जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लाल सलाम: छात्रसंघ चुनाव, लेफ़्ट का दबदबा कायम, नीतीश चुनें गये अध्यक्ष

पत्रकार कमलाकांत पांडेय लिखते हैं छात्रसंघ चुनाव, लेफ़्ट का दबदबा कायम, नीतीश चुनें गये अध्यक्ष : जेएनयू : वामपंथी राजनीति के बचे-खुचे किलों में एक दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष पद के चुनाव में फिर एक बार बिहार के बेटे ने जीत दर्ज कर इतिहास कायम रखा है। जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के छात्र नेता नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की शिखा स्वराज को हरा दिया। अध्यक्ष पद पर आइसा डीएसएफ गठबंधन के प्रत्याशी नीतीश कुमार की जीत हुई है। इस पद पर एबीवीपी उम्मीदवार शिखा स्वराज काफ़ी देर तक आगे चल रही थीं। इसके साथ ही जेएनयूएसयू के तीन प्रमुख पदों पर वामपंथी छात्र संगठनों के उम्मीदवारों की जीत हुई है। इसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव का पद शामिल है, जबकि संयुक्त सचिव का पद एबीवीपी के खाते में गया है। 

इस बार के चुनावों में वाम दलों के छात्र संगठनों का पुराना गठबंधन काफ़ी हद तक बिखरा हुआ नज़र आया। पिछले क़रीब आठ साल से एक साथ रहे आइसा, एसएफआई और बाकी दल अलग-अलग चुनाव में उतरे हैं। वहां इस बार यानी साल 2024-25 के चुनावों में करीब 70 फीसदी वोटिंग हुई है। 7,906 वोटरों में से 5,500 वोटरों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया है। यह पिछले साल के चुनावों के मुकाबले थोड़ा कम है। 

जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष एन साई बालाजी ने बताया कि इस बार चुनाव से पहले एसएफआई और आइसा अलग हो गए. आमतौर पर 2016 से वामदलों का गठबंधन एक साथ था और अलग-अलग पद पर अलग अलग छात्र संगठन के उम्मीदवार लड़ते थे।उन्होंने कहा कि साल 2016 में आइसा और एसएफआई एक साथ थे. साल 2017 में इस गठबंधन में डीएसएफ भी जुड़ गया और इसके अगले साल इसमें एआइएसएफ भी शामिल हो गया। पिछली बार छात्रसंघ के चार प्रमुख पदों पर वामदलों के छात्र संगठनों की जीत हुई थी, जिनमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव के पद शामिल हैं. जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर आइसा-डीएसएफ गठबंधन के नीतीश कुमार काउंटिंग के दौरान पीछे भी रहे, लेकिन जैसे-जैसे वोटों की गिनती आगे बढ़ी उन्होंने अपनी जीत पक्की कर ली। 

जीत हासिल करने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि हमें पहले उम्मीद थी कि हम चारों पदों पर जीत हासिल करेंगे। कैंपस एक भरोसे के साथ लगातार हम लोगों को चुन रहा है।गठबंधन में एक परेशानी हुई, लेकिन उसके बावजूद भी पहले दिन से हम परिषद (एबीवीपी) के सामने मजबूती से खड़े रहे हैं। कैंपस में पिछले दस साल से लगातार एबीवीपी हार रहा है और हम अपनी पुरानी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं । जेएनयू पर जिस तरह से चारों तरफ हमला हो रहा है और परिषद ने भाजपा का फुट सोल्जर बनकर कैंपस को बंद करवाने की कोशिश की है, यह चुनाव उसी पर एक तमाचा है। 

