जैसे ही सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया – आई.पी.सी. 497 रद्द – भारत के सभी पुरुष – महिला एक-दूसरे को देखने लगे !!!!

पति का पत्नी पर मालिकाना हक नहीं है।
पति का पत्नी पर मालिकाना हक नहीं है।

नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय के पांच-सदस्यीय संविधान पीठ, जिसकी अगुआई प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा कर रहे थे, जैसे ही भारतीय दण्ड संहिता 497 का ख़त्म करने का निर्णय सुनाया, भारत की आवादी का लगभग सभी पुरुष अपने-अपने घरों में अपनी पत्नी, बेटी, बहुओं का चेहरा देखने लगे। सर्वोच्च न्यायालय के पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के आगे भारत का १२४ करोड़ महिला-पुरुष बिलकुल “मौन” रहा। आखिर कर भी क्या सकती है ? वे सभी संविधान के रक्षक हैं।

व्यभिचार पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि पति का पत्नी पर मालिकाना हक नहीं है। आईपीसी की धारा-497 को खत्म करते हुए कोर्ट ने कहा कि विवाहेतर संबंध अपराध नहीं हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा फैसला सुनाते हुए कहा कि लोकतंत्र की खूबी ही मैं, तुम और हम की है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को हमेशा ही सम्मान मिलना चाहिए। मिश्रा ने कहा कि महिला की गरिमा सबसे ऊपर है। व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया और कहा कि यह महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाता है और इस प्रावधान ने महिलाओं को ‘‘पतियों की संपत्ति’’ बना दिया था।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त कर दिया। शीर्ष अदालत ने इस धारा को स्पष्ट रूप से मनमाना, पुरातनकालीन और समानता के अधिकार तथा महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया।प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर. एफ. नरिमन, न्यायमूर्ति ए. एम.खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने एकमत से कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है।

संविधान पीठ ने जोसेफ शाइन की याचिका पर यह फैसला सुनाया। यह याचिका किसी विवाहित महिला से विवाहेत्तर यौन संबंध को अपराध मानने और सिर्फ पुरूष को ही दंडित करने के प्रावधान के खिलाफ दायर की गयी थी।व्यभिचार को प्राचीन अवशेष करार देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि मानव जीवन के सम्मानजनक अस्तित्व के लिए स्वायत्ता स्वभाविक है और धारा 497 महिलाओं को अपनी पसंद से वंचित करती है। प्रधान न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि व्यभिचार आपराधिक कृत्य नहीं होना चाहिए लेकिन इसे अभी भी नैतिक रूप से गलत माना जाएगा और इसे विवाह खत्म करने तथा तलाक लेने का आधार माना जाएगा। घरों को तोड़ने के लिये कोई सामाजिक लाइसेंस नहीं मिल सकता।

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार यदि कोई पुरूष यह जानते हुये भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा। यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा। इस अपराध के लिये पुरूष को पांच साल की कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान था।

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केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दायर करके आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की कि व्यभिचार अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं। इस मामले में कोर्ट 8 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। शाइन की ओर से दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि कानून तो लैंगिक दृष्टि से तटस्थ होता है लेकिन धारा 497 का प्रावधान पुरूषों के साथ भेदभाव करता है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 :समता के अधिकारः , 15 : धर्म, जाति, लिंग, भाषा अथवा जन्म स्थल के आधार पर विभेद नहींः और अनुच्छेद 21:दैहिक स्वतंत्रता का अधिकारः का उल्लंघन होता है।

न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर ने अपने फैसले में कहा, ‘‘विवाह के खिलाफ अपराध से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 को हम असंवैधानिक घोषित करते हैं।’’ न्यायमूर्ति नरिमन ने धारा 497 को पुरातनकालीन बताते हुए प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति खानविलकर के फैसले से सहमति जतायी। उन्होंने कहा कि दंडात्मक प्रावधान समानता का अधिकार और महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन है।

वहीं न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि धारा 497 महिला के सम्मान को नष्ट करती है और महिलाओं को गरिमा से वंचित करती है।पीठ में शामिल एकमात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने अपने फैसले में कहा कि धारा 497 संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इस प्रावधान को बनाए रखने के पक्ष में कोई तर्क नहीं है।

