पहचान पाने को तरस रही शांति धाम पहाड़ी

शांति धाम पहाड़ी
शांति धाम पहाड़ी

देश-विदेश के लाखों पर्यटकों और श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र तथा मनोरम स्थल के रूप में प्रसिद्ध होने के बावजूद गंगा नदी के बीचों-बीच स्थित शांति धाम पहाड़ी आज पर्यटन स्थल की पहचान हासिल करने के लिए तरस रही है।

बिहार के भागलपुर जिले में कहलगांव के निकट उत्तरवाहिनी गंगा नदी की निरंतर प्रवाहमान जलधारा का सैकड़ों वर्ष से साक्षी रही यह पहाड़ी अपने मनोरम दृश्य के कारण हर साल लाखों पर्यटकों को यहां आने के लिए विवश करती है। वहीं, यहां स्थापित मंदिर और ब्रह्मलीन शांति बाबा की समाधि होने के कारण आस्था और विश्वास के सहारे बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी खिंचे चले आते हैं।

इसके अलावा गंगा नदी के दूसरे किनारे प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को देखने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक एवं बौद्ध धर्मावलंबी आते हैं। यहां के बाद ये पर्यटक एक बार शांति धाम पहाड़ी तथा इससे सटी दो अन्य पहाड़ियों पर घूमने लिए अवश्य जाते हैं। यह पहाड़ी सिख श्रद्धालुओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। पहाड़ी पर स्थित मंदिर में सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहिब स्थापित होने के कारण इसे नानकशाही के नाम से भी जाना जाता है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस स्थल के पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होने की पूरी क्षमता होने और स्थानीय स्तर पर लगातार मांग किये जाने के बावजूद सरकार की ओर से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। पिछले वर्ष जिलाधिकारी के निर्देश पर गोपालपुर की तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी डॉ. रत्ना श्रीवास्तव ने शांति धाम पहाड़ी के साथ ही दो अन्य पहाड़ियों का निरीक्षण किया था। इसके बाद उन्होंने कहा था कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यहां नौका विहार सहित अन्य सुविधाएं विकसित की जाएंगी।

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वहीं, बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम (बीएसटीडीसी) की प्रबंध निदेशक इनायत खान ने राजधानी पटना में बताया कि शांति धाम एवं अन्य दो पहाड़ियों को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का निगम के पास फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है। इस तरह के निर्णय सरकार के स्तर पर लिये जाते हैं। निगम इन फैसलों काे केवल क्रियान्वित करता है।

सुश्री खान ने बताया कि हालांकि यदि इन स्थलों में पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित होने की क्षमता है और इसके लिए स्थानीय स्तर आग्रह पत्र संबंधित विभाग को भेजा जाय तो सरकार इस पर विचार कर सकती है। उन्होंने बताया कि सरकार राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है और इस कार्य में निगम भी पूरी तन्मयता से काम कर रहा है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां ब्रह्मलीन शांति बाबा की पुण्यतिथि पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा कनाडा, सिंगापुर और नेपाल से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कहलगांव नगर पंचायत की ओर से गंगा तट और इसके आस-पास के क्षेत्रों में सफाई, पानी, बिजली एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, जो पर्याप्त नहीं है। पहाड़ी तक पहुंचने के लिए नौका की नि:शुल्क व्यवस्था भी की जाती है। लेकिन, बड़ी संख्या में जुटने वाले श्रद्धालुओं के गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचने के लिए और व्यापक इंतेजाम किये जाने की जरूरत है।

धाम एवं आश्रम का संचालन करने वाले शांति बाबा के शिष्य केदार शर्मा उर्फ केदार बाबा बताते हैं कि वर्ष 1900 में राजस्थान के झंझनू जिले में जन्मे शांति बाबा के बचपन का नाम वंशीधर था। उन्होंने पहाड़ी पर आकर वर्षों तक कठोर तपस्या की और अंतत: समाधिस्थ हो गये। उनके अनुयायियों, श्रद्धालुओं और पर्यटकों की यहां भारी भीड़ होती है। साथ ही इसकी प्राकृतिक छटा इसे मनोरम बनाता है। ऐसे में सरकार की ओर से यदि इन पहाड़ियों को पर्यटक स्थल की पहचान दी जाये तो बेहतर होगा।

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वहीं, जानकारों की मानें तो बिहार में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। ऐसे में एक स्थल शांति धाम पहाड़ी एवं दो अन्य पहाड़ियां भी हैं, जिसेे विकसित करने को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई गई है। यदि यहां भी हरिद्वार के लक्षमण झूला की तरह एक झूला बनवाकर इसे विकसित की जाय तो पर्यटन के दृष्टिकोण से यह स्थल काफी महत्वपूर्ण हो सकता है। इससे यहां के हजारों लोगों को रोजगार भी मिलेगा। इसके विकास के लिए केवल कदम उठाने की जरूरत है। (वार्ता के सौजन्य से)

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