​मतदान करते छात्र-छात्राएं

एबीवीपी ने इस साल जेएनयू छात्रसंघ के चुनावों में कांटे की टक्कर दी है। तभी तो एबीवीपी की शिखा स्वराज काफी देर तक आगे रहने के बाद अध्यक्ष पद की रेस में दूसरे नंबर पर रही हैं। शिखा स्वराज ने चुनाव नतीजों के बाद कहा कि हम हर सीट पर मज़बूती से लड़े. हमने उनको कड़ी टक्कर दी। उनके बीच गठबंधन नहीं हो सका, हमें उसका भी फायदा मिला।  जेएनयू छात्रसंघ के उपाध्यक्ष पद की बात करें तो इस पद पर आइसा-डीएसएफ गठबंधन की मनीषा को जीत हासिल हुई है।  जबकि एबीवीपी की नीतू गौतम दूसरे नंबर पर रही हैं. वही महासचिव के पद पर आइसा-डीएसएफ उम्मीदवार मुंतेहा फातिमा ने कब्जा किया है, जबकि एबीवीपी के कुणाल राय दूसरे नंबर पर रहे हैं।  संयुक्त सचिव पद की बात करें तो इस पद पर एबीवीपी के उम्मीदवार वैभव मीणा को जीत मिली है।  वहीं आइसा-डीएसएफ के नरेश कुमार संयुक्त सचिव पद की लड़ाई में दूसरे नंबर पर रहे हैं।  जेएनयू में एबीवीपी के नेता विकास पटेल ने बताया कि हम ज्वाइंट सेक्रेटरी को छोड़कर तीनों पदों पर हार गए हैं।  लेकिन हमारी हार का अंतर काफी कम रहा है। उपाध्यक्ष पद पर नीतू गौतम को महज़ 36 वोटों से हार मिली है।  इधर, शिखा स्वराज ने बताया कि छात्रसंघ चुनाव में काउंसलर के 44 पदों में 23 पर एबीवीपी समर्थित उम्मीदवारों की जीत हुई है। 

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जेएनयू छात्रसंघ में सीमांचल के अररिया के किसान प्रदीप यादव के बेटे नीतीश कुमार जिन धनंजय कुमार की जगह लेंगे, वो भी बिहार के गया के रहने वाले हैं । नीतीश और धनंजय से पहले बिहार से गया के तनवीर अख्तर, कटिहार के शकील अहमद खान, सीवान के चंद्रशेखर और बेगूसराय के कन्हैया कुमार भी जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। दरअसल, नीतीश कुमार बिहार के अररिया जिले के भरगामा प्रखंड के शेखपुरा गांव के निवासी हैं। उनके पिता प्रदीप यादव किसान हैं।  नीतीश ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर जीत हासिल कर एक बार फिर इस प्रतिष्ठित सेंट्रल यूनिवर्सिटी में बिहार का परचम बुलंद किया है।  आइसा और डीएसएफ गठबंधन से चुनाव लड़े नीतीश ने एबीवीपी की शिखा स्वराज को 272 वोटों के अंतर से हराया  । नीतीश को 1702 वोट मिले, जबकि शिखा को 1430 वोट प्राप्त हुए। 

नीतीश कुमार शेखपुरा गांव के किसान प्रदीप यादव के बेटे हैं।  26 वर्षीय नीतीश की मां पूनम देवी गृहणी हैं।  पिता प्रदीप यादव ने बताया कि 1999 में जन्मे नीतीश ने दसवीं की पढ़ाई फारबिसगंज के सरस्वती शिशु मंदिर से की है। 12वीं की पढ़ाई पूर्णिया कॉलेज से और स्नातक की पढ़ाई काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से की।  बीएचयू के बाद नीतीश जेएनयू गए और वहां पहले राजनीति विज्ञान में एमए किया और अब पॉलिटिकल साइंस में ही पीएचडी कर रहे हैं. नीतीश की दो बड़ी बहनें हैं जिनकी शादी हो चुकी है  । नीतीश के जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष बनने पर शेखपुरा में हर्ष का माहौल है। 

चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने कैंपस की फंड कटौती का सवाल उठाते हुए कहा कि अब सरकारी खजाने से कैंपस का फंड खींचकर लाया जाएगा।  जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष के तौर पर अपने एजेंडा को रखते हुए नीतीश ने कहा है कि जेएनयू की गरिमा को बहाल किया जाएगा  । वामपंथी पैनल के बयान में कहा गया है कि फोर्ब्सगंज में सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने पहली बार शैक्षणिक संस्थानों में घुसपैठ करने वाले सांप्रदायिक फासीवाद की भयावह प्रकृति को देखा और समझा। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस में बीए पूरा करने के बाद कुमार ने 2020 में मास्टर डिग्री के लिए जेएनयू में एंट्री की।  वह कोरोना काल के दौरान 2021 में जेएनयू को फिर से खोलने वाले आंदोलन के एक खास चेहरा रहे थे।  अगस्त 2023 में उन्होंने हॉस्टल संकट का हल निकालने की मांग करते हुए 16 दिनों की भूख हड़ताल की। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) जेएनयू इकाई के सचिव के तौर पर नीतीश कुमार ने फेलोशिप का अमाउंट बढ़ाने और एंट्रेस एग्जाम को बहाल करने का अभियान चलाया। 

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प्रतीक्षा और परिणाम

जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष एन साई बालाजी ने दावा किया है कि काउंसलर पद पर जीते चार निर्दलीयों को एबीवीपी अपनी जीत बता रही है, जबकि हक़ीकत में इन 44 सीटों में, बहुमत में जीत एबीवीपी विरोधियों का हुआ है  राष्ट्रीय जनता दल के छात्र संगठन के उम्मीदवार की स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के काउंसलर पद पर जीत, जेएनयू छात्रसंघ चुनावों के लिए अब तक हुई मतगणना में सबसे ख़ास बात रही है।  छात्र राजद के काउंसलर पद के उम्मीदवार रवि राज ने भारी मतों से स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में जीत दर्ज की है  । जिसको लेकर राजद की स्टूडेंट विंग में उत्साह का माहौल है। अध्यक्ष पद के उम्मीदवार अक्षय रंजन ने भी अपनी मेहनत और अध्यक्षीय भाषण से सबको प्रभावित किया. चंद वर्षों में छात्र राजद ने जेएनयू में अपनी विशेष पहचान बनाई है।  अभी हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय अकादमिक काउंसिल चुनाव में राजद शिक्षक इकाई (राष्ट्रीय शिक्षक मोर्चा) के उम्मीदवार प्रो. विवेक रजक ने शानदार जीत दर्ज कर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों के बीच अपनी बेहतरीन उपस्थिति दर्ज कराई थी। 

एबीवीपी ने जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हुए विवि के 16 स्कूलों और विभिन्न संयुक्त केंद्रों के कुल 44 काउंसलर पदों में से 23 पदों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की है।  स्कूल ऑफ सोशल साइंस, जिसे जेएनयू में वामपंथ का गढ़ माना जाता रहा है, वहां एबीवीपी ने 25 वर्षों बाद दो सीटों पर विजय प्राप्त कर बदलाव का संकेत दिया है।  यह किसी भी अन्य छात्र संगठन की तुलना में सर्वाधिक है। स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जो लंबे समय से वामपंथी प्रभाव का प्रमुख केंद्र रहा है, वहां भी एबीवीपी ने दो सीटों पर विजय हासिल कर नई राजनीतिक धारा को स्थापित किया है  । चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत से एबीवीपी ने अपनी सशक्त उपस्थिति का परिचय दिया. विभिन्न स्कूलों के काउंसलर पदों पर परिषद के प्रत्याशियों ने निर्विरोध जीत दर्ज की है। 
 स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी की एकमात्र सीट पर सुरेंद्र बिश्नोई, स्कूल ऑफ संस्कृत एंड इंडिक स्टडीज की तीनों सीटों पर प्रवीण पीयूष, राजा बाबू और प्राची जायसवाल और स्पेशल सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन की एक सीट पर गोवर्धन सिंह निर्विरोध निर्वाचित हुए है।  इसके अतिरिक्त, केंद्रीय पैनल की चारों प्रमुख सीटों अध्यक्ष- शिखा स्वराज, उपाध्यक्ष- नितू गौतम, महासचिव- कुणाल राय और संयुक्त सचिव-वैभव मीणा शुरू से ही बढ़त बनाए हुए हैं. जिससे विद्यार्थी परिषद की जेएनयू में व्यापक स्वीकार्यता और छात्रों के विश्वास का प्रमाण मिलता है। 