अपनी और न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से फैसला लिखने वाले प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने कहा कि व्यभिचार महिला की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाती है और व्यभिचार चीन, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपराध नहीं है।उन्होंने कहा, संभव है कि व्यभिचार खराब शादी का कारण नहीं हो, बल्कि संभव है कि शादी में असंतोष होने का नतीजा हो। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि महिला के साथ असमान व्यवहार संविधान के कोप को आमंत्रित करता है। उन्होंने कहा कि समानता संविधान का शासकीय मानदंड है।

संविधान पीठ ने कहा कि संविधान की खूबसूरती यह है कि उसमें ‘‘मैं, मेरा और तुम’’ शामिल हैं।शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं के साथ असमानता पूर्ण व्यवहार करने वाला कोई भी प्रावधान संवैधानिक नहीं है और अब यह कहने का वक्त आ गया है कि ‘पति महिला का स्वामी नहीं है।’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि धारा 497 जिस प्रकार महिलाओं के साथ व्यवहार करता है, यह स्पष्ट रूप से मनमाना है। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई सामाजिक लाइसेंस नहीं हो सकता है जो घर को बर्बाद करे परंतु व्यभिचार आपराधिक कृत्य नहीं होना चाहिए। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया जाये क्योंकि व्यभिचार स्पष्ट रूप से मनमाना है। पीठ ने कहा कि व्यभिचार को विवाह विच्छेद के लिये दीवानी स्वरूप का गलत कृत्य माना जा सकता है।

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पटना की अनीता गौतम कहती है: ​आज देश में एक बार फिर से नंगई की वकालत हो रही है। क्षुधा की तृप्ति से ज्यादा अहमियत यौन तृप्ति को दी जा रही है। आपसी सहमति से बनने वाला कोई भी विवाहेतर यौन-संबंध अब कानूनन अपराध नहीं रहा। यह स्त्री और पुरुष या यूँ कहें कि पति और पत्नी दोनों के लिए जायज हो गया है। सिंगल स्त्री पुरुष तो पहले से ही अपने मन की करने के लिए आजाद हैं। प्रगतिशील दिखने और बनने की चाहत में दुर्भाग्य पूर्ण है कि यौन तृप्ति के लिए तो हमारे देश में नित नये नये फैसले हो रहें हैं लेकिन इनके दूरगामी दुष्प्रभावों पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।

रोटी कपड़ा और मकान की शर्तों पर अपने संविधान के साथ हम आजाद हुए थे लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी हम उन्हीं तकलीफों से जूझ रहे हैं। आज भी देश में एक बड़ी आबादी सर पर छत के लिए तरस रही है। मूलभूत संरचनाओं के अभाव में सुन्दर भौगोलिक खाकों के वावजूद हम अपेक्षित तरक्की नहीं कर पाये हैं। ऐसे में चंद लोगों को संतुष्ट करने के लिए, लिए गये फैसले का सीधा असर उस अवाम को झेलना पड़ेगा, जहां पति पत्नी के बीच ‘वो’के लिए कोई जगह नहीं है। विवाहेत्तर संबंध के लिए जितनी सहजता से फैसला आया है उतना ही कठिन होगा इसे धरातल पर लाना।

इतना ही नहीं, इस फैसले की आड़ में वेश्यावृति को बढ़ावा मिल सकता है, स्त्री के शारीरिक शोषण का पक्ष मजबूत हो सकता है। स्त्रियां अपने ही परिवार के बीच असुरक्षित हो जाएंगी। बहुत सारे मजाक के रिश्ते अब गलत उम्मीद लगा कर बैठ जाएंगे। पति पत्नी का रिश्ता भी शक की निगाहों से देखा जाने लगेगा। इतना ही नहीं सामाजिक अराजकता के साथ साथ शारीरिक बीमारियों को भी आमंत्रण देगा यह कानून।पश्चिमी देशों की नकल में सोच को प्रगति शील बनाने, स्त्रियों की दशा सुधारने बाल मजदूरी खत्म करने एवं शिक्षा को बेहतर बनाने जैसे कदम उठाये जाने की जरूरत पर बल दिया जाना चाहिए था।​ ​स्त्री और पुरुष दोनों की सुरक्षा और सम्मान पति पत्नी के खूबसूरत रिश्ते में है। इसे तोड़ने और अति आधुनिक बनाने की नयी परिभाषा गढ़ने में कहीं ऐसी सड़ांध न फैल जाये जिसके दुर्गन्ध में न सिर्फ परिवार बल्कि मानवता ही दम तोड़ दे।

