनीश रंजन-श्रीमती मनीषा रंजन का मैथिली भाषा के उन्नयन में कितना योगदान रहा, यह तो मैथिली में अनुवादित भारत का संविधान कई दशकों तक गवाही देता रहेगा। इतना ही नहीं, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा ईस्ट एण्ड वेस्ट 88.4 एफएम रेडियो, जिसका वह विधिवत प्रसारण हेतु उद्घाटन भी किया, की आवाज ‘ट्रांसमिशन और एप्लिकेशन’ के माध्यम से विश्व के कोने कोने तक पहुंचेगा ताकि मैथिली भाषा भाषी लोगों को अपनी जमीन, अपनी संस्कृति, अपनी गरिमा, अपना ज्ञान, अपने धरोहर आदि के बारे में जानकारी भी मिले और वे भागीदार भी बनें।
जब डॉ. रजनीश रंजन से पूछा कि प्रदेश के मुख्यालय से करीब 225 किलोमीटर दूर, व्यावहारिक और आधुनिक दृष्टि से पिछड़े इस इलाके में ‘शिक्षक-प्रशिक्षण विद्यालय खोलना’ और फिर ‘88.4 एफएम रेडियो’ का उद्घोषण के पीछे की क्या कहानी है जबकि भारत के 113 शहरों में 388 निजी एफएम रेडियो स्टेशन संचालित हैं ?
डॉ. रंजन पहले मुस्कुराये और फिर लम्बी सांस लेते कहते हैं: “ईस्ट एंड वेस्ट शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज का उद्देश्य शिक्षा देना तो है ही, ठोस नैतिक आधार पर शिक्षण के पेशे को विकसित करना भी है। यह आवश्यक नहीं है कि शिक्षित लोगों में भी नैतिकता हो ही। आज ही नहीं, कल भी और आने वाले दिनों में भी समाज में शिक्षकों की आवश्यकता होगी ही। अगर वर्तमान स्थिति को देखें तो आज समाज में बेहतर शिक्षकों की भी किल्लत है। अगर छात्र-छात्राएं भारत का भविष्य हैं, तो शिक्षक भी राष्ट्र के निर्माता हैं।”
डॉ. रंजन कहते हैं कि “छात्र-छात्राओं को हम बेहतर और नैतिक आधार पर मजबूत शिक्षा तब तक नहीं दे सकते, जब तक शिक्षकों का विशाल समूह बेहतर जानकार और नैतिकता-बौद्धिकता की कसौटी पर खड़े न उतरें। हम दंपत्ति के साथ-साथ इस संस्थान से जुड़े सभी लोग वही कर रहे हैं। हमें ख़ुशी है कि इस शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की स्थापना के बाद आज तक हम 3000 से अधिक छात्र-छात्राओं को प्रदेश का बेहतरीन अध्यापक बनाने में सफल रहे हैं जो आज निजी क्षेत्रों के साथ-साथ सरकारी क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों अध्यापन का कार्य कर रहे हैं।”
“जहाँ तक रेडियो स्टेशन का सवाल है,” डॉ. रंजन आगे कहते हैं कि “इसकी एक लम्बी कहानी है। दो दशक पहले शिक्षा प्राप्त करने के क्रम में मैं भी पत्रकारिता की शिक्षा के प्रति उन्मुख हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त किया। उसी काल खंड में पटना में रेडियो मिर्ची का आगमन हुआ था और वे अपने संस्थान में नए-नए पत्रकारों की नियुक्ति करने के लिए आवेदन मांगे थे। उन दिनों आकाशवाणी पटना के वरिष्ठ अधिकारी श्री के.के. लाल, जो हम सभी को पत्रकारिता का वर्ग भी लेने आते थे, आवेदन प्रेषित करने के लिए कहे। कई इच्छुक अभ्यर्थी आवेदन भी प्रेषित किये। मैं भी एक था उनमें।”
“मैने अपने बारे में – नाम, पता, सम्पर्क, शिक्षा आदि – जो भी लिखा था, उसका शीर्षक ‘आत्मवृत’ लिखा। रेडियो मिर्ची के अधिकारी उस शब्द को देखकर ‘भड़क’ गए और मेरी उम्मीदवारी को निरस्त कर दिए। वहां उपस्थित कई लोग ‘आत्मवृत’ शब्द को सुनकर हंसे भी। जो मेरे मित्र थे, वे मेरी उम्मीदवारी को निरस्त होते देख दुखी हो गए। फिर अपने माता-पिता को नमन करते, हंसते-मुस्कुराते मैं यह कहते निकला कि चलो अब अपना ही रेडियो स्टेशन खोलेंगे।”