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एबीवीपी जेएनयू के इकाई अध्यक्ष राजेश्वर कांत दुबे ने कहा कि भारत विकास परिषद ने जेएनयूएसयू काउंसिल में 44 में से 23 सीटों पर विजय प्राप्त कर काउंसिल में पचास प्रतिशत से अधिक की उपस्थिति पर कब्जा कर इतिहास रच दिया है  । जिससे जेएनयूएसयू द्वारा किए जाने वाले फैसलों में अब अभाविप की अहम जगह प्राप्त हो सकेगी  । जो वामपंथ के गढ़ में बड़ी सेंध की तरह काम करेगा. यह विजय एबीवीपी के रूप में उस सकारात्मक बदलाव की विजय है. जिसे जेएनयू के छात्रों ने चुना है।  इस बदलाव की लहर लाने के लिए जेएनयू के सभी जागरूक छात्रों को अभाविप आभार ज्ञापित करता है। 

एबीवीपी, वाम-यूनाइटेड पैनल और वाम अंबेडकरराइट यूनाइटेड पैनल के अलावा बापसा और समाजवादी छात्र सभा के कार्यकर्ता भी मतदान केंद्रों पर अपने उम्मीदवारों का उत्साह बढ़ाते रहे. इस बार मुकाबला कड़ा और ध्रुवीकृत है। आठ साल बाद बने नए गठबंधन ने परिसर में पुरानी लड़ाई की रेखाओं को फिर से खींच दिया है। इस साल के चुनाव में बड़े पैमाने पर पुनर्गठन हुआ है और लंबे समय से चली आ रही वामपंथी गठबंधन बिखर गया। आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन के साथ गठबंधन किया है, जबकि स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया ने बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन, आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन और प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स एसोसिएशन के साथ मिलकर एक अलग मोर्चा बनाया है। 

दरअसल, 2016 से लेकर अब तक आइसा, एसएफआइ, डीएसएफ, पीएसए सहित तमाम लेफ्ट आर्गेनाइजेशन यूनाइटेड लेफ्ट फ्रंट के बैनर तले गठबंधन में चुनाव लड़ते थे  । लेकिन इस बार यह गठबंधन टूट गया है. इस टूट का फायदा एबीवीपी को मिला है.2024 के चुनाव में 73 फीसद मतदान हुआ था । जोकि पिछले 12 वर्षों में सबसे अधिक था.2020 से 2023 तक जेएनयू में चुनाव नहीं हुए थे. जबकि जेएनयू में 2019 में 67.9 फीसद, 2018 में 67.8 फीसद, 2016-17 में 59 फीसद, 2015 में 55 फीसद, 2013-14 में 55 फीसद और 2012 में 60 फीसद मतदान हुआ था। इस बार चुनाव में 70 फीसद मतदान हुआ । पिछले साल की तुलना में इस बार तीन फीसद कम मतदान हुआ है। पिछले चुनाव में चारों सीटें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव पर वामपंथी संगठनों ने जीत हासिल की थी। वहीं एबीवीपी को हार का सामना करना पड़ा था। 2973 वोट पाकर धनंजय छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे। उन्होंने एबीवीपी के उमेश चंद्र अजमीरा से करीब तीन गुणे वोट मिले थे। उपाध्यक्ष पद पर अविजीत घोष ने एबीवीपी से लगभग दोगुणे वोट पाकर दीपिका शर्मा को हराया था. इसके अलावा सचिव पद पर वाम संगठन की प्रियांशी आर्य जीती थी। जबकि संयुक्त सचिव के पद पर वाम के ही मोहम्मद साजिद ने एबीवीपी के गोविंद दांगी को हरा कर सफलता पाई थी। 

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