आलोक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं: “शादी के बाहर के संबंध अपराध नहीं। यह सदी की समाजिक सरंचना पर असर डालने वाला सबसे बड़ा फैसला है। जाते जाते चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने भारतीय मिजाज में जरुरी बदलाव के बलशाली बीज बो दिए। महिला के साथ असम्मान का व्यवहार अंसवैधानिक है। महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है और हर पुरुष को यह बात समझनी चाहिए। फैसले में कहा कि अडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं होगा जिस पर तीन अन्य जजों ने भी सहमति जताई। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आईपीसी की धारा 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पति कभी भी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है।

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रविंद्र भटनागर कहते हैं: भारतीय सामाजिक व्यवस्था मे विवाहित महिलाओ को पतिव्रता स्त्री कहकर सम्मान दिया जाता है ! वे हर हाल मे सारी ज़िंदगी अपने पति के साथ ही रहती हैं पूर्ण वफादारी के साथ ! अपवाद फिर भी मिल जाते हैं हर जगह ! पर वे बहुत कम , अर्थात मुश्किल से दो – चार प्रतिशत होते हैं ! इसी प्रकार अधिकांश विवाहित पुरुष बाहर की दुनिया के सम्पर्क मे ज़्यादा होने और अक्सर मौका उपलब्ध होने के बावजूद अपनी पत्नि के प्रति पूर्ण वफादार होते हैं ! यानि पुरुष भी तो एक पत्नि व्रत निभाते हैं ज़िंदगी भर ! अपवाद यहाँ भी मिलते हैं ! प्रतिशत महिलाओ की अपेक्षा कुछ अधिक हो सकता ! कहने का मतलब ये कि परिवार विश्वास और समर्पण से चलता है न कि कानून से ! कानून मे छूट मिल जाने के बाद भी विवाहेतर बहुत सम्बंध बढ जायेंगे ऐसा मुझे तो नही लगता !

इसी तरह शबनम खान का मानना है कि “शादी के बाद पर व्यक्ति से संबंध अनैतिक हैं ये सोचना खुद का काम परंतु अब गैरकानूनी नहीं … महिलाओं को बराबरी का हक़ देने की तरफ सर्वोच्च न्यायालय का फैसला माना जा रहा है बेशक
परंतु आदमियों को खुश होना चाहिए इस फैसले से उन्हें ही बचाया है माननीय न्यायालय ने असल मे तो …. सभी को स्वागत करना चाहिए इस फैसले का।

सुप्रीम कोर्ट की जुबानी

🔹 किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं।
🔹 शादी के बाहर के संबंधों पर दोनों पर पति और पत्नी का बराबर अधिकार।
🔹 एडल्टरी चीन, जापान, ब्राजील मेंअपराध नहीं है। कई देशों ने व्यभिचार को रद्द कर दिया है। यह पूर्णता निजता का मामला है।
🔹 शादी के बाद संबंध अपराध नहीं हैं। धारा 497 मनमानी का अधिकार देती है।
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने अडल्टरी को अपराध के दायरे से बाहर किया, आईपीसी की धारा 497 को खारिज किया।
🔹 महिला से असम्मान का व्यवहार असंवैधानिक। फ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने अडल्टरी को अपराध के दायरे से बाहर किया।एड्रल्ट्री अपराध नहीं हो सकता है।
🔹 आईपीसी 497 महिला के सम्मान के खिलाफ। महिला और पुरूष को प्राप्त हैं समान अधिकार।
🔹 महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है। पति महिला का मालिक नहीं है बल्कि महिला की गरिमा सबसे ऊपर है।

(भाषा/आलोक कुमार/अनीता गौतम/रविंद्र भटनागर/शबनम खान सहयोग से

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