डॉ. रंजन कहते हैं: “लोगों को यह ज्ञान नहीं होता, अथवा आधुनिकता के प्रवाह में लोग यह नहीं समझना चाहते, समझते कि सरस्वती कब हमारी जिह्वा पर बैठेंगी, समय कब लोगों के मुख से कौन सा शब्द निकलेगा, नहीं जानते। कोसी-मिथिला क्षेत्र में सरस्वती का साक्षात् निवास है। शायद उन दिनों देवी सरस्वती मेरी जिह्वा पर बैठी थी – अब अपना ही रेडियो स्टेशन खोलेंगे – और दो दशक बाद कोसी-मिथिला क्षेत्र स्थित सहरसा में माननीय राज्यपाल के हाथों एफएम 88.4 रेडियो का शुभारम्भ शायद उसी कड़ी के एक श्रृंखला है। वैसे देश के 234 नए शहरों में 730 नए निजी एफएम रेडियो चैनलों और खुलने वाले हैं जिसकी स्वीकृति माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार दे दी है।”
डॉ. रंजन से जब पूछा कि प्रदेश के मुख्यालय से इतनी दूर इस रेडियो के मध्य से आप क्या कहना चाहते हैं श्रोताओं को? डॉ. रंजन कहते हैं: “हमारे प्रयास की सफलता अथवा यहाँ तक पहुँचने में समाज के सभी लोग, शुभेक्षु, प्रसंशक, आलोचक तो हैं ही, सबसे बड़ी ताकत बने हमारे भाई श्री उदयनारायण सिंह ‘नचिकेता’ और मेरी अर्धांगिनी श्रीमती मनीषा रंजन जी। मनीषा जी इस रेडियो के महानिदेशक भी हैं।”
वे कहते हैं कि “ईस्ट एण्ड वेस्ट 88.4 एफएम सम्पूर्णता के साथ मिथिला-बिहार, मधुबनी-मिथिला और कोसी-मिथिला के लोगों को समर्पित है चाहे वे मिथिला के भौगोलिक क्षेत्र में रहते हों अथवा रोजीरोटी के खातिर विश्व के किसी कोने में रहते हों। हम संयोग को प्रयोग कर व्यावहारिकता में सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं। हम मैथिली भाषा, मिथिला की संस्कृति विरासत, मिथिला की भाषा, साहित्य, व्यंजन, गरिमा, मिथिला की पौराणिक शिक्षा, मिथिला का अनुशासन, कला, शिल्प, लोक चित्रकला, इतिहास, पुरातत्व, सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज, धार्मिक स्थान आदि को शब्दों के माध्यम से, कार्यक्रमों के माध्यम से प्रत्येक लोगों के दरवाजे तक पहुँचाना चाहते हैं। कुछ रेडियो के ट्रांसमिशन से पहुंचेंगे और शेष विज्ञान के विकास के साथ एप्लीकेशंस से। हम चाहेंगे कि विश्व में रहने वाला प्रत्येक मैथिली भाषा भाषी अपनी भाषा के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ें। कभी कोई श्रोता बनें तो कभी कोई वाचक।”
वैसे, डॉ. रंजन दंपत्ति का मानना है कि वैसे आज रेडियो की किल्लत नहीं है देश में, लेकिन हमारी सोच ‘आकस्मिक’ नहीं है। हम भाषा, शब्द, मिलावट के मामले में कभी भी समझौता नहीं करेंगे। हम कभी नहीं चाहेंगे कि रेडियो में प्रसारण के माध्यम से जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, वह शब्द कर्ण प्रिय नहीं हो, वह शब्द आत्मा तक नहीं पहुंचे। आज भी रेडियो ही एक ऐसा माध्यम है जो गाँव के खेतों के आड़ पर रखकर सुना जाता है। हमारी पहुँच समाज के कोने-कोने तक है। विज्ञान के विकास, मोबाईल और एप्लिकेशन के विकास के साथ साथ यह और भी बेहतर हो गया है। हमारी कोशिश होगी कि हम समय की महत्ता को स्वीकारते, वैज्ञानिक आविष्कारों के माध्यम से, अपने रेडियो के सहारा समाज में सकारात्मक बातों को लेकर पहुंचें। मनोरंजन तो होगा ही, लेकिन लन्दन, अमेरिका, फ़्रांस, जर्मनी, जापान में रहने वाली ‘धीया’ (बेटियां) जब अपनी बात यहाँ कहेंगी ‘धीया से सिया’ कार्यक्रम में तो कोसी-मिथिला, मधुबनी- मिथिला, मिथिला-बिहार की बेटियों को, बहुओं को, बहनों की सोच भी बदलेगी, वे भी जीवन में आगे बढ़ने के बारे में सोचेंगी।”